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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलपाना ४२२ कलवरिया संज्ञा, स्त्री० दे० कल्पना । विलाप, रचना, कलम-कसाई-संज्ञा, पु. यौ० (अ०) लिखअध्यारोप, अनुमान। पढ़ कर हानि करने वाला। कलपाना-स० कि० ( हि० कल्पना ) दुखी कलम-कार-संज्ञा, पु. ( फा) चित्रकार, करना, दुखाना, तड़पाना, तलफाना, नक्काशी या दस्तकारी करने वाला । संज्ञा, कुढ़ाना, तरसाना । "कल देवेगा, कल स्त्री० (फा) कलमकारी-चित्रकारी, पावेगा, कलपावेगा कलपावेगा"-यौ० रंगसाज़ी, नक्काशी, दस्तकारी। ( कल+ पाना ) श्राराम पाना । कलम-तराश-संज्ञा, पु० (फा) कलम कलफ़-संज्ञा, पु० दे० (सं० कल्प) चावलों बनाने का चाक । की पतली लेई जिसे कपड़ों पर उनकी तह कलमदान-संज्ञा, पु० ( फा) कलम-दवात कड़ी करने और बराबर करने के लिये धोबी आदि रखने का डिब्बा । कलमकल-संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) घबराहट, लगाते हैं, माँड़ी, चेहरे के दाग, झांई। कलबल-संज्ञा, पु० दे० (सं० कला+बल) दुःख, कसमकस, बेकली। कलमना-स० क्रि० (हि० कलम) काटना, उपाय, दाँव-पेंच, छल, युक्ति । संज्ञा, पु० छांटना, कलम करना। ( अनु० ) शोर-गुल । वि. अस्पष्ट स्वर । कलमलना*-अ. क्रि० ( अनु०) कुलकलबूत--संज्ञा, पु० दे० (फा. कालबुद ) बुलाना, दबाव से अंगों का हिलना । प्रे० ढांचा, सांचा, लकड़ी का ढाँचा जिस पर रू. (स० क्रि०) कलमलाना-कुलबुलाना चढ़ा कर जूता सिया जाता है, फरमा, टोपी, “अहि, कोल, कूरम कलमले"---रामा० । या पगड़ी का गुंबदनुमा ढांचा, गोलंबर, | कलमा-संज्ञा, पु. (अ.) वाक्य, मुसलकालिब । “ पूरे कलबूत से रहेंगे सब ठाढ़े मान-धर्म का धार्मिक मूल मंत्र, 'ला इलाह तब '...दीन। ईल्लिल्लाह महम्मद रसूलिल्लाह, कुरान । कलभ-संज्ञा, पु० (सं० ) करभ, हाथी या मुहा० कलमा पढ़ना (पढ़ाना) मुसलऊँट का बच्चा। मान होना ( करना )। यौ० कलमाकलम-संज्ञा, पु. ( स्रो०) (अ० सं० ) कुरान । लेखनी, (लिखने की ) किसी पेड़-पौधे की | कलमी-वि० (फा ) लिखा हुश्रा, लिखित, टहनी जो कहीं अन्यत्र बैठाने या दूसरे पेड़ जो कलम लगाने से पैदा हो, (कलमी प्राम) में पैबंद लगाने के लिये काटी जाय । क़लम या रवा वाला ( कलमी शोरा )। मु० कलम चलाना—(चलना) लिखना, कलमुँहा-वि० (दे० ) काले मुख वाला, लिखाई करना । कलम तोड़ना-लिखने दोषी, कलंकित । अभागा ( गाली)। की हद कर देना, अनूठी उक्ति कहना। कलरव-संज्ञा पु० यौ० (सं० ) मृदु मधुर मुहा० कलम करना-काटना, छांटना। स्वर, जन-समूह का अस्पष्ट शब्द, कूजन, संज्ञा, पु० जड़हन धान, कनपटियों के पास गुंजन, कोकिल, कपोत । के बाल ( कान के ऊपर के ), चित्रकारों की | कलल-संज्ञा, पु० (सं०) गर्भाशय में रज रंग भरने वाली बालों की कूँची, भाड़ में और वीर्य के संयोग की वह अवस्था जिसमें लटकाया जाने वाला शीशे का लम्बा टुकड़ा एक बुलबुला सा बन जाता है। शोरे-नौसादर का छोटा जमाया लंबा टुकड़ा, कलवरिया-संज्ञा, स्त्री० (हि. कलवार+ काटने खोदने या नकाशी करने का महीन इया- प्रत्य० ) कलवार, शराब की दूकान, औज़ार। __ कलार, एक जाति । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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