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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शब्द। अहिभुक २०६ अहोरात्र “अहिबल्ली-रिपु की सुता ताके पति को | ग्रहीरो-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) अहीर का हार "--सूर० । काम। अभुिक-संज्ञा, पु० (सं० ) मोर, मयूर, | अहारिन-संज्ञा, स्त्री० (दे०) प्रहीगिनि, गरुड़ -अहिभाजा। अहोरिनी, ग्वाले या अहीर की स्त्री, ग्राहमंत्र-संज्ञा, पु० या० (सं०) सर्प- ग्वालिन, अहिरिन ( दे०)। विष दूर करने का मंत्र। प्रहाश-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) शेषनाग, अहिमुग्व-संज्ञा. पु० यौ० (सं० ) विषैले शेषावतार लघमण और बलराम, आदि । मुख वाला कुभाषी, शेष नाग ।। अहुटना*-अ० क्रि० दे० ( हिं हटना ) अहिलोक-संज्ञा, पु० यो० (सं) पाताल । हटना, दूर होना, अलग होना, पृथक अहिषर-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) सपो में | होना। श्रेष्ठ, शेष नाग, दोहे का एक भेद विशेष। अटाना-स० क्रि० (दे०) हटाना, अरिधान .. संज्ञा पु० दे० (सं० अहिवाद ) दूर करना, भगाना। स्त्री का सौभाग्य, स्त्रियों का सुहाग, सध- | अठ-वि० दे० (सं० अध्युष्ठ) साढ़े वापन -हिवाना (दे० )। तीन, तीन श्रार प्राधा, हुंठा। "अचल होय श्रहिवात तुम्हारा"-रामा० | 'अहुठ हाथ तन जस सुमेरू"-५० । "सदा अचल यहि कर अहिवाता''-- आहे-अव्य दे० (सं० हे, रे) संबोधन रामा०। सूचक शब्द, हे, अरे, रे, विस्मयादि सूचक अहवानी-वि० स्त्री० दे० (हिं अहिवात ) सौभाग्यवती सोहागिन, सधवा । अति वि० ( सं० ) बिना कारण का, अहिशत्र—संज्ञा, पु० य० (सं० ) गरुड़, | निमित-रहित, व्यर्थ, जूल, अकारण । नकुल. न्यौला, अहिरिपु। अहेतुक-वि० (सं० ) निकारण, बिनाअहिसत्र संसा, पु० यौ० (सं० ) सर्पयज्ञ, . हेतु के, अकारण। जिसे राजा परीक्षित ने किया था। अहर-संज्ञा, पु० दे० (सं० आखेट ) शिकार, अहिशायी-संज्ञा, पु० यौ० (सं) विष्णु, मृगया, वह जंतु जिसका शिकार किया सर्प या शेष नाग पर सोने वाला, हरि । जाय। ग्रह - प्र. क्रि० (दे० ) हैं हूँ। " जहँ तहँ तुमहिं अहेर खिलाउब"अहान्द्र-संज्ञा, पु० या० (सं०) शेषनाग, रामा० । वासुकी। अहान- वि० ( सं० ) जो हीन या कमजोर प्रहरी-संज्ञा, पु० दे० (सं० अहेर ) न हो, अनीण। शिकारी आदमी, माखेटक, व्याध, किरात । संज्ञा, पु० (दे० व० व० ) साँ, नागों (दे० ) प्रोग्या। अहिन (दे०)। " चित्रकूट-गिरि अचल अहेरी'-रामा । स्त्री० बहिनि। अहो-अव्य० (सं० ) संवोधन-सूचक या "सरसानाम अहिन की माता"-रामा०। विस्मय, हर्ष, करुणा, खेद, प्रशंसा, मादि ग्रहीर-संज्ञा, पु० दे० ( सं० आभीर ) मनोविकारों का द्योतक शब्द। गाय भैंस रखने और दूध दही श्रादि का | अहोभाग्य संत्रा, पु० (सं० ) धन्यभाग्य, रोज़गार करने वाले ग्वाले, एक जाति सौभाग्य । विशेष, ग्वाला, श्राहर (दे०)। | अहोरात्र-संज्ञा, पु० (सं० ) दिन रात । मा. श० को०-२७ For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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