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ओरौती ३७०
श्रोसाई मु० ओर निबाहना (निभाना ) अंत ओलरना ( उलरना)-अ० कि. (दे०) तक अपना कर्त्तव्य पूरा करना।
लेटना। ओरौती ( ओरती )--संज्ञा, स्त्री० दे० ओला-संज्ञा, पु० दे० (सं० उपल ) वृष्टि (हि० उलती ) भोलती, श्रोदी, अोरिया, के हिम-पाषाण, पत्थर, बिनौला, मिश्री का छप्पर का किनारा ।
लड्डू। वि० श्रोले साठंडा, बहुत सर्द । संज्ञा, ोरमना-अ० कि० (दे० ) लटकना, . पु० (हि० अोल) परदा, प्रोट, भेद, गुप्त बात । सूजना फूलना । संज्ञा, पु० ओरम- | अोलिक-संज्ञा, पु. ( दे० ) परदा, आड़ । सूजन, वरम । संज्ञा, स्त्री० ओरमा-एक- अोलियाना-स० क्रि० दे० (हि. अोल = हरी सिलाई।
गोद ) गोद में भरना, अंचल में लेना। मोरा-संज्ञा, पु० (दे०) अोला (हि.) स० क्रि० दे० (हि० हूलना)हूँसना, घुसाना।
वृष्टि-पाषाण । “ोरोसो बिलानो जात ।" अोली- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० अोल ) गोद, अोराना-अ० क्रि० दे० ( हि० ओर - अंचल, पल्ला, धोती। अंत+माना ) समाप्त होना।
मु०-अोली पोड़ना-अंचल फैलाकर अोरी संज्ञा, स्त्री० (दे० ) पोलती, अव्य. माँगना। (दे०) ओर, स्त्रियों के लिये सम्बोधन शब्द। ओलौना-संज्ञा, पु० (दे०) उदाहरण,तुलना। अोराहना-संज्ञा, पु० (दे० ) ओरहना ओषधि-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) वनस्पति, (दे० ) उलाहना, उपालम्भ, शिकायत ।। जड़ी बूटी, जो दवा के काम में आवे, तृण, ओरेहा-संज्ञा, पु० ( दे०) निर्माण, सृष्टिः घास, पौधा, दवा। रचना।
श्रोषधीश-(औषधिपति )-संज्ञा, पु. अोलंदेज (अोलंदेजी)-वि० (हालैंड यौ० (सं० ) चन्द्रमा, कपूर। देश ) हालैंड देश का।
अोष्ट --- संज्ञा, पु० ( सं० ) होंठ, ओठ, लब, अोलंबा ( अोलभा )--संहा, पु० दे० रद, अधर।। ( सं० उपालंभ ) उलाहना, शिकायत, प्रोष्ठी- वि० (सं० ) विवाफल, कंदरू । उपालंभ, ग़िला । उराहनो (ब्र०) अोष्ठय-वि० (सं०) ओंठ-सम्बन्धी, ओठ प्रोल-संज्ञा, पु० (सं० ) सूरन, जिमीकंद। से उच्चारित । अोष्टय वर्ण- उ, ऊ, प. वि० गीला, अोदा । संज्ञा, स्त्री० (स० कोड़) फ, ब, भ, म । गोद, भाड़, श्रोट. शरण, पनाह, वह वस्तु अोस - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अवश्याय ) या आदमी जो ज़मानत में रहे, धरोहर, हवा में मिली हुई भाप जो रात को सरदी से न्यास, जमानती वस्तु या व्यक्ति, बहाना, जमकर जल-कण के रूप में पदार्थो पर पड़ी मिस । “ लखि लाल गये करिकै कछु हुई प्रातःकाल दिखाई देती है, शबश्रोल्यो"-भाव।
नम ( फ़ा)। अोलती-संज्ञा, स्त्री. (दे०) छप्पर का मु०-ओस पड़ना ( पड़ जाना ) किनारा जहाँ से पानी गिरता है, अोरी, कुम्हलाना, बेरौनक होना, उमंग बुझ जाना. पोरौती।
लज्जिन होना। अोलना -स० क्रि० दे० (हि० अोल ) परदा श्रोसर*- संज्ञा, खी० (दे०) कलोर, जवान करना, पोट करना, पाड़ना, रोकना, ऊपर गाय, या भैंस ।। लेना, सहना । स० क्रि० (सं० शूल, हि० | अोसाई -- संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० प्रोसाना ) हूल ) घुसाना।
। श्रोसाने का काम, श्रोसाई की मजदूरी।
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