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थकावट-थकाहट
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थरकना-थिरकना मांदा ) मेहनत करते करते अशक्त, थपड़ा-थपरा-संज्ञा, पु० दे० (हि. थपकना) श्रमित, श्रांत हुआ।
चपत, चपेटा, थप्पड़, थापर (ग्रा० )। थकावट-थकाहट-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. थपड़ी-थपरी- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० थपड़ा)।
थकना) थकने का भाव,शिथिलता, ढीलापन। | करतारी, हाथों की ताली, थपेरी (ग्रा०)। थकित-वि० ( हि० थकना ) श्रांत, श्रमित, थपथपी--- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. थपकी ) हारा, शिथिल,मोहित, ठहरा हुआ "थकित थपकी। स० क्रि० (दे०) थपथपाना । नयन रघुपति-छबि देखी"-रामा० । थपन -- संज्ञा, पु० (सं० स्थापन ) स्थापन । थकी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) थकावट । थपना-थापना* --- स० क्रि० दे० (सं० स्थापन) थकैनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. थकना) श्रांति, जमाना, बैठाना, ठहराना, स्थापित करना। थकावट, थकी।
अ० क्रि० ठहरना, जमना, स्थापित होना। थकौंहाँ-वि० दे० (हि० थकना) थका-माँदा, "मारिकै मार थप्यो जग मैं जाकी प्रथम शिथिल, श्रांत । स्त्री० थकोही।
रेख भट माही--विनय० । थक्का-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्था+कृ) किसी पा-वि० दे० (हि. थपना)स्थापित, प्रतिष्ठित। वस्तु का जमा हुआ क़तरा । स्त्री० थकी, थपाना-स० क्रि० दे० (हि० थपना) स्थापित थकिया।
कराना प्रे० रूप -थपवाना । थगित --- वि० द० ( हि० थकित ) ठहरा या
थपेडा-थपेरा--संज्ञा, पु० दे० (अनु० थपथप) रुका हुआ, ढीला, शिथिल, मंद, स्थगित
थप्पड़, चपेटा, धौल, थपरा। स्त्री० (दे०) (सं०)।
थपेरी, थपेरिया--- ताली। थति -संज्ञा, स्त्री० द० (हि. थाती) धरो
थपोडी-थपारी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. अनु० हर, जमा, थाती (दे०)। थती-वि० (दे०) पक्षी, वशी, नियतात्मा,
थप थप ) थपड़ी, ताली, थपेरी।।
थप्पड़-थप्पर-संज्ञा, पु. ( अनु० थपथप) थोक, राशि, ढेर। थन-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्तन) स्तन, चूँची।
थपेड़ा, तमाचा, धौल। थनी- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० स्तनी) बकरियों के
थम-संज्ञा. पु० दे० (सं० स्तंभ) खम्भ, पाया, गलथने ।
थूनी, थमना । थमला (प्रान्ती०)। थनेला-थनेली-संज्ञा, पु० द० (हि. थन+
थमकारी--वि० दे० (सं० स्तंभन) रोकने वाला। एला-प्रत्य० ) स्त्रियों के स्तनों का फोड़ा,
थमड़ा--वि० दे० (हि० थम) बड़े पेट वाला, एक घास, थनैल, थनइल (ग्रा०)।
तुन्दिल, तोंदैल। थनैत-संज्ञा, पु० दे० ( हि० थान ) गाँव का थमना-अ० क्रि० दे० (सं० स्तंभन ) ठहरना, मुखिया, ज़मींदार का कारिन्दा ।
रुकना, धैर्य धरना, ठहर रहना । “जिनके थपक-संज्ञा, पु० दे० (हि. थपकना) ठोंक, जपते पसें थमैं, सात दीप नव खंड" चुमकार।
-चाचाहित । थपकना-स० क्रि० दे० ( अनु० थपथप) थर-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० स्तर) परत, तह । किसी के शरीर को हाथ से धीरे धीरे संज्ञा, पु. ( सं० स्थल ) थल, ठोर, स्थान, ठोकना, प्यार करना, चुमकारना, धैर्य देना। जगह, सूखी भूमि, रेगिस्तान, बाघ की थपकी-संज्ञा, स्त्री. (हि. थपकना ) किसी माँद । “जेहि थर आहि भाँति की बरनत के शरीर को हथेली से धीरे धीरे ठोंकना। बात कछूक '"-भू० । " मीठी थपकी पाते थे'-मै० श०। थरकना-थिरकना-अ० क्रि० दे० (अनु०
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