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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फर जिजीविषा ७३० जिन्ह जिजीविषा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) जीने की जितामित्र-वि० यौ० (सं० जित + अमित्र) इच्छा, जीवनेच्छा। विष्णु, विजयी। जिजीविष-वि० (सं०) जीने की इच्छा जिताष्टमी - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) आश्विन वाला, जीवनेच्छुक । कृष्ण अष्टमी के दिन पुत्रवती स्त्रियों का जिजिया-संज्ञा, पु० (दे०) जज़िया। व्रत ( हिन्दू ) जिउतिया (ग्रा०) । जिज्ञासा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) जानने या जिताहार--संज्ञा, पु. यौ० (सं० जित+ ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा, पूछताछ. प्रश्न । आहार ) अन्न जयी अन्न को स्वाधीन करने जिज्ञासु-वि. (सं०) जानने की इच्छा वाला । रखने वाला, खोजी। जितेंद्रिय -- वि० यौ० (सं०) इन्द्रियों को जिज्ञास्य-वि० (सं०) पूछने योग्य । - वश में करने वाला, समवृत्ति वाला, शांत, जिठाई-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० जेठा+ ई. जितेंद्री। प्रत्य० ) बड़ाई, जेठापन । जिते -वि. वहु० (हि. जिस + ते) जितने। जिठानी-संज्ञा, स्त्री० ( जेठा ---नो-प्रत्य० ) | जितक्ष-क्रि० वि० दे० (सं० यत्र प्रा० यत्त ) पति के बड़े भाई की स्त्री। जिधर, जिस थोर । “ गोला जाय जबै जब जित्-वि० (सं०) जीतने वाला, जेता। जिते"-रामा । जित-वि० (सं०) जीता हुया । संज्ञा, पु० जितो-जितौ--- वि० दे० (हि.जिस ) (सं०) जीत, विजय | *-क्रि० वि० दे० जितना, जेतो (दे०) ( परिमाण सू. )। (सं० यत्र ) जिधर, जिस ओर, जिते, जित्वर-वि० (सं०) जेता, विजयी। "भ्रातृजहाँ। भिजित्वरैर्दिशाम् ।” जितना-वि० (हि. जिस-+ तना प्रत्य०) जिद-जिद्द-संज्ञा, स्त्री. (अ. ज़िद ) वैर जिस मात्रा या परिमाण का। क्रि० वि० शत्रुताहठ, दुराग्रह । वि. जिद्दी। जिस मात्रा या परिणाम में, जित्ता, जितो, ज़िद्दी-वि० (फा० ) ज़िद करने वाला, जेतो (ब.)। (स्त्री० जितनी)। हठी, दुराग्राही। जितवना-स० क्रि० (दे०) जिताना। जिधर क्रि० वि० दे० (हि. जिस + धर जितवाना-२० क्रि० (दे०) जिताना।। प्रत्य. ) जिस भोर, जहाँ, जंघे (ग्रा०)। जितवारी-वि० दे० (हि. जीतना ) जीतने | जिन--संज्ञा, पु० (सं०) विष्णु, सूर्य, बुद्ध, वाला, विजयी। जैनों के तीर्थकर । वि. सर्व० दे० (सं० जितवैया-वि० दे० (हि. जीतना+ यानि ) जिस का बहु० । अव्य. - मत । संज्ञा, पु. ( अ.) भूत। वैया-प्रत्य० ) जीतने वाला। ज़िना --संज्ञा, पु० (अ.) व्यभिचार ! जितशत्रु-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) विजयी । जिनाकार-वि० ( फा० ) व्यभिचारी, जीतने वाला। छिनरा । संज्ञा, स्त्री० जिनाकारी। जिता-संज्ञा, पु० (दे०) किसानों की जिना-बिल्जत-संज्ञा, पु. यो(अ जुताई, बुआई में परस्पर सहायता, हूँड़। किसी स्त्री के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध क्रि० वि० अ० (दे०) जितो. जेतो, जितना। बलात संभोग करना । जिताना-स० क्रि० दे० (हि० जीतना का जिनि - अव्य० ( हि० जनि ) मत, नहीं। प्रे० रूप ) जीतने में सहायता करना, जिनिस-संज्ञा, स्त्री० (दे०) जिस । (प्रे० रूप ) जितवाना। जिन्हीं*- सर्व० (दे०) जिन । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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