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त्रासक
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त्रिजटा
त्रासक - संज्ञा, पु० (सं० ) डर या, भय दिखाने वाला, निवारक । त्रासना*——स० क्रि० दे० (सं० त्रासन ) त्रिकूट - संज्ञा, पु० ( सं० ) तीन चोटियों का
त्रिकुटी - संज्ञा, स्रो० (सं० त्रिकूट ) दोनों भौहों का मध्यवर्ती स्थान ।
भयभीत करना, डराना, त्रास देना । त्रासित - वि० (सं० त्रस्त ) डराया हुआ । त्राह त्राहि - अव्य० (सं०) रक्षा करो, बच्चायो ।
पहाड़, लंका का पहाड़, योग के छै चक्रों में से प्रथम । “गिरि त्रिकूट ऊपर बस लंका"
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" त्राहि त्राहि अब मोंहि " - रामा० । त्रि - वि० (सं० ) तीन ।
त्रिकंटक - वि० यौ० (सं०) तीन काँटों वाला। त्रिक - संज्ञा, पु० सं०) तीन का समूह, कमर । त्रिककुद् - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कूिट पहाड़, विष्णु । वि० जिसके तीन सींग हों । त्रिकच्छक संज्ञा, पु० (सं० ) रीति के अनु सार धोती पहनना ।
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त्रिकः -- संज्ञा, पु० (सं०) गो वरू - भौषध | त्रिकटु - त्रिकटुक - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) सोंठ, मिर्च, पीपल का समूह । त्रिकटुरामठ चूर्णमिदं समम्' – वै० । त्रिकस्म-वि० (सं० ) तीन कर्म पठन, दान, यज्ञ करने वाला, भूमिहार । त्रिकत - -संज्ञा, पु० यौ० (स०) तीन मात्रात्रों का शब्द (पिं०), प्लुत, दोहे का एक भेद । वि० तीन कला वाला !
त्रिकांड - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अमर कोष,
निरुक्त । वि० तीन कांड वाला । त्रिकाल - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तीनों समय, भूत, भविष्यत् वर्तमान, प्रातः सायं
मध्यान्ह ।
त्रिकालज्ञ - संज्ञा, पु० (सं० ) तीनों कालों की बातों का ज्ञाता, सर्वज्ञ | त्रिकालदर्शी । त्रिकालदर्शक - वि० यौ० (सं० ) तीनों
कालों की बातों का देखने वाला, सर्वज्ञ | त्रिकालदर्शी - संज्ञा, पु० यौ० (सं० त्रिकाल -
+ दर्शिन् ) त्रिकालज्ञ, सर्वश । त्रिकुट - संज्ञा, पु० (सं० ) सिंघाड़ा | त्रिकुटा - संज्ञा, पु० (सं० ) त्रिकटु, सोंठ, मिर्च, पीपर ।
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--रामा० ।
त्रिकाण -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तीन कोने का क्षेत्र, त्रिभुज क्षेत्र । त्रिकोणमिति - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) त्रिभुज के कोनों और भुजाओं के द्वारा उसके अनेक भेदों का वर्णन का गणितशास्त्र । त्रिखा· तिरखान - संज्ञा, स्त्री० दे०सं० (तृषा ) प्यास (पि० ) । चातक रटत त्रिखा श्रति श्रोही ' --रामा० । त्रिगण -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) त्रिवर्ग (धर्म. अर्थ, काम ) |
त्रिगर्त - - संज्ञा, पु० (सं० ) जालंधर और कांगड़ा के घास-पास का देश ( प्राचोन ) । त्रिगुण - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सत्व, रज, तम का समूह । वि० (सं० ) तिगुना । त्रिगुणातीत-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) तीनों गुणों से परे, ब्रह्म, परमेश्वर । वि० ज्ञानी, जीवन मुक्त, निर्गुण । त्रिगुणात्मक - वि० पु० यौ० (सं०) सत्व, रज, तम इन तीनों गुण से बना, गुणत्रयविशिष्ट संमार, सांसारिक पदार्थ । स्त्री० त्रिगुणात्मिका ।
त्रिचतुर - वि० यौ० (नं०) तीन या चार । त्रित संज्ञा, पु० (सं० तिर्यक् ) पशु, पक्षी, कीड़े श्रादि ।
त्रिजगद् - संज्ञा, पु० (सं० त्रिजगत् ) तीनों लोक ( श्राकाश, पाताल भूमि), त्रिभुवन । • त्रिजग देव नर असुर अपर जग जोनि सकल भ्रमि थायो" वि० । त्रिजट - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) शिव जी । त्रिजटा -संज्ञा, स्त्री० (सं० ) एक राक्षसी जो अशोक बाटिका में सीता जी की रक्षा में रहती थी । "त्रिजटा नाम राक्षसी एका"
- रामा० ।
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