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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणकारक गुणोत्कीर्तन NEPCHARPAN गुणकारक (कारी)-वि० (सं०) फायदा गुणागार-गुणों की खानि, गुण-सागर, करने वाला, लाभदायक, लाभकारी। गुणनिधि, गुण निधान गुनाकर (दे०)। गुणगौरि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) पतिव्रता गुणागार-संज्ञा, पु० (सं० गुण -- आगार = या सोहागिन स्त्री, स्त्रियों का एक व्रत, घर) गुण-भवन, बड़ा गुणी, गुनागर दे०)। गनगौर (दे०)। "गुणागार संसार-पारं नतोऽहं"- रामा० । गुणग्राहक-संज्ञा, पु० या० (सं०) गुणों या गुणागुण-संज्ञा, पु० यौ० (सं० गुण-+ गुणियों का आदर करने वाला, क़दरदान । अगुण) गुण-दोष, भलाई-बुराई । गुनागुन वि० गुणों की प्रतिष्ठा करने वाला, गुन (दे०)। गाहक-(दे० )। संज्ञा, स्त्री० गुण गुणाढ्य- वि० (सं० गुण + पाढ्य ) गुणग्राहकता । वि० गुणग्राही। पूर्ण, गुणी, कात्यायन मुनि के समकालीन गुणज्ञ-वि० (सं० ) गुण को पहचानने एक प्राचीन कवि जिन्होंने वृहत्कथा नामक या जानने वाला, गुण पारखी. गुणी । संज्ञा, ग्रंथ बनाया। स्त्री० गुणज्ञता। गुणातीत-संज्ञा, पु० यौ० (सं० गण-+गुणन-संज्ञा. पु. (सं०) गुणा करना, जरब अतीत ) गुणों से परे, निर्गुण, गुणशून्य, देना, गिनना, तख़मीना या उद्धरण करना, परब्रह्म, परमात्मा । गुनातीत ( दे० )। टूटना, मनन करना, सोचना विचारना, गुणानुवाद-संज्ञा, पु. यौ० (सं० गुण + गुनना ( दे०)। वि० गुण्य, गुणनीय, अनुवाद) गुणकथन, प्रशंसा, तारीफ़, बड़ाई। गुणित । गुणित--वि० (सं० ) गुणा किया हुआ । गुणनफल-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) एक गुणी--वि० (सं० गुणिन) गुणवाला, जिसमें अंक को दूसरे अंक के साथ गुणा करने से कोई गुण हो, गुनी (दे०)। संज्ञा, पु. प्राप्त अंक या संख्या। कला-कुशल पुरुष, हुनर-मन्द, झाड़-फ्रैंक गुणना-स० क्रि० दे० (सं० गुणन ) गुणा करने वाला, श्रोझा । ( विलो०-निर्गणी) करना, ज़रब देना । गुनना (दे०)। " मूरख गुण समझे नहीं, तौ न गुणी मैं गणवन्त-वि० दे० (हि० गुण + वन्त- चूक ”-बृ । " गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति प्रत्य० ) गुणवान, गुणी। निर्गुणी"। गणवाचक-वि० यौ० (सं० ) जो गुण | गुणीभूत व्यंग्य-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) प्रगट करे। यौ० गुणवाचक संज्ञा- काव्य में वह व्यंग्य जो प्रधान न हो। वह संज्ञा जिससे पदार्थ का गुण प्रगट हो, गुणेश्वर-संज्ञा, पु० यौ० (सं० गुण+ विशेषण ( व्या०)। ईश्वर ) गुणों का स्वामी, परमेश्वर, चित्र. गुणवान् -वि० (सं० गुणवत् ) (स्त्री० कूट पर्वत। . गुणवती ) गुणवाला, गुणी, हुनर-मन्द। गुणोपेत–वि. यौ० (सं० गुण-+- उपेत = गुणांक -संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) वह अंक | युक्त ) गुणयुक्त, गुणी, कला-निपुण । जिसे गुणा करना हो। गुणोत्कर्ष-संज्ञा, पु. यौ० (सं० गुण+ गुणा-संज्ञा, पु० यौ० (सं० गुणन) ( वि०)। उत्कर्ष ) गुणों की प्रधानता, गुणकी अधिगणित की एक क्रिया, जरब, गुना ( दे०)। कता, गुण की सुन्दरता, गुण की व्याख्या। गुण्य, गुणित । गुणोत्कीर्तन-संज्ञा, पु. यौ० (सं० गुण-+ गुणाकर- उशा, पु०यौ० (सं० गुण + आकर) | उत्कीर्तन ) गुणगान, यश-कथन, स्तुति । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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