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जयद्रथ
जयद्रथ - संज्ञा, पु० (सं०) सिंधु सौबीर का राजा जो दुर्योधन का वहनोई था । जयना* - अ० क्रि० दे० (सं० जयन् ) जीतना, विजय प्राप्त करना :
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जयपत्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वह पत्र जो पराजित पुरुष अपने पराजय के प्रमाण में विजयी को लिख देता है, विजय-पत्र | जयपाल- संज्ञा, पु० (सं०) जमालगोटा ( श्र० ) । विष्णु, राजा, भूपाल । जयमंगल - संज्ञा, ५० यौ० (सं०) राजा की सवारी का हाथी । जयमाल - संज्ञा, स्त्रो० यौ० (सं० जयमाला ) विजयी को विजय पाने पर पहनाने की माला, वह माला जो स्वयंवर के समय कन्या अपने बरे हुये पुरुष को पहनाती है । 'पहिराबहु जयमाल सुहाई" "ससिहि सभीत देत जयमाला' - रामा० । जयस्तंभ - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विजय का स्मारक स्तंभ या धरहरा, विजय स्तंभ, जयखंभ (दे० ) ।
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जया - संज्ञा, स्त्री० (सं०) दुर्गा, पार्वती, हरी दूब, श्ररणी या जैत का पेड़, हरीतकी, हरपताका, ध्वजा, गुड़हल का फूल । वि० जय दिलाने वाली, जयकारिणी । जयी - वि० (सं० जयिन् ) विजयी, जयशील । जर - संज्ञा, पु० दे० (सं० जरा ) वृद्धा
वस्था, बुढ़ापा | संज्ञा, पु० (दे०) ज्वर बुख़ार । ज़र - संज्ञा, पु० ( फा० ) सोना, स्वर्ण, धन दौलत, रुपया-पैसा । यौ०-ज़रगरसोनार संज्ञा, स्त्री० ज़रगरी । जरकटी - संज्ञा, पु० (दे०) एक शिकारी पक्षी | जरकस, जरकसोक - वि० दे०फा० ० ज़रकश) जिस पर सोने के तार आदि लगे हों । जरखेज - वि० ( फा० ) उपजाऊ, उर्वरा भूमि । जरठ- वि० (सं०) कर्कश, कठिन, वृद्ध, बुड़ढा, जीर्ण, पुराना । " जाना जरठ जटायू एहा रामा० ।
जरांकुश
जरतार -- संज्ञा, पु० दे० ( फा० जर + हि० तार) सोने या चाँदी आदि का तार, ज़री I ज़रतुश्त संज्ञा, पु० (दे०) जरदुश्त । जरत - वि० (सं०) वृद्ध, पुराना, बुड्ढा । स्त्री० जरती ।
जरत्कारु -- संज्ञा, पु० (सं०) एक ऋषि । ज़रद - वि० दे० ( [फा० ज़र्द ) पीला, पीत । संज्ञा, स्त्री० जरदी |
ज़रदा--- संज्ञा, पु० (फ़ा० ) चावलों का एक व्यंजन, पान में खाने की सुगंधित सुरती, पीले रंग का घोड़ा |
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ज़रदालू - संज्ञा, पु० ( फा० ) . खूबानी, (मेवा) । ज़रदो- संज्ञा, त्रो० ( फा० ) पिलाई, पीलाअंडे के भीतर का पीला चेप । ज़रदश्त- संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) फ़ारस देश के पारसी धर्म का प्रतिष्ठाता, आचार्य । ज़रदोज़- संज्ञा, पु० ( फा० ) जरदोजी का काम करने वाला ! ज़रदोजी- संज्ञा, स्त्री० (फ़ा० ) कपड़ों पर सलमे सितारों आदि की दस्तकारी । जरन
- संज्ञा, स्त्री० (दे०) जलन, जरनि । जिय की जरनि न जाय
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- रामा० ।
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जरना ३ - प्र० क्रि० (दे० जलना । स० क्रि० (दे०) जड़ना । स० क्रि० (दे०) जराना । ज़रब -- संज्ञा, स्त्री० ( ० ) श्राघात, चोट । मुहा०-- जरब देना - चोट लगाना, पीटना, गुणा करना ( गणित ) । ज़रवक्त-संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) कलाबत्त बेल-बूटे का रेशमी वस्त्र । जवाफ़ी - वि० ( फा० ) जिस पर जरवाफ़ का काम बना हो । संज्ञा, त्रो० जरदोजी । जरबीला - वि० (फा० जरब + ईला प्रत्य०) भड़कीला और सुन्दर ।
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ज़रर - संज्ञा पु० ( ० ) हानि, क्षति, श्राघात, चोट ।
जरांकुश - संज्ञा, पु० दे० (सं० यज्ञकुश, ज्वरांकुश ) मूँज जैसी एक सुगंधित घास, ज्वर की दवा |