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१८७६
हाता हाइ*-अध्य० दे० (सं० हा) हाय, शोक। हाज़िरी-संज्ञा, स्त्री० (प.) उपस्थिति, हाई -संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० घात) अवस्था, विद्यमानता।
दशा, हालत, ढंग, तार, घात, ढव। हाजो-सज्ञा, पु. (अ.) वह पुरुष जो हज हाऊ-संज्ञा, पु० दे० (अनु०) भकाऊ, हौवा कर पाया हो (मुसल०)। जून । “दूरि खिलन जनि जाव लाल वन हाट - संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० हट्ट ) बाजार, हाऊ बोले रे"-सूर०।।
दुकान, पेठ । " चौहट हाट बजार बीथी हाकल-संज्ञा, पु० (सं०) १५ मात्राओं और चान पुर बहुविधि बना ''-रामा० । यौ०
दीन्ति वाला एक मात्रिक छंद (पिं०)। -हाट-बजार । मुहा०-हाट करनाहाकलिका- संज्ञा, स्त्रो० (स०) १५ वौँ । दुकान लगा कर बैठना, सौदा लेने बाज़ार का एक वर्णिक छद (पि०)।
जाना । हाट लगना (लगाना)--बाजार हाकली-सज्ञा, स्त्री० (सं०) १० वर्णो का | या दुकान में विक्री के पदार्थ रखे जाना एक वर्णिक छद (पि.)।
( रखना) । हाट चढ़ना-बाज़ार में हाकिम-सज्ञा, पु० (अ० ) शासक, बड़ा बिकने अाना । हाट चढ़ना ( उतारना, अफ़सर, हुकूमत करने वाला।
घटना)-चीज़ों का भाव बढ़ ( घट) हाकिमी-सहा, स्त्री. (अ. हाकिम ) हुकू- जाना । बाजार का दिन। मत, शासन, प्रभुत्व, हाकिम का काम । हाटक-संज्ञा,पु० (सं०) कनक, स्वर्ण, कंचन, वि०-हाकिम का । हाकिम-संबंधी। सोना. हेम, हिरण्य । हाजत-सज्ञा, स्त्री. ( अ०) आवश्यकता, हाटकपुर-संज्ञा, पु० यौ० (सं.) लंकापुरी, जरूरत. चाह. हिरासत, पहरे में रखना ।। स्त्री० हाटकपुरी। " हाजत इस फिरके की याँ मुतलक नहीं' हाटकलाचन-संज्ञा, पु० यो० (सं०) हिर- सौदा० । मुहा०—हाजत दूर (रफ़ा) ण्यात । "कनक कशिपु अरु हाटक करना-शौचादि से निवृत्त होना। लोचन ---रामा० । हाजत में देना या रखना-पहरे के | हाटू--संज्ञा, पु० ( दे० सं० हट्ट ) बाज़ार भीतर देना, कैद या हवालात में रखना। करने वाला बाज़ार में सौदा बेवने या हाज़मा-सज्ञा, पु. (अ.) पाचन की शक्ति लेने वाला।
या क्रिया, भोजन पचने की क्रिया। हाडा-संज्ञा, पु० दे० (सं० हहु ) अस्थि, हाजिम-वि० अ०) पाचक, हजम करने या हड्डी, कुलीनता, कुल या जाति की मर्यादा, पचाने वाला।
" पानी में निसिदिन बसै, जाके हाइ न हाज़िर-वि० (अ०) उपस्थित, प्रस्तुत, मौजूद, मास "-- पहे। विद्यमान, सम्मुख।
हाडा--संज्ञा, पु० दे० (हि० हड्डा) एक प्रकार हाजिर-जवाब-- वि० यौ० (म.) किसी की बड़ या भिड़, बरैया, क्षत्रियों की एक बात का तत्काल अच्छा उत्तर देने में प्रवीण | गति “ हाड़ा कुल केशरी भूपवर"-भे० या कुशल, चाक-चतुर, प्रत्युत्पन्नमति । श । सज्ञा, स्त्रो०-हाजिर-जवाबी। हाता- संज्ञा, पु० दे० ( म० अहाता) बाड़ा, हाजिरात-सज्ञा, स्त्री. (अ.) वंदना, या | घेरा हुा स्थान, देश विभाग, सूबा, मंत्रादि के द्वारा किसी के ऊपर कोई धारमा हलका, प्रांत, हद, सीमा । “छोरोदक बुलाना जिससे वह विविध प्रकार की बिना घूघट होतोकरि सम्मुख दिया उघारि"देखी बातें बता सके।
सूर० वि० (सं० हात ) अलग, पृथक्, दूर
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