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त्रिपथगा-त्रिपथगामिनी
८५८ त्रिलोकनाथ त्रिलोकीनाथ त्रिपथगा-त्रिपथगामिनी-संज्ञा, स्त्री० यौ० और गरदन में कुछ टेढ़ापन लिए खड़े होने (सं०) गंगा जी।
का ढंग। त्रिपद संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तिपाई, जिसके त्रिभंगी - वि० (सं०) त्रिभंग । संज्ञा, पु० (सं०) तीन पाँव हों।
श्रीकृष्ण, एक छंद (पिं०)। 'बसत त्रिभंगी त्रिपदा-त्रिपदो-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) हंस. लाल'- वि०। पदी, तिपाई, गायत्री छंद।
त्रिभुत--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सम धरातल त्रिपदिका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) तिपाई। जो तीन भुजानों से घिरा हो. त्रिकोण, त्रिपाठी-संज्ञा, पु० (सं० विपाटिन् ) त्रिवेदी, तिकोना । तिवारी (ब्राह्मण )।
| त्रिभुजात्मक - वि० यौ० (सं०) त्रिभुज, त्रिपिटक - संज्ञा, पु० (सं०) बौद्धों का धर्म त्रिकोण क्षेत्र ।
ग्रंथ, (सूत्र, विनय, अभिधर्म) ये तीन हैं। त्रिभुवन-सज्ञा, पु. यौ० (सं०) तीनों लोक, त्रिपिताना-अ० कि० दे० (सं० तृप्ति + (आकाश, पाताल, पृथ्वी)।
आना-प्रत्य० ) तृप्त होना, अघाना। स० क्रि० । त्रिमधु-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ऋग्वेद का (दे०) संतुर या तृप्त करना. तिरपिताना। एक भाग। त्रिपंड- सज्ञा, पु. ( सं० त्रिपुंड । खौर, अर्ध- त्रिमूर्ति- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ब्रह्मा, विष्णु,
चंद्राकार, तीन लकीरों का शैव तिलक । | शिव । त्रिपुंसी- संज्ञा, स्त्री० (दे०) इन्द्र, वरुण। त्रिमुहानी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (दे०) वह स्थान त्रिपुर-संज्ञा, पु० (सं०) वाणासुर, तारका- | जहाँ से तीन मार्ग तोन भिन्न दिशाओं को
सुर के पुत्रों के लिये मय दानव, रचित तीन गये हों। तिगृहानी (दे०) । नगर, एक दैत्य, तीनों लोक । यौ० --- | त्रिय-त्रिया- संज्ञा, स्त्री. (सं० स्त्री) स्त्री, त्रिपुरासुर ।
औरत, तिरिया (दे०) यौ०-त्रियाचरित्रत्रिपुरदहन, त्रिपुरान्तक, त्रिपुरारि-संज्ञा, नारिचारित-स्त्रियों को लीला जिसे पुरुष पु. यौ० (सं०) शिव जी ।
सहज ही में नहीं समझ सकते । “ त्रियात्रिपुरा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) कामाख्या देवी। चरित्र जानै ना कोय".-- लो० । छल, त्रिपुस - संज्ञा, पु० (दे०) खीरा ।
कपट, धोखेबाजी। “त्रिया-चरित करि त्रिपौलिया- संज्ञा, पु. (दे०) सिंह-द्वार, | ढारति आँसू"-रामा। राज-महल का प्रथम द्वार, तीन द्वार का | त्रियामा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) रात्रि, तीन पहर मकान ।
वाली। त्रिफला-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) हर, बहेड़ा, त्रियुग-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विष्णु, सत्ययुग,
आँवला, तीनों मिलकर त्रिफला हैं। द्वापर, त्रेता, तीनों युगों का समुदाय । त्रिवली-त्रिवली-संज्ञा, स्त्री० (सं०) स्त्री के ! त्रियोनि-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) लोभ आदि से पेट पर नाभि के ऊपर की तीन सिकुड़नें, उत्पन्न कलह । तीन पलट ।
त्रिलोक, तिलोक-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) त्रिबेणो-त्रिबेनी(दे०)-संज्ञा, स्त्री. (सं० | त्रिलोकी, तीनों लोक, ( पृथ्वी पाताल, त्रिवेणी त्रिवेणी, तिरबेनी (दे०)। " तहाँ | आकाश ) तिलोक के तिलक तीन"
तहाँ ताल मैं होति त्रिवेनी"-- पद्मा०।। तुल० । त्रिभग-त्रिभंगा-वि० यौ० (सं०) जिपमें तीन दिलं कनाथ, त्रिलोकीनाथ- संज्ञा, पु० यौ० स्थानों में बल पड़े। संज्ञा, पु. पेट, कमर | (सं०) परमेश्वर, विष्णु, शिव ।
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