SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 615
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra " www.kobatirth.org गोरसी भले तुम जो रस चाहौ न सो रस पैहौ " - रसाल । "6 गोरसी - संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० गोरस + ई - प्रत्य० ) दूध गरम करने की अँगीठी, गुरसी, गुरौसी (दे० ) । गोरसी पै दूध उफनात देखि दौरी मातु गोरक्षनाथ - संज्ञा, पु० (सं० गोरक्ष + नाथ ) गोरखनाथ | 1 गोरा - संज्ञा, पु० दे० (सं० गौर ) सफ़ेद और स्वच्छ वर्ण वाला, जिसके शरीर का चमड़ा सफेद और साफ़ हो ( मनुष्य ) फिरङ्गी, स्वच्छ वर्ण । गोराई -संज्ञा, स्त्री० ( हि० गोरा + ई, भाई- - प्रत्य० ) गोरापन, सुन्दरता, गुराई ( व्र० ) । गोरिल्ला -संज्ञा, पु० (अफ्रिका) बड़े आकार का एक वनमानुष, गोरिला (दे० ) । गोरी – संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० गौरी ) सफेद और स्वच्छ वर्ण वाली (स्त्री), सुन्दरी । “ गोरी को बरन देखे सोनो न सलोनो लागे " । गोरुत - संज्ञा, पु० (सं० ) दो कोस । गोरू—संज्ञा, पु० दे० ( सं० गो ) चौपाया, मवेशी । यौ० – गोरु- बछेरु । ६०४ गोला वृत्त, के आकार का । यौ० गोलाकार । गोलमटोल - वि० गोला | मुहा० - गोलगोल - स्थूल रूप से, मोटे हिसाब से, अस्पष्ट रूप से, साफ साफ नहीं । गोलवात - ऐसी बात जिसका अर्थ स्पष्ट न हो, घुमावदार बात | संज्ञा, पु० (सं० ) मंडलाकार क्षेत्र, गोलाकार पिंड, गोला, वटक | संज्ञा, पु० ( फा० गोल ) मंडली, झुण्ड । गोलक - संज्ञा, पु० (सं० ) गोलोक, गोल पिंड, विधवा का जारज पुत्र मिट्टी का बड़ा आँख का डेला ( पुतली, गुम्बद, धन रखने की सन्दूक या थैली, गल्ला, गुल्लक | (दे० ) किसी विशेष कार्य के लिए संग्रहीत धन या फंड । कुण्डा, गोरोचन - संज्ञा, पु० (सं० ) पीले रंग का एक सुगन्धित द्रव्य जो गौ के पित्त या मस्तक में से निकलता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | गोलंबर - संज्ञा पु० दे० ( हि० गोल + अंबर) गुम्बद, गुम्बद के श्राकार का गोल ऊँचा उठा हुआ पदार्थ, गोलाई, कलबूत, कालिब | गोल - वि० (सं० ) वृत्ताकार घेरे या परिधि वाला, चक्र के आकार का वृत्ताकार, ऐसे घनात्मक श्राकार का जिसके पृष्ठ का प्रत्येक विन्दु उसके भीतर के मध्य विन्दु के समान अन्तर पर हो, सर्व वर्त्तुल, गेंद आदि गोलगप्पा -संज्ञा, पु० दे० ( हि० गोल + अनु० - गप ) एक प्रकार की महीन और घी में तली करारी फुलकी । गोलचला – संज्ञा, पु० (दे० ) गोलन्दाज़, तोप चलाने वाला | गोलमाल - संज्ञा, पु० दे० ( सं० गोल – योग ) गड़बड़, अव्यवस्था । गालमिर्च - संज्ञा, स्त्री० यौ० दे० (हि० गोल + सं० मरिची ) काली मिर्च । गोल - यंत्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) ग्रहों, और नक्षत्रों की गति और अयन - परिवर्तन आदि के जानने का एक यन्त्र | गोलंदाज - संज्ञा, पु० ( फा० ) तोप से गोल- योग-- संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) ग्रहों का एक बुरा योग ( ज्यो० ), गड़बड़, गोलमाल । गोला चलाने वाला, तोपची । गोला - संज्ञा, पु० दे० ( हि० गोल ) किसी पदार्थ का बड़ा गोल पिंड, लोहे का वह गोल पिंड जिसे तोपों से शत्रुधों पर फेंकते हैं, वायु-गोला ( रोग ), जङ्गली कबूतर, नारियल की गिरी का गोल पिंड, अनाज या किराने की बड़ी दुकानों वाली मंडी या बाज़ार, लकड़ी का लम्बा लट्ठा जो छाजन में लगाने आदि के काम में श्राता For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy