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काँइया ४३४
काँजी काइया-वि० (अनु०--काँव काव) चालाक, बनने वाला एक पारदर्शक पदार्थ, शीशा। धूर्त, चंट, चाँई (दे०)।
" यह जग काँचो काँचसों "-वि. कोई-प्रव्य० दे० (सं० किम् ) क्यों। कच्चा, अदृढ़, अपक्व । कांचा (दे० ) काँकर -संज्ञा, पु. (दे०) कंकड़ । स्त्री० स्त्री० काँची। कांकरी-कंकड़ी।
कांचन-संज्ञा, पु० (सं० ) सेना, कचनार, महा०—कांकरी चुनना--चिंता या | चंपा. धतग:
चंपा, धतूरा, नागकेसर, (दे० ) कंचन । वियोग-दुख से काम में जी न लगना"
वि० कांचनीय । संज्ञा, स्त्री० कांचनी........."ता थल काँकरी बैठी चुन्यो हलदी। यौ० कांचन-पुष्पिका-मूसली करै" -रस।
औषधि । काँक्षनीय–वि० (सं० ) इच्छा करने या कांचनचंगा-( किंचिन् चिंगा)-संज्ञा, चाहने योग्य।
पु० दे० ( सं० कांचन-ग) हिमालय की कांक्षा-वि. (सं० कांक्षिन् ) चाहने या | एक चोटी। इच्छा करने वाला । स्त्री० वि० कांक्षी, |
कांचरी-कांचली—संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कांक्षिणी।
कंचुलिका) कांचुरी, काँचुली (दे०) काँख-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वृक्ष ) बग़ल,
साँप की केंचुली, · अँगिया, चोली, बाहुमूल के नीचे का गड्ढा ।
कँचुकी ( सं० ) “ ज्यों काँचुरी भुअंगम काँखना- अ० कि० ( अनु० ) श्रम, पीड़ादि
तनहीं-" सूर०। से ऊँह आँह शब्द करना, मल-मूत्रादि के
कांची--संज्ञा, स्त्री० (सं०) मेखला, करधनी, लिये पेट की वायु का दबाना।
छुद्र घंटिका, गोटा-पट्टा, धुंघची, गुंजा, काँखासेती - संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. कांख+
एक पुरी, कांजीवरम्, काँची पुरी। वि. श्रोत्र-सं० ) दाहिनी बग़ल के नीचे से ले
स्रो० (दे०) काँचीकच्ची, “काँची जाकर बाँये कंधे पर दुपट्टा डालने का ढंग ।
पाट भरी धुनि रुई-" प० । “काँची काहू काँगड़ा-संज्ञा, पु० (दे०) पंजाब का एक
कुशल कुलाल ते कराई ती " २० वि० प्रान्त जहाँ ज्वालामुखी पर्वत और देवी
यो. कांचीपद-- जघन, नितंब । का प्रसिद्ध मंदिर है, यहीं एक गुरुकुल भी है। कांगड़ी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) काँगड़ा का,
कांचनाचल-- यौ० संज्ञा, पु० (सं०) कांचनकाश्मीरियों के जाड़े में गले में लटकाने की वपु, सुमेरु, स्वर्ण-गिरि। एक अँगीठी।
कांचनक-संज्ञा, पु० (सं० ) हरताल । कांगन-संज्ञा, पु. ( दे० ) कंकण (सं० ) कांचन-कदली-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) केला, स्त्री० काँगनी।
चंपा। काँग्नी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) धूनी, अँगीठी। काँछ-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) काँच । कांच-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कक्ष ) कांछ कांछना-स० क्रि० (दे०) काछना, सँवा(दे०) जाँघों के बीच से पीछे ले जाकर रना, पहिनना। खोंसी जाने वाला धोती का छोर, लाँग, | कांछा ---संज्ञा, स्त्री० (दे० ) कांक्षा, गुदेंद्रिय के भीतर का भाग, गुदा-चक्र । अभिलाषा।। महा०—कांच निकलना-श्राघात या| कॉजी--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कांजिक) श्रम से बुरी दशा होना । संज्ञा पु० (दे० ) | मठा, दही, राई श्रादि से बनने वाला, एक बालू, रेह या खारी मिट्टी के गलाने से । खट्टा पदार्थ, मही या दही का पानी, छाँछ ।
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