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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir _ ३६८ कनतू तुर कनाई -तोपना) कानों को ढांकने वाली टोपी, | गाना-बजाना सुनने का आनन्दकारी व्यसन । टोपा। श्रवण-सुखद-रस । कनतूतुर- संज्ञा, पु० दे० ( हि० कान+ कनरसिया-संज्ञा, पु० दे० (हि. कान + तू तू शब्द ) एक छोटा विषैला मेंढक । रसिया ) गाना-बजाना सुनने का शौकीन, कनधार--संज्ञा, पु० (दे० ) कर्णधार मधुर वार्तालाप का सुनने वाला, कर्णरस (सं० ) केवट । प्रेमी। कनपटी—संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. कान + कनल---संज्ञा, पु० ( दे० ) भिलावाँ । पट --- सं० ) कान और आँख के बीच का | कनवई -संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) छटांक । भाग, गंडस्थल । कर्णपाली (सं०) कनवा-वि० (दे० ) कारण (सं.) कनपेडा-संज्ञा, पु० दे० (हि. कान+पेड़ा) काना, एक आँख वाला • " कानी आँख कान के पास एक गिल्टी निकलना और वाले को न कनवाँ बुलावही" ---कुला । पोड़ा करने का रोग । कनछांहो (दे०) | कनवाई-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) कर्णवेध, कनबुज (दे० ) कर्णशोथ । (सं०) कन छेदन। कनफटा-संज्ञा, पु० दे० ( हि० कान+ | कनसराई--(कनसलाई )-संज्ञा, स्त्री० फटना ) गोरख पंथो योगी जो कानों को दे० ( हि० कान - मलाई ) कानखजूरे का फड़वा कर उनमें बिल्लौर की मद्रायें पहि- सा एक छोटा पतला लम्बा कीड़ा, कननते हैं । साँप-बिच्छू पकड़ने वाले। सरया ( दे० ।। कनकुंडा-वि० दे० ( हि०कान + फूकना ) | कनसाल-संज्ञा, पु० दे० (हि. कान + कान फूंकने वाला, दीक्षा या गुरुमंत्र देने सालना ) चारपाई के पायों के तिरछे छेद वाला, दोक्षा लेने वाला । कनकंकवा जिनके कारण वह कनवाया जाय । (दे०) संज्ञा, पु०-गुरु । कनसार-संज्ञा, पु० दे० (सं० कांस्यकार ) कनफुसी-( कनफुसकी ) संज्ञा, स्त्री० ताम्र-पत्र पर लेख खोदने वाला। (दे०) कानाफूली। कनई -संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० कान-+ कनफूल-संज्ञा, पु० दे० ( सं० कर्ण पुष्प ) । सुनना ) श्राहट, टोह । करन फूल ( दे० ) कान में पहिनने का एक मु०-कनाई लेना-भेद लेना, गोबर की गहना, तरोना (ब्र०) गौर फेंक कर सगुन बिचारना । छिप कर कनबुज-संज्ञा, पु० (दे० ) कर्णशोथ, किसी की बात सुनना, पाहट लेना। कनपेड़ा। | कनपर ( कनस्टर )- संज्ञा, पु० दे० कनमनाना-अ० क्रि० दे० ( हि० कान + | (सं० कनिस्टर ) टीन का चौखूटा पीपा, मानना ) सोये हुये प्राणी का किसी आहट जिसमें मिट्टी का तेल पाता है। आदि से हिलना, डुलना, या सचेष्ट होना, कनहा--संज्ञा, पु. ( दे०) अन्न की जाँच किसी बात के विरुद्ध कुछ कहना या चेष्टा करने वाला। करना। कनहार- संज्ञा, पु० दे० ( सं० कर्णधार ) कनमैलिया—संज्ञा, पु० दे० ( हि० कान-+- | मल्लाह, केवट । मैल ) कान का मैल निकालने वाला। " चाहत पार न कोड कनहारा"-रामा०। कनय*--संज्ञा, पु० (दे०) कनय 'बिजुरी कना-संज्ञा, पु० (दे० ) कन, कण । कनय कोट चहुँ पास'-- प० । कनाई--संज्ञा, स्त्री० (दे०) कोना ( हि० ) कनरस-संज्ञा, पु० दे० (हि. कान+रस)। बचाना. किनारा । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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