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अधर
अधस्तल
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प्रधर-संज्ञा, पु. (सं०) नीचे का प्रोठ, अधगमृत-संज्ञा, पु० (सं० यौ० अधर+ अोठ संज्ञा पु० (हि. अ+धरना ) बिना अमृत) बदनामृत, अधर-सुधा, अोठों का आधार का स्थान, अंतरिक्ष, निराधार, रस, “पीवै सदा अधरामृत पै".-'सनेही'। पाताल-अधस्तल, योनि, स्मरागार। वि०, अधरीकृत-क्रि० वि० (वि०) (सं०) जो पकड़ में न आवे ( अ+धरना = अपवादित, पराहृत, तिरस्कृत, निन्दित । पकड़ना ) चंचल, नीच, बुरा, क्रि० वि० अधरीभून--वि० (सं० ) विप्रकृत, अधरीअंतरिक्ष में, बीच में, मध्य में, " गूढ़ कपट | कृत, पराहत । प्रिय वचन सुनि, नीच अधर बुधि रानि" + अधर्म--संज्ञा, पु० (सं० ) धर्म के विरुद्ध, रामा० "अधर धरत हरि के परत"-- वि०। कुकर्म, दुराचार, पाप, दुष्कर्म, अन्धेर, मु०-अधर में भूनना, पड़ना, लटकना | अन्याय, विधर्म, धर्म-विरोध,-(पुराणानु-अधूरा रहना, पूरा न होना, पशोपेश में सार-ब्रह्मा की पीठ से इसकी उत्पत्ति हुई, पड़ना, दुबिधा में पडना, अधर में इसके वाम भाग से अलक्ष्मी ( दरिद्रता) छोड़ना, डालना-बीच में या आधी दूर _है जो इसी से व्याही गई।। पर छोड़ना, मझधार में डाल देना, पूरा अधर्मात्मा-वि० पु. ( सं० ) अधर्मी, साथ न देना, अधर का त्रिशंकु होना, पापी, अन्यायी। करना या बनाना-बीच में अटका देना, | अधमाचारा-वि० पु० (सं० यौ० ) नीच कहीं का न रखना।
आचार वाला, दुष्कर्मी। " तैसे सक्ति दीन्ही काटि श्रावति अधर अमिष्ट- वि० पु० (सं० ) अति दुराचारी, मैं।" अ० ब०।
पापिष्ट। अधरज-संज्ञा, पु० (सं० यौ० अधर+रज )
अधर्मो-वि० पु. (सं० ) पापी, दोषी, अोठों की ललाई, सुर्जी, अोठों पर की पान
दुराचारी। या मिस्सी की रेखा।
अधरोत्तर-वि० (सं०) ऊँचा-नीचा, अच्छाअधरपान-सज्ञा, पु. ( स० ) श्रोष्ठ का बुरा. कम-ज्यादा, क्रि० वि० ऊँचे-नीचे । चुम्बन।
अधरात-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अर्ध+ अधरबुद्धि -(दे०-अधर + बुधि) वि० यौ.
रात्रि ) यो०-आधी रात । (सं० ) नासमझ, अबूझ "तीय अधर बुधि
अधवन-वि० ( दे० ) प्राधा, अई, रानि"-रामा०।
बराबर का भाग, ( क्रि० स० अधियाना )। अधरम -संज्ञा, पु० दे० (सं० अधर्म )
अधवा--- संज्ञा, स्त्री० (सं० +धव = पति ) अधर्म, पाप, दुष्कर्म ।
विधवा, बिना-पति की स्त्री राँड़। प्रधरमधु-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) अधर
अधधार (अधवाड़) संज्ञा, स्त्री० (दे०) रस, अधरात। प्रधररस-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अधरा
श्राधाथान, अधाई, आधे घर के भादमी, मृत, अोठों की मिठास, अधरारस (दे०
आधे हिस्सेदार। ७० ) " है मुरली अधरारस पीजै"
अधसेरा (अधसेरघा ) संज्ञा, पु. ( दे.
यौ० प्राधा+सेर ) दो पाव का मान, आधे अधराधर-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) दोनों सेर का बाट, अस्सेरा (प्रा.)। मोठ।
अधस्तल-संज्ञा, पु. ( सं० ) नीचे की प्रधरा-संज्ञा, पु० दे० (सं० अधर ) श्रोठ, कोठरी, नीचे की तह, तहख़ाना, अधअधोदिक, वि० नीचा, अधीर ।
स्तात, अधरात।
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