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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढालना ८०० ढालना-स० क्रि० दे० (सं० धार ) कोई छोड़ाना, देर करना। प्रे० रूप० ढिलवाना। गहना या बरतनादि साँचे से बनाना, एक दिसाना-अ० क्रि० दे० ( सं० ध्वंस ) से दूसरे बरतन में द्रव पदार्थ डालना, सरक पड़ना, फिसल जाना, झुकना । उड़ेलना, ताना या व्यंग बोलना। ढींगर-ढिंगरा-संज्ञा, पु० दे० (सं० डिंगर) ढालवा-ढालुवा-वि० दे० (हि. ढाल ) | हृष्ट-पुष्ट, हट्टा-कहा, पति या उपपति, गुंडा, ढालू जमीन, साँचे में ढाल कर बनी वस्तु ।। दुष्ट, धिंगरा (ग्रा०)। ढालिया- संज्ञा, पु० दे० (हि. ढाल +इया- ढींढा-संज्ञा, पु० दे० (सं० ढुंढ़ि = लंबोप्रत्य०) साँचे में ढाल कर गहने श्रादि बनाने दर, गणेश ) बड़े पेट वाला, गर्भ, हमल । वाला ठठेरा, सुनार, तँबेरा। ढीट संज्ञा, स्त्री० (दे०) रेखा, लकीर । ढालू-वि० दे० (हि० ढालना ) ढाल- ढीठ-ढोठ्यो-वि० दे० ( सं० धृष्ट) निडर, युक्त, ढलवाँ, ढालवाँ, ढलुवाँ । धृष्ट, साहसी। संज्ञा, स्त्री० ढिठाई । ढासा-संज्ञा, पु० दे० (सं० दस्यु ) डाकू, ढीठता*-संज्ञा, स्त्री. ( हि० ढीठ +तालुटेरा, बटमार । संज्ञा, स्त्री० (दे०) खाँसी, _प्रत्य०) ढिठाई, धृष्टता । तकिया, उढ़कन । ढीठ्यो -संज्ञा, पु०७० (हि० ढीठ) ढीठ, पृष्ट, ढासना-संज्ञा, पु० दे० (सं० धारण + अासन) |" | ढिठाई । “प्रभुसों मैं ढीठ्यो बहुत करी" गी. कुरसी, मसनद, तकिया। अ० कि० खाँसना । ढीढ़स-संज्ञा, पु० (दे०) ढिंढा, एक शाक । ढाहना-स. क्रि० दे० (हि. ढाना ) ढीम, ढीमा-संज्ञा, पु० (दे०) पत्थर का गिराना। " भवन बनावत दिन लगै, ढाहत | बड़ा टुकड़ा, मिट्टी का पिंड । ढिम्मा लगै न वार"-वृं० । ढिंढोरना-स० क्रि० दे० (अनु०) खोजना, (ग्रा.)। हूँढ़ना, मथना, छान मारना, मुनादी करना। ढील-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० ढीला ) सुस्ती, ढिंढोरा--संज्ञा, पु० दे० (अनु. ढम + ढोल) शिथिलता, जूं । " ढील देत महि गिरि मुनादी, घोषणा। परत "-तु० । मुहा०—ढील देनाढिकाना-ढिकान- सर्व० (दे०) अमुक । छोड़ना, भुलाना, रियायत करना । वि०-- ढिग-क्रि० वि० वा (सं० दिव ) समीप, न्यून, कम । “सील-ढील जब देखिये"-- निकट, पास, तट, किनारा, कोर। रही । ढिठाई-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० ढीठ) धृष्टता। | ढीलना-स० कि० दे० (हि. ढीला ) ढीला ढिबरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. डिब्बी ) करना, छोड़ना, खोलना । काँच या मिट्टी की डिबिया जिसमें मिट्टी ढीला- वि० दे० (सं० शिथिल ) आलसी, का तेल जला कर दीपक का काम लेते हैं, सुस्त, असावधान, जो कड़ा या कस कर न पेंच के सिरे पर का छल्ला । बँधा हो, जो गाढा न हो, गीला । मुहा:ढिमका-सर्व० दे० (हि. अमुक का अनु० ) ढीली आँख-मद-भरी चितवनि । तबीअमुक, फलाँ, फलाना। स्रो० ढिमकी। यत ढीली होना-तबीयत ठीक न होना। ढिलाई -संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. ढोला ) | ढीलापन-संज्ञा, पु० दे० । हि० ढीला+पन ढीलापन, सुस्ती, शिथिलता, ढीला। प्रत्य० ) ढिलाई, सुस्ती, शिथिलता । ढिलाना-स० क्रि० दे० (हि. ढीलना का | ढीह-संज्ञा, पु० (दे०) टीला, छोटा पहाड़ । प्रे० रूप ) किसी से ढीलने का काम कराना, | ढंढा-संज्ञा, पु० दे० ( हि० हूंढ़ना ) ठग, ढीला कराना या करना, खोलवाना, । उचक्का, चोर । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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