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हिया, हियन १८६०
हिरस हियाँ, हियन-अव्य० दे० (सं० अत्र) यहाँ, वतार धारण कर इसे मारा था, हिरनाइहाँ. ह्या (दे०), यहाँ पर, इस स्थान में, | कुस, हरनाकुस (दे०)। हिन (ग्रा०)।
हिरण्य करयप-संज्ञा, पु. ( सं० हिरण्यहिया, हियो --संज्ञा, पु० दे० (सं० हृदय) कशिपु ) प्रह्लाद का पिता दैत्यराज हिरण्यहृदय, दिन, छाती. मन । " बहु छल-बल
__ कशिपु, हिरन्यकस्यप (दे०) । सुप्रीव करि हिये हारि भय मान"--रामा हिरण्य-गर्भ-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वह मुहा०-हिये का अंधा-मुर्ख, अज्ञान। प्रकाश-रूप या ज्योतिर्मय अंड जिससे ब्रह्मा हिये की फूटना (बंद होना) या मुदना और समस्त सृष्टि प्रकट हुई, सूचम शरीर
- बुद्धि न होना, अन्तर्दृष्टि का न होना। युक्त श्रात्मा, ब्रह्मा, विष्णु, परमात्मा। हिया जलना-बहुत कोप या शोच होना। "हिरण्य गभःसमवर्तताग्रे"-यजु० । हिये लगाना - भंटना, गले या छाती से | हिरण्य-नाभ-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विष्णु, लगा कर मिलना, आलिंगन करना । हिये | मैनाक पहाड़। में लोन सा लगना ( लगाना )-बहुत | हिरण्य रेता-संज्ञा, पु० (सं० हिरण्य रेत्तस्) बुरा लगना (जले को जलाना जले पर शिव, अग्नि. सूर्य । नमक लगाना या छिड़कना ), दुग्वादि का | हिरण्याक्ष-संज्ञा, पु. (सं०) दैत्य-राज भाव और बढ़ाना (विशेष-मुहा० देखो- हिरण्य कशिपु का भाई और प्रह्लाद का जी और कलेजा)।
चचा। हियाव-संज्ञा, पु० दे० (हि. हिय ) हिम्मत, हिरदय, हिरदै, हिरदा*--संज्ञा, पु० दे० साहस, जीवट । मुहा०-हियाक खुलना | ( सं० हृदय ) हृदय, मन । " जाके हिस्दै -हिम्मत बंधना साहस हो जाना, भय | साँच है, ताके हिरदै भाप"-~-कबी० । या संकोच न रहना । हियाव पड़ना हिरन-संज्ञा, पु० दे० (सं० हरिण ) मृग, (होना)-हिम्मत या साहस होना। हरिन, दिगार (प्रान्ती), हिरना, हिन्ना हियो - संज्ञा, पु० (७०) हृदय, हिय । (दे०)। मुहा०-हिरन हो जाना-भाग हिरकना*-अ० क्रि० दे० ( सं० हरुक = | जाना। समीप ) पास या निकट होना या जाना, हिरनाकुस-संज्ञा, पु० दे० (सं० हिरण्य समीप धाना या जाना, सटना। __कशिपु ) हिरण्य-कशिपु. हरिनाकुस(दे०) । हिरकाना*-स० कि० दे० हि. हिरकना) | हिरफ़त-संज्ञा, स्त्री. (अ.) कला-कौशल, सटाना, समीप या पास करना या ले जाना, | दस्तकारी. हाथ की कारीगरो. शिल्पकारी, भिड़ाना।
हुनर, चतुराई. धूर्तता. चालाकी, चालबाजी। हिरण, हिरणा*-संज्ञा, पु. ३० (सं० हिरफ़त-बाज ---वि. ( अ०-फ़ा० ) धूर्त, हरिण ) हरिण, हरिन, हिरन, हिरना।
चालाक चालबाज । हिरण्य-सज्ञा, पु. (स.) कंचन, सुवर्ण, हिरमिजी--- संज्ञा, स्रो० (अ०) एक प्रकार कनक, स्वर्ण सोना, शुक्र, वीय, धतूरा, को लाल मिट्टी, हिलमिजी (दे०)। कौड़ी, अमृत ।
हिरवाना-स० क्रि० दे० ( हि० हिराना ) हिरण्य कशिपु-संज्ञा, पु० (६०) विष्णु. । हेरवाना, हिरावना, ढुंढवाना, खो देना । विरोधी, एक प्रसिद्ध दैत्य-राज जो विष्णु | हिरसा-संज्ञा, स्त्री० दे० (अ० हिर्स ) हिर्स,
बहाद का पिता था, विष्णु ने नृसिंहा- डाह, ईर्षा ।
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