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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - जालरंध्र ७२८ जाहिरा जिसमें जाल की भाँति पास पास बहुत से जावका-संज्ञा, पु० (सं०) लौंग, लौंग का छेद हों। जालरंत-संज्ञा, पु० यौ० (स०) जाली का जावन* --संज्ञा, पु० (दे०) जामन । झरोखा या छिद्र। " जावन लौं को बचत नहिं दधि खावें जालसाज-संज्ञा, पु० ( म० जग्रल + फ़ा. गोपाल।" साज़ ) दूसरों को धोखा देने के लिये जावानी- संज्ञा, स्त्री० ( सं० जवानी) अजझूठी कार्रवाई करने वाला। वाइन । “तुद्रा जवानी सहितोकषायः " जालसाज़ी-संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) फरेब या जाल करने का काम, दगाबाज़ी | जावा-- संज्ञा, पु० (दे०) भारत के पूर्व में जाना-संज्ञा, पु. ( सं० जाल ) मकड़ा का एक उपद्वीप । बुना हुआ पतले तारों का वह जाल जिसमें जावित्री-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० जातिपत्र ) वह मक्खियां और कीड़े मकोड़ों को फँसाती है, आँख की पुतली के ऊपर सफ़ेद झिल्ली जायफल का सुगंधित छिलका ( औषधि )। सी पड़ने का रोग, घाल-भूरा बाँधने का जापनी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) यक्षिणी। जाल, पानी रखने का मिट्टी का बड़ा जादु *----वि० ( हि० जा ) जासू (दे०) बरतन, माला (ग्रा० )। जिसका, जिपकी, जिसके । 'जासु बिलोकि जालिक-संज्ञा, पु. ( स०) मछुवा, केवट, अलौकिक साभा" --रामा० । धीवर, मकरी, मकरा, इन्द्रजालिक, मदारी जासूस--- संज्ञा, पु. (अ.) गुप्त रूप से बाज़ीगर । वि० जाल से जीने वाला। किली बात या अपराध आदि का पता जालिका- संज्ञा, स्त्री० (सं०) जाली, समूह लगाने वाला, भेदिया, मुखबिर । दल। जासूसी-संज्ञा, स्त्री० (हि. जासूस ) गुप्त जालिम-वि० ( अ०) जुल्म करने वाला, रूप से किसी बात का पता लगाना, क्रूरकर्मा, अत्याचारी। जासूस का काम । जालिया-वि० (हि० जाल ---इया प्रत्य० ) जहा--संज्ञा, पु. (दे०) देखा, निरीक्षण जालसाज़, फरेब करने या धोखा देने वाला। किया । " औ फिर मुख महेस का जाहा" जाली-संज्ञा, स्त्री. ( हि० जाल ) लकड़ी पत्थर या धातु की चादर में बना छोटे छोटे जाहिाँ*-वि० दे० (हि. जो) जाही छेदों का समूह, कसीदे का एक काम, भरना, । (दे०) जिसको, जिसे, जाकह (दे०)। छोटे छोटे छेद वाला महीन कपड़ा, कच्चे । " जाहि जोहि वृन्दारक वृन्द मुनि मोहेहै " श्राम की गुठली के ऊपर का तंतु-समूह ।। -रना। वि० ( अ० जअल ) नकली । जैसे—जाली | जाहिर-वि० ( अ० ) प्रगट, प्रकाशित, सिक्का, फरेबी। प्रत्यक्ष, खुला या जाना हुआ, विदित । जाला-संज्ञा, पु० (सं०) पामर, ऋर। जाहिरदारो-संज्ञा, स्त्री० ( अ० ) दिखावे जाव*-संज्ञा, पु० दे० (सं० यावज) | की बात या काम प्रत्यक्षता । लाह से बना पैरों में लगाने का लाल रंग जाहिरा--क्रि० वि० (अ.) देखने में, (स्त्रियों) अलता (प्रान्ती० ) महावर। प्रगट रूप में प्रत्यक्ष में । " जाहिरा काबे " चरन प्रिय के जावक रचे"-शकु० । का जाना और है।" For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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