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कारसाजी
को सँभालने वाला, कार्य की युक्ति निकालने वाला । " ऐ मेरी दिल सोज़ मेरी कारसाज़ " । कारसाजो-संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) चालबाज़ी, छल, प्रयत्न, कामसिद्धि की युक्ति । कारस्तानी - संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) कारवाई, चालबाज़ी ।
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कारवी-संज्ञा स्त्री० ( सं० कारव + ई ) मयूर सिखा, रुद्र- जटा, अजमोदा, कलौंजी । कारा - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) बन्धन, पीड़ा, क्लेश, क़ैद | वि० (दे० ) काला । कारागार ( कारागृह ) – संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कैदखाना, जेल । कारावासबन्दीगृह |
कारिंदा -संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) गुमाश्ता, संज्ञा, स्रो० ( फा० )
कर्मचारी । कारिंदगीरी | कारिका - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) किसी सूत्र की श्लोक - वद्ध व्याख्या, नट की स्त्री, नटी । कारिख कालिख - संज्ञा, स्त्री० (दे० ) कालिमा, कलङ्क, दोष, करिखा, दे० ) स्याही | धूम कुसङ्गति कारिख होई
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रामा० ।
कारित - वि० (सं० ) कराया हुआ । कारी -संज्ञा, पु० (सं०) करने वाला । वि० ( फा ) घातक, मर्मभेदी | वि० (दे० ) काली । स्त्री० कारिणी | वि० पु० (दे०) कारो (०), कारा । "कारी निसि कारी fafe कारियै डरा घटा कारीगर -संज्ञा, पु० ( फा ) धातु, लकड़ी, पत्थर आदि से सुन्दर वस्तुयें बनाने वाला, शिल्पकार | वि० कला-कुशल, हुनरमंद, निपुण |
- पद्म० ।
कारीगरी -संज्ञा, स्त्री० ( फा ) अच्छे अच्छे काम बनाने की निर्माण कला, मनोहर कला, रचना । कारू करूकर संज्ञा, पु० (सं० ) विश्वकर्मा, शिल्पी, निर्माता । कारुक – संज्ञा पु० (सं० ) कारीगर ।
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कार्पण्य
कारुणिक वि० (सं० ) कृपालु, करुणायुक्त, कारुणीक । कारुण्य-संज्ञा, पु० (सं० ) करुणा का भाव, दया ।
कारू - संज्ञा, पु० ( ० ) हज़रत मूसा का भाई (चरा) जो बड़ा धनी और कृपण था । मुहा० कारू का खजाना - अनंत संपत्ति |
कारुनी - संज्ञा, स्नो० ( ? ) घोड़ों की एक जाति ।
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कारूरा -संज्ञा, पु० ( अ० ) फुंकना शीशा, मूत्र, पेशाब ।
कारोंक - संज्ञा, स्त्री० (दे० ) कालौंछ (०) कालिमा |
कारोबार- संज्ञा पु० ( फा ) कारबार ! कार्कश्य - संज्ञा पु० (सं० ) कर्कशता, परुपता, क्रूरता, कठोरता । कार्तवीर्य - संज्ञा, पु० (सं० ) कृतवीर्य - सुत सहस्रार्जुन, हैहय या सहस्रबाहु, हैहय देश में महिष्मती नगरी इनकी राजधानी थी, इन्होंने रावण को जीत कर बंदी कर लिया था, परशुराम ने इन्हें मारा, इन्होंने कार्तवीर्य तंत्र नामक एक तंत्र ग्रंथ रचा । कार्तस्वर - संज्ञा पु० (सं०) सुवर्ण, सोना । कार्तान्तिक - संज्ञा पु० (सं०) दैवज्ञ, ज्योति - वैता | कार्तिक - संज्ञा, पु० (सं० ) कार और अगहन के बीच का एक चांद्र मास, कातिक (दे० ) । इसकी पूर्णिमा को चंद्रमा कृत्तिका नक्षत्र के पास रहता है कार्तिकेय संज्ञा, पु० (सं० ) कृत्तिका नक्षत्र से उत्पन्न होने वाले स्कंद जी, astra, शिव के ज्येष्ठात्मन जिन्हें चंद्र- पत्नी कृतिका ने निज पय से पाला था, ये देवताओं के सेनापति थे, इन्हींने तारकासुर ar मारा और तारकारि कहलाये, देवसेना ( ब्रह्मात्मजा ) इनकी स्त्री हैं ( ब्रह्मवै० ) । कार्पण्य-संज्ञा, पु० (सं० ) कृपणता,
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कंजूसी ।
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