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उनतीस ३२८
उनहारि उनतीस-वि० दे० (सं० एकोनविंशत् ) उनमूलन - संज्ञा, पु० दे० (सं० उत् + मूलन) एक कम तीत, बीर और नौ । संज्ञा, पु० उखाड़ना। (दे. ) उन्तीत की संख्या २६ । । उनमूलना-स. क्रि० दे०( सं० उन्मूलन ) उनदा-वि० ( दे० ) उनींदा, (हि.)। उखाड़ना, नष्ट करना । (सं० उनिंद ) नींद का सताया हुआ, | उनमेख-संज्ञा, पु० दे० (सं० उन्मेष) भाँख
औघासा, (दे० । उनींदा ( दे०)। का खुलना, फूल खिलना, प्रकाश, विकास। उनदौहाँ-वि० (दे०) उनींदा, उनदा । उनमेखना-स० क्रि० दे० (सं० उन्भेष) (हि.)।
आँख का खुलना, उन्मीलित होना, विकसित उनमत-वि० दे० (सं० उन्मत्त) मतवाला होना खिलना। पागल, प्रमत्त । संज्ञा, पु० पागल पुरुष । स्त्री० उनमेद-संज्ञा, पु. (दे०) माँजा, प्रथम
उनमाती दे० ) उन्मत्ता (सं०)। वर्षा से उत्पन्न विषैला फेन । " जल उनमेद उनमद-वि० दे० (सं० उत् +-मद् = मीन ज्यों बपुरो".-सूर० । उन्मद ) उन्मत्त ।
उनयना-प्र. क्रि० (दे० ) झुकना, उनउनमनाउनमन - वि० दे० (सं० उत् + मना)
वना ( दे० ) टूटना, उठना, विर आना। अनमन, अनमना, उन्मना, उदास, सुस्त ।
उनरना-अ० कि० दे० (सं० उन्नरण = उनमाथना-स० क्रि० दे० (सं० उन्मथन)।
ऊपर जाना ) उठना, उभड़ना, उमड़ना, मथना, विलोड़ना। उनमाथी - वि० दे० (हि० उनमाथना) मथने
उछलना - "उनरत जोवन देखि नृपति मन
भावइ है "- 'बचन-पास बाँधे माधववाला, बिलोड़ने वाला. मथन करने वाला।
मृग उनरत घालि लये"---भ्र० । उनमाद-संज्ञा, पु० दे० (सं० उन्माद )
' उनवना - अ० कि० दे० (सं० उन्नमन ) पागलपन, चित्त-विभ्रम । उनमान--संज्ञा, पु. ( दे० ) ( सं०
। झुकना, लटकना, घिर आना, टूटना, छाना, अनुमान ) अन्दाज़, अनुमान, अटकल,
घिर जाना, ऊपर पड़ना। विचार । “साँई समय न चूकिये, जथा
। उनवर---वि० (दे०) न्यून, छुद्र, तुच्छ नीच । सक्ति उनमान"-गि० । संज्ञा, पु० (सं० । उनवान - संज्ञा, पु. ( दे० ) अनुमान (सं०) उद्+मान ) परिणाम, थाह, ' लेन उनमान
ख्याल, अटकल । फतेअली ने पठाये दूत"-सुजा० । नाप, उनसठश-वि० दे० (सं० एकोनषष्टि ) तौल, शक्ति, सामर्थ्य, योग्यता । वि.! पचाप और नौ । संज्ञा, पु०-पचास और नौ तुल्य, समान सदृश । “कमलदल नैननि की की संख्या या अंक, उन्सठ, १६ । उनसठि, उनमान"-रही।
(दे० ) एक कम साठ। उनमानना-----स० क्र० दे० (हि. उनमान् ) । उनहत्तर - वि० दे० (सं० एकोनसप्तति) अनुमान करना, विचार करना, ख्याल साठ और नौ। संज्ञा, पु. साठ और नौ करना, “ कटि कछनो कर लकुट मनोहर ! की सपा या अंक, उनहतरि (दे०) गो-चारन चले मन उनमानि"-सूर० ।। | एक कम सत्तर, ६६ । उनमना-वि० दे० (हि. अनमना ) मौन, उनहानि-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. अनुहारि ) चुपचाप । स्त्री० उनमनी-"हँसै न बोलै | समता, बराबरो। उनमुनी''कवीर।
उनहार -- वि० (सं० अनुसार) समान, सदृश । उनमुनी-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) हठयोग की। उनहारि-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अनुसार ) एक मुद्रा । वि०-मौना।
! समानता, सादृश्य, एकरूपता।
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