________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भातशक
२३५
बातोध
LACEMANORI
A
पातशक-संज्ञा, पु० (फा०) फिरंग रोग, आतिथ्य-संज्ञा, पु० (सं० ) अतिथिउपदंश, गर्मी।
सरकार, पहुनाई, मेहमानदारी, अतिथिआतश खाना-संज्ञा, पु० ( फा० ) कमरा | सेवा। गर्म करने के लिये आग रखने की जगह, प्रातिदेशिक-वि० (सं० ) अतिदेश-प्राप्त, पारसियों के अग्नि-स्थापन का स्थान, आग! दूसरे प्रकार से पाने वाला, या उपस्थित । रखने की जगह, चूल्हा।।
प्रातिश-संज्ञा, स्त्री० (फा०) भातश, प्रातशदान-संज्ञा, पु० (फा० ) अँगीठी। श्राग। प्रातशपरस्त-संज्ञा, पु० (फा० ) अग्नि प्रातिशय्य-संज्ञा, पु० (सं० ) अतिशय की पूजा करने वाला, अग्नि-पूजक, पारसी।। होने का भाव, आधिक्य, बहुतायत, संज्ञा, स्त्री० पातशपरस्ती।
ज़्यादती, अतिरेक । पातशबाजी--संज्ञा, स्त्री० (फा०) बारूद प्रातर-वि० ( सं० ) व्याकुल, व्यत्र, के बने हुए, खिलौने, अग्नि-क्रीडन, बारूद घबराया हुआ, उतावला, अधीर, के खिलौने जो जलाने से कई रंग की उद्विग्न, बेचैन, उत्सुक, दुखी, रोगी, कातर, चिनगारियाँ छोड़ते हैं।
अस्थिर। पातशी-वि० (फा० ) अग्नि-सम्बन्धी, क्रि० वि० शीघ्र, जल्दी। अग्नि-उत्पादक, जो आग में तपाने से न
में तपाने से न ग्रातुरता-संज्ञा, स्त्री. (सं०) घबराहट, फूटे, न तड़के।
बेचैनी, व्याकुलता, विह्वलता, व्यग्रता, यौ० श्रातशी शीशा । संज्ञा, पु० (फा०) जल्दी, शीघ्रता, उतावलापन । सूर्यकान्त मणि, ऐसा शीशा जो सूर्य | श्रातुरताई*-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० आतुर के सामने रखने से भाग पैदा करता +ता+आई = हि० प्रत्य० ) आतुरता, है, और छोटी चीज़ को बड़ा दिखाता शीघ्रता, बेचैनी।
प्रातुरसंन्यास-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) प्राता-संज्ञा, पु. (दे०) अत्ता, फल, | मरने के कुछ ही पहिले धारण कराया जाने सीताफल, शरीफ़ा।
वाला सन्यास। प्रातापी-संज्ञा, पु. ( सं०) एक असुर अातुराना-प्र० कि० (दे०) उतावला जिसे अगस्त्य मुनि ने अपने पेट में पचा होना, उत्सुक होना, घबराना। डाला था, चील पक्षी।
" इंद्रीगन थातुराँय ज्यों तुरंग धायो है " "आतापी भतितो येन......।
-दीन। भातायी-प्रताई-वि० (दे० ) धूर्त, प्रातुरी -संज्ञा, स्त्रो० दे० (सं० आतुर शठ, तमाशा करने वाला, बहुरूपिया , +ई-प्रत्य. ) घबराहट, व्याकुलता, संज्ञा, पु० (दे०) अताच ।
शीघ्रता। संज्ञा, पु० (दे०) पती विशेष, चील । " देखि देखि आतुरी विकल व्रजबारिनि संज्ञा, पु. ( दे० ) धूर्तता, शठता, । की" ऊ० श०। नीचता ।
प्रातू-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) गुरुबाइन, प्रातिथेय-वि. ( सं० ) अतिथि सेवा पंडिताइन । करने वाला, अतिथि-पूजक, अतिथि सेवा श्रातोद्य-वि० (सं० आ+ तुद् + य ) की सामग्री, अभ्यागत का सत्कार करने वाद्य, वीणा, मुरज, वंश का शब्द, चतुर्विध वाला।
वाद्य ।
For Private and Personal Use Only