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उपस्यल ३४०
उपांत लिंग । स्त्री-चिन्ह, भग, गोद । वि. निकट उपहसित--वि० (सं० उप--- हस्+क्त) बैठा हुआ । यौ० उपस्थ- निग्रह-जितें- कृतोपहास, उपहास-प्राप्त विद्रप । संज्ञा, पु. द्रियरव, काम-दमन ।
( उपहास ) हास के छः भेदों में से चौथा. उपस्थल—(उपस्थली-स्त्री०) संज्ञा, पु० (सं०) नाक फुलाकर आँखे टेढ़ी कर गर्दन हिलाते चूतड़, कूल्ह', पेडू।
हुए हँसना। उपस्थाता---संज्ञा, पु. (सं० उप-स्था+ उपहार--संज्ञा, पु० (सं० उप-+ ह+घञ् ) तृण) भृत्य, सेवक, नौकर, दास । भेंट, नज़र, नज़राना, सौगात, उपढौकन, उपस्थान—संज्ञा, पु० (सं० उप+स्था -+- शैवों की उपासना के छः नियम, हसित. अनट् ) निकट श्राना, सामने आना, अभ्यर्थना गीत, नृत्य, डुडुक्कार, नमस्कार और जप । या पूजा के लिये समीप आना, खड़े उपहास-संज्ञा, पु० (सं० उप-- हस +धन् ) होकर स्तुति करना, पूजा का स्थान, परिहास, हँसी, दिल्लगी, निंदा, बुराई, ठट्ठा, सभा, समाज।
निंदार्थ वाक्य । " खल-उपहास होय हित उपस्थापन-संश, पु. ( सं० उप- मोरा"-रामा० । यौ० उपहासास्पद-.
स्था- णिच् । अनट ) उपस्थित करण, वि० (सं०) उपहास के योग्य, निंदनीय, निकट श्रानयन । वि० उपस्थापनीय, खराब, बुरा, हँसी उड़ाने योग्य । उपस्थापित।
उपहासी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० उपहास ) उपस्थित-वि० (सं० उप + स्था+क्त ) | हँसी, ठट्ठा, निंदा, " सो मम उर बासी समीप स्थित, निकट बैठा हुआ, पागत, | यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न थानीत, उपनीत उपसन्न, सामने था पास रहै"-रामा०। पाया हुआ, विद्यमान, हाज़िर, मौजूद, उपहास्य-वि० (सं० उप+ हस+ध्यन् ) वर्तमान, याद, ध्यान में श्राया हुआ। । उपहास के योग्य, निंदनीय, हँसने के योग्य । यौ० उपस्थितवक्ता--संज्ञा. पु. (सं०) उपहास्यता-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) गर्हण, सद्वक्ता, वचन-पटु । उपस्थितकवि---वि० कुत्सा, निंदा, उपहास के योग्य होने का भाव । (सं.) आशुकवि । उपस्थितोत्तर--- उपहित--वि० (सं० उप+धा+क) स्थापित। वि० (सं०) हाजिर जवाब।
उपही ---संज्ञा, पु० दे० (हि. ऊपर + हा उपस्थिता—संज्ञा, स्त्री. (सं० ) एक प्रकार +प्रत्य० ) अपरिचित व्यक्ति, बाहिरी या की वर्ण-वृत्ति ।
विदेशीय, अनजान, परदेसी (दे० ) " ये उपस्थिति—संज्ञा, स्त्री० (सं० उप + स्था--- उपही कोउ कुंवर अहेरी"-गी। क्ति) विद्यमानता, मौजूदगी, हाज़िरी, प्राप्ति। उएहत-वि० (सं० उप-- ह + क्त) श्रानीत, उपस्वत्व--संज्ञा, पु० (सं.) ज़मीन या किसी जायदाद की आमदनी का अधिकार | उपाइ ( उपाउ )--संज्ञा, पु० (दे०) उपाय या हत।
(सं० ) तदवीर, साधन, युक्ति । " सूझ न उपहत-वि० (सं० उप-+ हन्+क्त ) नष्ट एकौ अंक उपाऊ"-रामा। या बरबाद किया हुआ, बिगड़ा हुआ, उपांग---संज्ञा, पु. (सं०) अंग का भाग, दूषित, संकटापन्न श्राघात-प्राप्त, क्षत, . अवयव, अप्रधान भाग, किसी वस्तु के अंगों अशुद्ध, उत्पात-ग्रस्त । संज्ञा, पु० (दे०) की पूर्ति करने वाली वस्तु, क्षुद्र भाग, उपद्रव, उपाधि, ऊधम । वि० उपहती तिलक, टीका। (दे०) उत्पाती।
| उपांत-संज्ञा, पु० (सं० ) अंत के समीप
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