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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उगोरी ७७६ उनकार लूटने का भाव या काम, धोखा देना, ठठना-प्र० कि० दे० (हि० ठाढ़) ठहरना, धूर्तता। वि० छलीती। सजना। ठगोरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० ठग+चौरी) ठठाना सक्रि० दे०(मनु० ठकठक) मारना, टोना, जादू, मोहनी। “सुधि बुधि सब पीटना। अ० कि० दे. (सं० महास) मुरली हरी प्रेम ठगोरी लाय"-५० गी। बड़े ज़ोर से हँसना । पू० का । ठठाइ उचरा-- संज्ञा, पु० (दे०) झगड़ा, बैर- "सँसव ठठाइ फुलाउब गालू"--रामा० । विरोध, टंटा, बखेड़ा। ठठेर-मंजारिका-संज्ञा, स्त्री० यौ० (हि. ठर-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्थाता ) समूह, ठठेरा + मार्जारिका ) ठठेर की बिल्ली जो ठठेरे रचना, सजावट। के गढ़ने का ठक ठक शब्द सुन कर भी ठटकाला-वि० दे० ( हि० गट ) सना- | नहीं डरती। सजाया, ठाटदार। ठठेरा-संज्ञा, पु० दे० ( अनु० ठक ठक ) ठटना-स० क्रि० दे० (हि. ठाढ़ ) ठहरना, कसेरा, पीतल, फूल के बरतन बनाने वाला। सजाना । अ० क्रि० खडा रहना, सजना। स्त्री० ठठेरी-ठठेरिन । मुहा०-ठठेरे ठठेरे (हि. ठाठ ) गाना प्रारम्भ करना । बदलाई - जैसे के साथ तैसा व्यवहार । उनि-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. ठटना) बनाव, ठठरे की बिल्ली-निर्भय, निडर मनुष्य । रचना, सजावट। ठठेरी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( ठठेरा) ठठेरे ठटरी-ठठरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. ठाट ) का काम । यौ० ठठेरी बाज़ार-कसेरों अस्थिपंजर खरिया. अरथी। की बाजार, ठठेरहाई (ग्रा.)। ठटु- संज्ञा, पु. ( हि० ठाट ) रचना, बनाव, ठठोल-सज्ञा, पु० दे० (हि. टट्ठा) दिल्लगीविधि क्रि० (दे०) ठाठ बनाओ। बाज, हँ ही दिल्लगी। सज्ञा, स्त्री० टठोली ठट्ट - सज्ञा, पु० दे० (स० स्थाता) समूह, "जो मैं कहूँगा तू उसे समझेगा है ढेर रचना, सजावट । ठठोल " -- ग्रा०॥ ठट्टा-सज्ञा, स्त्री० दे० (हि. ठाट ) ठटरी, भरथी । “जरिगौ लोहू मास रहि गई हाड़ ठड़ा-ठढ़ा-वि० दे० (हि० स्थातृ ) सीधा की ठही"-गिर। खड़ा । ठाढा (ग्रा०)। | ठन-संज्ञा, स्त्री० दे० ( अनु० ) रुपया श्रादि ठट्ठा-संज्ञा, पु० दे० (सं० अट्टहास ) मसखरी, दिल्लगी। यौ० ठट्टेबाज-दिल्लगी बाज . या धातु के खड़कने या बजने का शब्द, सज्ञा, स्त्री० ठठ्ठ बाजी। मुहा०-ठट्ठा उनक, ठनकार । उड़ाना-उपहास करना। ठठ्ठा मारना ठनक-संज्ञा, स्त्री. ( अनु० ठन ठन ) ढोल -उपहास या हँसी करना, खूब हँसना । आदि बाजे का शब्द, चसक, टीस । उठ-सज्ञा, पु० दे० (सं० स्थाता ) समूह, । ठनकना-अ. क्रि० दे० (अनु० ठनठन) . रचना, सजावट। ठन ठन की आवाज़ होना, चसकना, ठठई*-संज्ञा, स्त्री० द० (सं० अट्टहास ) | टीप मारना । मुहा०-माथा ठनकनाहैंसी, दिल्लगी। भारी चिन्ता होना, सन्देह या शंका होना। उठकना -अ० कि० दे० ( सं० स्थष्ट+ | ठन काना-२० क्रि० दे० ( हि० ठनकना) करण ) एकाएक रुक या ठहर जाना, ढोल, तबला आदि बजाना। ठिठकना । “छिनकु चलति ठठकत छिनकु" ठनकार-संज्ञा, स्त्री० दे० (अनु०) उन -वि०। ठन शब्द। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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