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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गीधना गिला रहता है। गिलाई, चेखुरा, गिल्ली (प्रान्ती०)। | गीत-संज्ञा पु० (सं० ) वह वाक्य, पद, गिला-संज्ञा, पु० (फा०) उलाहना, शिका- या छंद जो गाया जाय, गाने की चीज़, यत, निन्दा, बुराई। गाना। यौ०-गीत-काव्य-गाया जाने गिलाफ़--संज्ञा, पु. ( अ० ) तकिये रजाई वाला काव्य । “गावहिं गीत मनोहर बानी" आदि पर चढ़ाने की कपड़े की बड़ी थैली, रामा० । मुहा०-गीत गगना-बड़ाई खोल, रज़ाई, लिहाफ़, म्यान । करना, प्रशंसा करना । .." गाना जय के गिलापा-सिंहा, पु० ( फा० गिल - प्राव ) गीत कहीं''-अयो० । अपनाहीं गीत गीली मिट्टी जिससे ईंट-पत्थर जोड़ते हैं, गाना - अपनी ही बात कहना, दूसरे की गारा।" प्रेम-गिलावा दीन" कवीर० ।। न सुनना, बड़ाई करना, यश गाना, गिलास-संज्ञा, पु० दे० ( अं० ग्लास ) आत्म प्रशंसा करना। पानी पीने का एक गोल लंबा बरतन, गीता-संज्ञा स्त्री. (सं.) ज्ञानमय उप देश जो किसी महात्मा से माँगने पर मिले, आलू-वालू या अोलची का पेड़। भगवद् गीता, छब्बीस मात्राओं का एक गिलिम-संज्ञा, स्त्री० (दे०) गिलम (फा०)। छंद, कथा, वृत्तान्त, हाल । “भगवद् गीता गिली-संज्ञा स्त्री० (दे० ) गुल्ली, गिल्ली किंचित धीता.".- चर्प० । " सीता गीता (दे०), गिलहरी। पुत्र की"-राम। गिलोय - संज्ञा स्त्री० (फा० ) गुरिच, या | गीति—संज्ञा स्त्री. (सं० ) गान, गति, गुरुच नामक एक औषधि-लता जो कभी श्रा- छंद, एक छन्द-भेद। नहीं सूखती, अमृता (सं० )। गीतिका- संज्ञा स्त्री० (सं०) २६ मात्राओं गिलोला-संज्ञा, पु. ( फा० गुलेला) मिट्टी का एक मात्रिक छंद (पि०), गीत, गाना। का छोटा गोला, जो गुलेल से फेंका जाता यौ०-हरिगीतिका- २८ मात्रानों का है, गुल्ला (दे०)। एक मात्रिक छंद "-(पि०)। गिलौरी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) पानों का गीत रूपक-संज्ञा पु० यौ० (सं०) एक प्रकार बीरा। का नाटक या रूपक जिसमें गद्य तो कम गिलौरीदान - संज्ञा पु० (हि० गिलौरी-+ | किन्तु पद्य अधिक रहता है। दान-फा०) पान रखने का डिब्बा, पानदान। गीदड़- संज्ञा पु० दे० (सं० गृध्र, फा० गीदी) गिल्टी-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) गिलटी। सियार, शृगाल। "सिंह-प्रतापहिं देखि शत्रुगिल्ली-संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) दोनों छोरों गण गीदड़ भागे"-प्रता० । यौ०-गीदड़ पर नुकीला और बीच में मोटा लकड़ी का भबकी-मन में डरते हुये ऊपर से छोटा टुकड़ा, गुल्ली ( ग्रा० ) गिलहरी। दिखावटी साहस या क्रोध प्रगट करना । गींजना-स० कि० दे० (हि० मींजना) वि० डरपोक, बुज़दिल, " गीदड़ भबकी किसी कोमल पदार्थ विशेषतया कपड़े आदि | देखि तुम्हारी नहीं डरेंगे"! हमी० । को यो मलना कि वह ख़राब हो जाय। । | गीदी-वि० (फा० ) डरपोक, कायर । गी-संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) वाणी, बोलने की | गीध-संज्ञा पु० (दे०) गिद्ध, गृद्ध (सं.)। शक्ति, सरस्वती." गीर्वाक् वाणी सरस्वती' | गीधना-*अ. नि० दे० (सं० गृध्र = --अमर० । लुब्ध ) एक बार कुछ लाभ उठा कर सदा भीउ - संज्ञा, स्त्री. (दे० ) गीव, ग्रीवा उसी का इच्छुक रहना, परचना, लहटना । (सं०)। "गीधो गधि आमिख डली, जानत अली For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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