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खपुष्प ५२३
ख़यानत आकाश नगर ( पुरा० ) राजा हरिश्चन्द्र दुःख, " किहेहु न नैसुक हिये खभारा" की नभ नगरी।
.- रघु०, डर, व्याकुलता .... " कपि-दल खपुष्प-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) श्राकाश | भयउ खभार"--रामा०। कुसुम, असंभव बात, अनहोनी घटना।। खम-संज्ञा, पु० (फा० ) टेढ़ापन, वक्रता, खप्पर-संज्ञा, पु० दे० (सं० खर्पर ) तसले
झुकाव । मुहा० --खम खाना-मुड़ना, का सा पात्र, भिक्षा-पात्र, खोपड़ी। झुकना। 'तीन ख़म खाता है यों लफज़ कमर मुह०-- खप्पर भरना-खप्पर में मदि- तहरीर में''-- दबाना, हारना। स्वमठोंकना रादि भर कर देवी पर चढ़ाना ।
-लड़ने के लिये ताल ठोंकना दृढ़ता या ख़फगी-संज्ञा, स्त्री० (का०) अप्रसन्नता, तत्परता दिखाना । बम ठोंककर-ज़ोर क्रोध ।
दे कर, निरचा पूर्वक । खफा-वि० ( फा०) नाराज़, अप्रसन्न, रुट ।
खमकना-अ० क्रि० ( दे०) ठमकना, खमखफ़ीफ़-वि० (म०) थोड़ा, हलका, तुच्छ,
खम शब्द करना। लज्जित ।
खमदम-संज्ञा, पु० (फा० ख़म + दम ) खसीफा ( जज ) - संज्ञा, पु. ( . )
पुरुषार्थ साहस। छोटे माल के मुकदमें करने वाला
खमसा-संज्ञा, पु. ( अ. खमसः = पाँच न्यायाधीश।
सम्बन्धी ) एक प्रकार की ग़ज़ल । खबर, खबरि, खबरिया-संज्ञा, स्त्री०
खमा*-संज्ञा, स्त्रो० (दे०) क्षमा, छिमा (१०) समाचार, वृत्तांत, हाल, सूचना, जानकारी, संदेशा, चेत सुधि । 'ज्ञा, पता,
(दे०)।
खमीर-संज्ञा. पु० (अ.) गूंधे हुए आटे खोज । मुहा०—बर उड़ाना - चर्चा
का सड़ाव, माया, कटहल, अनन्नान आदि फैलाना, अफवाह होना । ग्वबर लेना
का सड़ाव जो पीने की तम्बाकू में डाला सहायता करना, सहानुभूति दिखाना, दंड
जाता है, स्वभाव, प्रकृति । देना । खबर करना—सूचना देना।
खमीरा - वि० पु. ( अ ) खमीर से संज्ञा, स्त्री० खबरगीरी-देख-भाल ।
बनाया हुआ, शीरे में पका कर बनाई खबरदार-वि० ( फा० ) होशियार,
हुई दवा, जैसे ख़मीर-बनफ़शा । स्त्री० सजग, सचेत।
खमीरी। खबरदारी-- संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) सावधानो।
| खमीलन- संज्ञा, पु. ( दे० ) थकावट, खबसा-संज्ञा, पु० ( दे० ) पंक, कीचड़। क्लाति, शिथिलता। खबीस-संज्ञा, पु० (१०) दुष्ट, भयंकर, खम्बा-खम्मा--संज्ञा, पु० (दे०) खम्भ, दानव, दैत्य ।
स्तंभ, (सं.)। खन्त-संज्ञा, पु. (अ.) पागलपन, सनक, खम्तचि-खभाँच, खमाच-संज्ञा, स्त्री० झक्क । वि० खब्ती-सन की।
( हि० खंभावती ) मालकोस राग की दूसरी खब्बा-वि० (दे० ) बाँया हत्था। रागिनी। खभ-संज्ञा, पु० (सं०) ताल, भुजा, खम्भ । खय*—संज्ञा, पु० (दे०) क्षय (सं०)। खभरना—स० क्रि० दे० (हि. भरना ) त्रया - संज्ञा, पु० (दे० ) खवा। भुजमूल, मिलाना, उथल-पुथल करना ।
..." करकत नैन खये" खभार-खभारू-संज्ञा, पु० ( दे०) चिंता, खयानत -- संज्ञा, स्त्री० ( ० ) धरोहर धरी
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