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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छाँही। छवैया छागल छवैया-संज्ञा, पु० (दे० ) छाने वाला। घोड़े या गधे के पिछले पैरों को सटा कर छहरना-प्र. क्रि० दे० (सं० क्षरण) । बाँध देना, सांदना (ग्रा.)। छितराना, फैलना, शोभा देना। छांदोग्य · संज्ञा, पु० (सं० ) सामवेद का छहराना*-प्र. क्रि० दे० (सं० क्षरण ) | एक ब्राह्मण, छांदोग्य ब्राह्मण का उपनिषद् । छितराना, बिखराना, चारों ओर फैलाना। | छाँव--संज्ञा, स्त्री० (दे०) छाँह । "बिच बिच छहरत बंद मनो मुक्तामनि छांवड़ा --संज्ञा, पु० दे० (सं० शावक) स्त्री० पोहति "---हरि० । “ टूटी तार मोती जानवर का बच्चा, छोटा बच्चा, छाँधड़ी। छहरानी"-पद्मा। छाँह-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० छाया) जहाँ छहरीला-वि० दे० (हि. छरहरा) आड़ या रोक के कारण धूप या चाँदनी न छितराने या विखेरने वाला, छबीला । स्त्री० पड़े, छाया, ऊपर से छाया हुआ स्थान, बहरीली। बचाव या निर्वाह का स्थान, शरण, संरक्षा, छहिया -संज्ञा, स्त्री० (दे० ) छाया, छाँह, छाया, परछाँहीं, छांव (ग्रा० ), छाँही (दे० ) " पाँय पखारि, बैठि तरु छाँही" छाँगना-स० कि० दे० (सं० छिन्न-+ करण) । -रामा० । मुहा०-छाँह न छूने देनाडाल आदि को काट कर अलग करना। पास न फटकने देना, निकट न आने देना। छांगुर-संज्ञा, पु० दे० (हि. छः+अंगुल ) छाँह न छू पाना-न प्राप्त कर पाना । छै अंगुलियों वाला, छंगा (दे०)। छाँह पड़ना-प्रभाव या असर पड़ना । छांट-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. छाँटना) छाँटने, छाँह बचाना-दूर दूर रहना, पास न काटने या न करने की क्रिया या ढंग, कै जाना। प्रतिबिम्ब, भूतप्रेत आदि का करना, अलग की हुई निकम्मी वस्तु स्त्री० । प्रभाव, आसेब-बाधा । "मोही मैं रहत तऊ छटनी। संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० छर्दि) छवावत न छाँह मोहिं "--देव० । वमन, कै। छाँहगीर-संज्ञा, पु० (हि. छाँह ---गीर फा०) छाँटना-स० क्रि० दे० (सं० खंडन ) छिन्न राजछत्र, दर्पण, शीशा । “मनोमदन छितिकरना, काट कर अलग करना, किसी पाल को, छाँहगीर छवि देत"---वि० । वस्तु को किसी विशेष आकार में लाने के | छाक-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. छकना ) तृप्ति, लिये काटना या कतरना, अनाज में से इच्छा-पूर्ति, दोपहर का भोजन, दुपहरिया, कन या भूसी कूट फटकार कर अलग कलेवा, नशा, मस्ती। करना, चुनना, पृथक या दूर करना, छाकनाta-अ. क्रि० दे० ( हि० छकना) हटाना, साफ करना, किसी वस्तु का कुछ खा-पीकर तृप्त होना, श्रघाना, अफरना, नशे अंश निकाल कर छोटा या संक्षित करना, में मस्त होना, हैरान होना, छाके (ग्रा०)। चिन्दी की बिन्दी निकालना, अलग या "जगजीव मोह मदिरा पिये, छाके फिरत दूर रखना । मुहा०-पक्की छांटना-शुद्ध | प्रमाद में"-भर० । "प्रेममद छाके पद परत भाषा बोलना। कहाँ के कहाँ".-रखा। छोडना*-स० क्रि० (दे० ) छोड़ना। | काग-संज्ञा, पु. (सं० ) बकरा। स्त्री० छाँद-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० छद =बंधन) छागी। चौपायों के पैर बाँधने की रस्सी, नोई। छागल -संज्ञा, पु० दे० (सं० ) बकरा, बकरे छांदना-स० क्रि० दे० (सं० छंदना) की खाल की चीज़ । संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. रस्सी आदि से बाँधना, जकड़ना, कसना, सांकल ) पैर का एक गहना, झाँझन । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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