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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्णकटु ४१७ कर्ता कर्णकटु-वि० यौ० (सं० ) कान को या कर्णिका-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) करनफूल, सुनने में अप्रिय । कर्णाभरण, हथेली के बीच की उँगली, कर्णकंडू-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कान सूंड की नोक, कमल का छत्ता, सेवती, की खुजली। डंठल, सफेद गुलाब, कलम, लेखनी।। कर्णकुहर-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कान कर्णिकाचल-संज्ञा, पु. यौ० (सं.) का छेद। सुमेरु पर्वत । कर्णगाचर--संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कान कर्णिकार-संज्ञा, पु० (सं० ) कनियारी में पड़ना, सुनना। या कनक चंपा का पेड़। कर्णधार-संज्ञा, पु० (सं०) माँझी, मल्लाह, | कर्णी-संज्ञा, पु. (सं० ) वाण । नाविक, पतवार । कर्णीरथ-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) क्रीड़ार्थ कर्ण नाद-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कान __ छोटा रथ, परदेदार (स्त्रियों का) रथ, एक्का । का शब्द । कर्णीजप--संज्ञा, पु० (सं०) चुगुलखोर, कर्णपिशाची-संज्ञा, स्त्री० यो० (सं०)| दुर्जन, ठग। एक तांत्रिक सिद्धि या देवी जिसके सिद्ध कर्णीसुत-संज्ञा, पु. (सं० ) कंसराज । होने पर, कहा जाता है, मनुष्य सब के मन | कर्तन-संज्ञा, पु० (सं० ) काटना, कतरना, की बात जान जाता है। कातना (सूत)। कर्णफूल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०+हि० कर्तनी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) कैंची, कतनी, फूल ) करनफूल । कतरनी (दे० )। कर्णमल—संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कान कर्तरी-कर्तरिका-संज्ञा, स्त्री. (सं०) का मैल, खूट। कैंची, कतरनी, काती ( सुनारों की ) कर्णमूल-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कनपेड़ा कटारी, ताल देने का एक बाजा। रोग। कर्तब करतब-संज्ञा, पु. ( दे० ) कर्तव्य, कर्णवेध-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) कान काम, उपाय, चालाकी... .." कर्तब करिये छेदने का संस्कार, कनछेदन (दे०)। दौर।" कर्णशोफ - संज्ञा, पु० (सं० ) कान के | कर्तव्य-वि० (सं० ) करने के योग्य । नीचे सूजने का रोग। संज्ञा, पु०--धर्म, फर्ज । यौ० कर्तव्याकर्णवेष्टन-संज्ञा, पु० (सं०) कुंडल, कर्णा- कर्तव्य-करने और न करने योग्य कर्म, भरण, कान का भूषण । उचितानुचित कार्य । किंकर्तव्य विमूढ़कर्णाकर्णी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) काना- जिसे क्या करणीय है यह न ज्ञात हो । कानी, ख्याति । कर्तव्यता--संज्ञा, स्त्री० (सं० ) कर्तव्य का कर्णाट-संज्ञा, पु० (सं० ) दक्षिण का एक भाव, कर्म-कांड की दक्षिणा । यौ०-इति देश, एक राग। कर्तव्यता-उद्योग या यत्न की चरम सीमा, कर्णाटक-संज्ञा, पु० (सं० ) कर्णाट । प्रयत्न की पराकाष्ठा, दौड़ की हद । वि. कर्णटक, करनाटक (दे०)। कर्तव्य-मूढ़-(कर्तव्य-विमूढ) भौचक्का, कर्णाटी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) एक रागिनी, जिसे जान न पड़े कि क्या करना चाहिये । कर्नाटक की स्त्री, वहाँ की भाषा, शब्दा- कर्ता-संज्ञा, पु. ( सं० ) काम करने वाला, लंकार में एक वृत्ति विशेष जिसमें केवल रचने या बनाने वाला, ईश्वर, अधिपति, कवर्ग के ही वर्ण भाते हैं। | ६ कारकों में से प्रथम जिससे क्रिया के भा० श० को०-५३ For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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