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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org उपनेता कृतोपनयन, निकटप्राप्त, उपस्थित, समीपागत, उपवीती । उपनेता - संज्ञा, पु० (सं० उप + नी + तृण् ) नयनकारी, उपस्थापक, लाने वाला, गुरु, श्राचार्य, पहुँचाने वाला, उपनयन कराने वाला । स्त्री० उपनेत्री । उपनेत्र - संज्ञा, पु० (सं०) नेत्रों का सहायक, ३३५ चश्मा । उपन्ना – संज्ञा, पु० ( दे० ) उपरना थोड़ने का दुपट्टा । उपन्यस्त - वि० (सं०) निक्षिप्त, न्यासीकृत, धरोहर रखा हुआ । उपन्यास संज्ञा, पु० (सं० उप + नी + अस् + घञ् ) वाक्य का उपक्रम, बंधान, कल्पित आख्यायिका, कथा, प्रस्तावना, उपकथा, कहानी, गद्यकाव्य का एक भेद । वि० उपन्यासी (दे० ) । उपपति संज्ञा, पु० (सं०) वह पुरुष जिससे किसी दूसरे व्यक्ति की स्त्री प्रेम करे, जार, यार, श्राशना । " जो पर-नारी को रक्षिक, उपपति ताहि बखान "" - रस० । उपपत्ति संज्ञा, स्त्री० (सं० उप + पद् + कि ) संगति, समाधान हेतु के द्वारा किसी वस्तु की स्थिति का निश्चय, चरितार्थ होना, मेल मिलाना, युक्ति, हेतु, सिद्धि, प्राप्ति । उपपत्तिसम संज्ञा, पु० (सं०) बिना बादी के कारण और निगमन यादि का खंडन | किए हुए प्रतिवादी का अन्य कारण उपस्थित करके विरुद्ध विषय का प्रतिपादन । उपपत्नी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) वेश्या, रखनी, परस्त्री । उपपन्न - वि० (सं० ) पास या शरण में आया हुआ, प्राप्त, मिला हुआ, युक्त, संपन्न उपयुक्त, प्राप्तयुक्त, लब्ध, मुनासिब । उपपातकसंज्ञा, पु० (सं० ) छोटा पाप, जैसे - परस्त्रीगमन, गुरु- सेवा त्याग, विक्रय, गोवध यादि ( स्मृति ) । श्रात्म Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपमा उपपादन-संज्ञा, पु० (सं० उप + पद् + णिच् + अनट् ) साधन, सिद्ध करना, साबित करना, ठहरना, कार्य को पूरा करना, संपादन, युक्ति देकर समाधान करना । वि० उपपादनीय - साध्य, संपादनीय । उपपादित- वि० (सं० ) सिद्ध किया हुआ, संपादित | उपपाद्य - - वि० (सं०) उपपादनीय, साध्य | उपपुराण - संज्ञा, पु० (सं० ) छोटे और गौण पुराण, ये भी १८ हैं, सनत्कुमार, नारसिंह, नारदीय, शिव, दुर्वासा, कपिल, मानव, औशनस, वारुण, कालिका, शांव, नन्दा, सौर, पराशर, श्रादित्य, माहेश्वर, भार्गव, वाशिष्ठ । 66 उपवरहन - संज्ञा, पु० दे० (सं० उपबर्हण ) तकिया, उपवई । उप बरहन बर बरनि न जाई ” – रामा० । उपभुक्त - वि० (सं० उप + भुज् + क्त ) काम में लाया हुआ, जूठा, उच्छिष्ट, भक्षित, अधिकृत | उपभोक्ता - वि० (सं० उप + भुज् + तृण् ) उपभोग करने वाला, स्वत्वाधिकारी । स्त्री० उपभोक्त्री । उपभोग संज्ञा, पु० (सं० उप + भुज् + घञ् ) किसी वस्तु के व्यवहार का सुख, मज़ा लेना, काम में लाना, बर्तना, सुख को सामग्री, निर्वेश, श्रास्वादन, विलास । उपमंत्री संज्ञा, पु० (सं० ) प्रधान मंत्री के नीचे कार्य करने वाला मंत्री । उपमा - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) किसी वस्तु, व्यापार या गुण को किसी दूसरी वस्तु, व्यापार या गुण के समान प्रकट करने की क्रिया, तुलना, मिलान, बराबरी, समानता, जोड़, मुशाबहत, सादृश्य, एक प्रकार का अर्थालंकार जिसमें दो वस्तुओं के बीच भेद रहते हुए भी उन्हें समान कहा जाता है । "सब उपमा कबि रहे जुठारी " - रामा० । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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