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छिनवाना
छिड़कना छिड़कना-स० कि० दे० ( हि. छींटा+ बितिरह- संज्ञा पु० दे० (सं० क्षितिरुह ) करना ) द्रव पदार्थ को इस प्रकार फेंकना । पेड़, वृक्ष। कि उसके महीन महीन छींटे फैल कर इधर- छितीस-संज्ञा पु० दे० यौ० (सं० क्षितीश) उधर पड़ें। किरकना (दे०)।
राजा, महिपाल । छिड़कवाना–स. क्रि० दे० (हि० छिड़कना चिदना--प्र. कि० दे० (हि. छेदना ) का प्रे० रूप ) छिड़कने का काम दूसरे से छेदयुक्त होना, घायल होना, चुभना गड़ना । कराना। छिड़काना।
पकड़ना (दे० ) (प्रे० रूप) छिदवाना । छिड़काई-संज्ञा स्त्री० दे० ( हि० छिड़कना)
छिदाना-स० कि० दे० ( हि० छेदना ) छेद छिड़कने की क्रिया का भाव या मज़दूरी,
कराना, चुभाना, फँसाना, पकड़ाना, देना। छिड़काव ।
छिद्र--संज्ञा पु० दे० (सं० ) छेद, सूराख, छिड़काव-संज्ञा पु० दे० (हि० छिड़कना )
बिल, गड्ढा, विवर, अवकाश । ( वि. पानी आदि के छिड़कने का काम ।
छिदित ) जगह ।..." छिद्रेष्वनाः बहुली
भवंति"। छिड़ना-प्र. क्रि० दे० हि० छेड़ना) प्रारंभ | या शुरू होना, चल पड़ना, झगड़ा होना।
छिद्रान्वेषण -- संज्ञा. पु० यौ० (सं० ) छिड़ाना - स० कि० ( दे० ) छिनाना,
दोष हूँदना, खुचुर निकालना, (वि० छिनवाना, छीनना, फँडाना (ग्रा.)।
| छिद्रान्वेषो ) वि. छिद्रान्वेषक। छिण-संज्ञा पु० दे० (सं० क्षण ) थोड़ा विद्रावधान
छिद्रान्वेषी-वि• यो० (सं० छिद्रान्वोषिन् ) समय, क्षण, छिन (ग्रा.) खिन (प्रांतीय पराया दोष ददने वाला। स्त्री० छितनियाँ-कितनी-संज्ञा स्त्री० (दे० )
छिद्रान्वेषिणी। डलिया, बांस की दौरी, चंगेली, चंगेरी
छिद्रित--वि० (सं. छिद्र ) छेद किया (प्रान्ती० )।
हुआ, दूषित। छितरना-प्र० कि० (दे० ) फैलना या
| छिन—संज्ञा, पु. (दे०) क्षण, छन (दे०) बिखरना।
"तेहि छिन मध्य राम धनु तोरा' - रामा०। वितर-बितर-संज्ञा पु० (दे० ) फैले हुये,
छिन -कि० वि० दे० यौ० ( हि छिन तितर-बितर ।
एक) एक क्षण, दम भर, थोड़ी देर । क्षणैक
(सं०) छिनेक (दे०)। छितराना-अ० कि० दे० ( सं० क्षिप्त +
छिनकना-स० कि० दे० (हि. छिड़कना ) करण ) किसी वस्तु के खंडों या कणों का
नाक का मल ज़ोर से साँस-द्वारा निकालना, गिर कर इधर-उधर फैलना, तितर-बितर |
पानी छिड़कना। होना, बिखरना । स० क्रि० खंडों या कणों |
छिनवि-संज्ञा, स्त्री० दे० यो० (सं० को फैलाना, बिखारना, छींटना, दूर दूर या | क्षण - छवि ) बिजली। "छिनछबि छबि विरल करना । (प्रे० रूप ) छितरवाना। नहिं गगन विराजत " -रामा० । छिति*-संज्ञा स्त्री० (दे० ) तिति, पृथ्वी। छिनदा-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० क्षणदा) यौ०-छिति-मंडल।
रात्रि, निशा। वितिकत, (नाथ, पति, स्वामी, पाल ) छिनना-अ० कि० दे० (हि० ) छीन संज्ञा पु० यौ० दे० (सं० क्षितिकांत ) ज़मीन लिया जाना, हरण होना। का मालिक, राजा, भूपति ।
छिनवाना-स० कि० (हि. छीनना का प्रे० छितिज-संज्ञा स्त्री० (दे० ) क्षितिज (सं०)। रूप ) छीनने का काम दूसरे से कराना।
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