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गूढगेह गुह-संज्ञा पु० (सं० ) कात्तिकेय, षडानन, मुहा०-गूंगे का गुड़-ऐसी बात अश्व, घोड़ा, विष्णु का एक नाम, राम- जिसका अनुभव तो हो पर वर्णन न हो मित्र निषाद-नायक, गुफा, हृदय । सिंज्ञा | सके, (स्त्री० गूंगी)। पु० दे० (सं० गुह्य ) गृह, मैला । गूंज--संज्ञा स्त्रो० दे० । सं० गुज ) भौरों के गुहक-संज्ञा पु० (सं० ) निषाद या केवट | गूंजने का शब्द, कलध्वनि, गंजार, प्रतिजिसने रामचन्द्र को गंगा पार उतारा था। ध्वनि, व्याप्त ध्वनि, लट्ट, की कील, कान गुहना-स० कि० (दे०) गथना, पिरोना। की बालियों का मुड़ा हुआ सिरा, गले का गुहर-संज्ञा, पु० (दे०) गुप्त, छिपा, ढका। एक भूषण, गुंज। गुहराना-स० कि० दे० (हि० गुहार ) गूजना-अ० क्रि० दे० (सं० गुजन ) भौंरों पुकारना, चिल्ला कर सहायता के लिये | __ या मक्खियों का मधुर ध्वनि करना, बुलाना । गोहराना (दे०)।
गुंजारना, प्रतिध्वनि होना । “गूंजत मधुगुहवाना (गुहाना)--स० कि० दे० (हि. कर-निकर अनूपा'' - रामा०। गुहना का प्रे० रूप ) गुहने का काम कराना, गेड़ा-संज्ञा, पु० (दे०) नाव का आड़ा काठ। गुंधवाना।
| गॅथना-स० कि० (दे०) गूंधना, सीना। गहाजनी-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) आँख की गंदना-स० कि. (दे.) मानना गाँटना फुड़िया, गुहेरी, बेलनी।
(पाटा ) एकत्रित करना, गोला बनाना । गुहा--संज्ञा स्त्री० दे० (सं.) गुफा, कंदरा। गेंदनी-संज्ञा, स्त्री. (दे० ) गुंदेला, वृक्ष गुहाई-संज्ञा स्त्री० दे० ( हि० गुहना ) | विशेष, गोंदा।
गुहने की क्रिया, ढंग, भाव या मज़दूरी। गदा—संज्ञा, पु० (दे०) अंतःसार । गहार, गृहारि-संज्ञा स्त्री० दे० ( हि० ) | गधना-स० क्रि० दे० (सं० गुध-क्रीड़ा) पुकार, दुहाई । गेोहार ( ग्रा० )। मु०
पानी में सान कर हाथों से दबाना या गुहार लगना-सहायता करना, "कौन
मलना, माड़ना, मसलना । स० वि० जन कातर गुहार लागिबे के काज"...
(सं० गुंफन ) गूथना, पिरोना, बालों का रस्ना० । “दीन-गुहारि सुनै स्रवननि भरि"
उलझाना। -सू०।
गू-संज्ञा, पु० (दे० ) मल, मैला । गुहिल-संज्ञा पु० (दे०) धन, वित्त,
गूजर- संज्ञा, पु० दे० (सं० गुर्जर ! (स्त्री० विभव, निधि, सिसौदिया वंश का प्रथम
गूजरी, गुजरिया) अहीरों की एक जाति । राजा, इसी से वे गुहिलोत कहाते हैं।
गूजरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० गुर्जरी) गूजर गुहेरी-संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) गुहाँजनी। जाति की स्त्री, ग्वालिन, पैर का एक ज़ेवर, गुत्थ-वि० (सं० ) गुप्त, छिपा हुश्रा, गोपनीय, छिपाने योग्य, गूढ, जिसका तात्पर्य गूझा-संज्ञा, पु० दे० (सं० गुह्यक ) ( स्त्री० सहज में न खुले।
गुझिया ) गोझा, पिरांक, फलों का रेशा । गुह्यक-संज्ञा पु. (सं० ) कुवेर-कोष रक्षक गूढ़-वि० (सं० ) गुप्त, छिपा हुआ, अभियक्ष ।
प्राय-गर्भित, गम्भीर, जिसका आशय जल्दी गुह्यकेश्वर--संज्ञा पु० यौ० (सं० गुह्यक + _ न समझ पड़े, कठिन, गहन । ईश्वर ) यशराज कुबेर, गुहाकपति। गूढगेह-संज्ञा, पु० यो० दे० (सं० गूढगृह ) गूंगा-वि० (फा० गूग----जो वोल न सके) गुप्त भवन, यज्ञगृह । “प्रौढ़ रूढ़ि को समूह जो बोल न सके, वाणी-रहित, मूक ।। गूढ़ गेह में गयो"-रामः ।
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