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अगहर
अगियार अगहर*-क्रि० वि० (आगे+हर ) पागे, अगाह*-वि० (सं० अगाध ) अथाह, बहुत प्रथम, पहिले।
गहरा, क्रि० वि० श्रागे से, पहिले से। वि. अगहँड-कि० वि० (सं० अग्र+हि०-हुँड) (फा० आगाह ) विदित, प्रकट, चिन्ताग्रस्त। आगे, श्रागे की ओर।
" भवसागर भारी महा, गहिरो अगम अगाउनी -क्रि० वि० (दे०) आगे, संज्ञा, | अगाह".-साखी०।। स्त्री० अगौनी (दे०)।
अगाही -संज्ञा, स्त्री० (हि० अगाह ) ( फा० अगाऊ (अगाऊ ) क्रि० वि० दे० (आगा+। आगाही ) प्राथमिक सूचना या संकेत । आऊ-प्रत्य० ) अग्रिम, पेशगी, समय से अगिन* --संज्ञा, स्त्री० (सं० अग्नि ) आग, पूर्व, वि० अगला, आगे का, क्रि० वि० आगे, गौरय्या या बया के समान एक छोटी पहिले, प्रथम । " कौन कौन को उत्तर दीजै चिड़िया, एक तरह की घास, " अगिनपरी ताते भयो अगाऊँ"
तृन रहित थल, आपुहिते बुझि जाय ।" अगाडा - संज्ञा, पु० (हि० अगाड) कछार, वि० (अ-+- गिन-गिनना) अगणित, बेतादाद तरी, संज्ञा, पु० (सं० अग्र) पेशखेमा, । यात्रा का सामान जो आगे पड़ाव पर अगिनबोट-संज्ञा, पु. ( हिं० अगिन+ भेज दिया जाता है।
बोट-अंग्रे०-नाव ) भाप के इंजन से चलने अगाडी-क्रि० वि० (सं० अग्र० प्रा० वाली नाव, स्टीमर, धुश्राकश । अग्ग + आड़ी, हि. प्रत्य० ) श्रागे, भविष्य में, | अगिनित*-वि० (सं० अगणित ) बेशुमार, सामने, समक्ष, पूर्व, पहिले, संज्ञा, पु. भागे | असंख्य । या सामने का भाग, घोड़े के गराँव में बँधी अगिया-संज्ञा, स्त्री० (सं० अग्नि, प्रा० अग्गि) हुई दो रस्सियाँ जो इधर-उधर दो खंटों से एक प्रकार की घास, नीली चाय, यज्ञ-कुश, बँधी रहती हैं-सेना का पहिला धावा, अगिन घास, एक पहाड़ी पैौदा, जिसके पत्तों हल्ला, ( विलोम)-पिछाड़ो।
और डंठलों में विषैले काँटे या रोयें से होते मु०-अगाड़ी मारना-मोहरा मारना, | हैं, घोड़ों-बैलों का एक रोग, अगियासन शत्रु-सेना को आगे से हटाना, (दे० ) भागे। __ कीड़ा। अगाड-क्रि० वि० (दे० ) अगाड़ी, भागे। अगिया कोइलिया-संज्ञा, पु० (हिं० भाग अगाध-वि० (सं०) अथाह, बहुत गहरा, + कोयला ) दो कल्पित बैताल जिन्हें अपार, असीम, समझ में न पाने के योग्य, | विक्रमादित्य ने सिद्ध किया था। दुर्बोध, संज्ञा, पु० छेद, गड्ढा ।
अगियाना-अ० क्रि० ( सं० अग्नि ) भाग अगान*--वि० (सं० अज्ञान) मूर्ख, सुलगाना, अंगो का दाह-युक्त होना, जल ज्ञान-रहित ।
उठना, जलाना। अगामैं-क्रि० वि० (सं० अग्रिम ) भागे। अगियाबैताल-संज्ञा, पु० (सं० अग्नि, प्रा०. अगार-संज्ञा, पु० (सं० अागार ) समूह, अग्गि + वैताल ) विक्रमादित्य के दो बैतालों क्रि० वि० (सं० अग्र) आगे, पहिले । में से एक, मुँह से लुक या लपट निकालने " ईसुर कही कि कुंवरजू हजै आप वाला भूत, ब्रह्मराक्षस, बड़ा क्रोधी मनुष्य । अगार "-सु०।
अगियार, अगियारी-संज्ञा, स्त्री. (सं० अगास*-संज्ञा, पु० (सं० अग्र+हि.. अग्नि-+-कार्य ) भाग में सुगंधित पदार्थों पास ) द्वार के आगे का चबूतरा, ( दे०- के डालने की पूजन-विधि, धूप देने की प्रकास) (सं० ) आकाश ।
| क्रिया, संज्ञा, स्त्री० धूप की सामग्री।
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