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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जलज चादर ) जल का फैला हुधा पतला प्रवाह । जलज - वि० (सं०) जो जल में उत्पन्न हो । संज्ञा, पु० (सं०) कमल, शंख, मोती, जलजन्तु । जलज नयन जल 66 मछली, जानन जटा हैं सिर ७१७ ------ ( हि० सं० ) - तु० । जलजला -- संज्ञा, पु० ( फा० ) भूकंप, भूडोल । जलजात - संज्ञा, पु० वि० (दे०) जलज | "लखि जलजात लजात " वि० । जलजीव- संज्ञा, पु० यौ० जलजंतु, जल के प्राणी | जलडमरूमध्य - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दो बड़े समुद्रों को जोड़ने वाला समुद्र का पतला भाग | ( भूगो० ) | ( विलो०-स्थलडमरूमध्य ) जलतरंग - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जल से भरे प्यालों को क्रम से रखकर बजाने का बाजा, पानी की लहरी | जलत्रास - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कुत्ते, शृगालादि के काटने पर जल देखने से उत्पन्न भय, जलातंक | जलथंभ - संज्ञा, पु० यौ० (दे०) जलस्तंभ जलथंभन । " कछु जानत जलथंभ बिधि, दुर्योधन लौं लाल " - वि० । जलद - वि० (सं०) जल देने वाला, जल के पर्यायवाची शब्दों के धागे द लगाने से इसके पर्यायवाची शब्द बनते हैं । संज्ञा, 1 पु० (सं०) मेघ, बादल, मोथा, कपूर । जलधर - संज्ञा, पु० (सं०) बादल, मोथा, समुद्र | जल के पर्याय शब्दों के आगे धि ( धर ) लगाने से इसके पर्याय शब्द बनते हैं । जलधरी - संज्ञा, स्त्री० (सं०) शिवलिंग का श्रर्धा, जलहरी (दे० ) । जलधारा - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) पानी का प्रवाह या धारा, जलधारा के नीचे बैठे रहने की तपस्या | संज्ञा, पु० बादल, मेघ । 'भूमितें प्रगट होहिं जलधारा " - रामा० । 46 जलपक्षी जलधि-संज्ञा, पु० (सं०) समुद्र, दसशंख की संख्या । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जलन - संज्ञा, स्त्री० ( हि० जलना ) जलने की पीड़ा या दुख, दाह, ईर्ष्या, डाह । जरन जरनि (दे० ) । जलना - प्र० क्रि० दे० (सं० ज्वलन ) श्रग्नि के संयोग से अंगारे या लपट के रूप में हो जाना, दग्ध होना, बलना, श्राँच का भाफ़ दि के रूप में हो जाना, श्राँच लगने से किसी का पीड़ित होना, झुलसना, दुखी होना, कुदना, डाह या ईर्षा करना, कुपित होना। मुहा० - जलाभुना होना ( बैठना ) - प्रति कुपित होना ( बैठना ), जलकर खाक (राख) या लाल होनाश्रति कुपित होना, आग-बबूला होना । जले को जलाना --- दुखी को दुख देना । मुहा० - जले पर नमक ( माहुर देना ) छिड़कना - किसी दुखी या व्यथित मनुष्य को और दुख देना । ईर्ष्या या द्वेष आदि के कारण कुढ़ना । मनहुँ जरे पर माहुर देई "- - रामा० । मुहा० - जली-कटी या जली-भुनी बात--खलती या लगती हुई बात, द्वेष, डाह या क्रोधादि से कही गई कटु बात । ( प्रे० रूप) जलाना, 66 जलवाना । जलनिधि - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) समुद्र | " जलनिधि रघुपति दूत विचारी " रामा० । जलपति - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) समुद्र, वरुण, जलेश, जलाधिपति । ( यौ० ) | जलपना - प्र० क्रि० दे० (सं० जल्प ) लंबीचौड़ी बातें करना । " यहि विधि जलपत भा भिनसारा" - रामा० । स० क्रि० (दे० ) डींग मार कर कहना ! "" कटु जलपसि निसिचर अधम " " जलपहिं कलपित बचन श्रनेका " रामा० । संज्ञा स्त्री० (दे०) डींग, व्यर्थ की बकवाद | जनि जलपना करि सुजस नासहि "- रामा० । जलपक्षी - संज्ञा, पु० यौ० (सं० जल पक्षिन् ) " For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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