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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चालबाज चालबाज - वि० (हि० चाल + बाज़ फा० ) छली, धूर्त, ठग, चालाक । चाला - संज्ञा, पु० (हि० चाल ) कूच, प्रस्थान, नयी वधू का पहले पहल मायके से ससुरे जाना, यात्रा का मुहूर्त । "सोम सनीचर पुरुन चाला" । ६५५ - चालाक - वि० ( फ़ा० ) चतुर, दक्ष, धूर्त, चालबाज़, ठग, चालिया (दे० ) | चालाकी – संज्ञा स्त्री० ( फ़ा० ) चतुराई. पटुता, व्यवहार कुशलता, होशियारी, धूर्तता, चालबाज़ी, युक्ति । चालान - संज्ञा, पु० (दे० ) चलान, अपराधी को न्यायार्थ अदालत में भेजना, रवानगी । चाली -- वि० दे० ( हि० चाल) धूर्त, चाल बाज़, चञ्चल, नटखट | चालीस ( चालिस ) वि० दे० (सं० चत्वारिंशत् ) बीस का दूना | संज्ञा, पु० तीस और दस की संख्या या अंक । चालीसा - संज्ञा, पु० दे० ( हि० चालीस ) चालीस वस्तुओं का समूह, चालीस दिन का समय, चिल्ला । स्त्री० बालासी । चालुक्य - संज्ञा, पु० (सं० ) दक्षिण का एक प्राचीन पराक्रमी राज-वंश | बालू - वि० संचालन | दे० ( हि० चालना ) प्रचलित, चाल्ह - संज्ञा, स्त्री० (दे० ) चेल्हवा मछली । चावँ चावँ - संज्ञा, स्त्री० (दे० ) चायँ चायँ । चाव- संज्ञा, पु० दे० ( हि० चाह ) श्रभि लाषा, लालसा, इच्छा प्रेम, चाह, उत्कंठा, शौक, दुलार, लाड़-प्यार, नखरा, उमङ्ग, उत्साह, श्रानन्द, चाय ( दे० ) | चावड़ी - संज्ञा स्त्री० ( दे० ) पड़ाव, चट्टी, पथिकों के उतरने का स्थान । चावल - संज्ञा, पु० (सं० तंदुल ) धान की गुठली, तंदुल, भात, चावल जैसे दाने, एक रत्ती का आठवाँ भाग, चाउर ( प्रा० ) । चाशनी -- संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) मिश्री, शक्कर या गुड़ को आग पर गादा और शहद के Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चाहिए सा किया हुआ शीरा । चसका, मज़ा, नमूने का सोना जो सोनार को गहना बनाने के लिये दिये हुए सोना से लेकर गाहक रख लेता है। चाप - संज्ञा, पु० (सं०) नीलकंठ, चाहा, पक्षी, चाख (दे० ) । " चारा चाष बाम दिसि लेई " - रामा० । चास - संज्ञा, पु० (दे०) खेती, कृषि, जुताई । नासा -- संज्ञा, पु० (दे० ) हलवाहा, किसान, खेतिहार । चाह - संज्ञा, स्त्री० (दे० ) ( सं० इच्छा या उत्साह ) इच्छा, अभिलाषा, प्रेम, प्रीति, पूछ, आदर, माँग, जरूरत, चाहना | संज्ञा, स्त्री० (हि० चाल = ग्राहट) ख़बर, समाचार | चाहक * — संज्ञा पु० ( हि० चाहना ) चाहने या प्रेम करने वाला । चाहत -- संज्ञा स्त्री० ( हि० चाह) चाह, प्रेम । चाहना - स० क्रि० ( हि० चाह ) इच्छा या अभिलाषा करना, प्रेम या प्यार करना, माँगना, प्रयत्न करना । "जाकी यहाँ चाहना है ताकी वहाँ चाहना है 1 देखना, ताना, ढूँढ़ना । संज्ञा स्त्री० (हि० चाहना ) चाह, ज़रूरत । " चाहा - संज्ञा पु० दे० (सं० चाष) बगुले का सा एक जल-पक्षी । स्त्री० चाही । यौ० चाहाचाही । -- 66 कर चाहाचाही संज्ञा स्त्री० यौ० (दे० ) परस्पर प्रीति सा मैत्री, चाहा का जोड़ा । चाहि* - अव्य० (सं० चैव = और भी ) अपेक्षाकृत (अधिक ) बनिस्बत, देखकर, इच्छा से, प्रेम से । क्रि० चाहिये, I कंगन को आरसी को देखत है चाहि" वृन्द० । चाहिए - अव्य० ( हि० चहचहाना ) उचित है, चाहि ( दे० ) उपयुक्त है, पसंद या प्यार कीजिये -" आपको न चाहै ताके बाप को न चाहिये " " कुलिसह चाहि कठोर श्रति” – रामा० । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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