________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हरितालिका
१८
हरियाली हरितालिका-संज्ञा. स्रो० (सं०) भादों सुदी हरिपुर- संज्ञा, पु० (सं०) वैकुंठ । “ हरिपुर
तीज या तृतीया ( स्त्रियों का एक व्रत)। गे नरलोक विहाई "-स्फु० । हरिद्रा- संज्ञा, स्त्री० (सं०) हलदी. जंगज, हरिपुत्र, हरिपूत (दे०) - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) बन, मंगल, सोपाधातु (अनेकार्थ० )। सूर्य-सुत. इन्द्र-सुत, शिव सुत, कृष्ण या "हरिद्रा रजोमानिकाम्यां विमिश्रः''-लो। राम के पुत्र। हरिद्राराग - संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वह पूर्व हरि-पैंडी-संज्ञा, स्त्री. (दे०) विष्णु घाट ।
राग जो पक्का या स्थायी न हो (मा.)। हरिप्रिया- संज्ञा, स्त्री० यो० (सं० ) लघमी, हरिद्वार-संक्षा, पु. (सं.) एक विख्यात तुलनी, लाल चन्दन, ४६ मात्राओं और तीर्थ जहाँ से गंगा से नहर निकाली गयी। अंत में गुरु वर्ण वाला एक मात्रिक छन्द, है, और गंगा पहाड़ों से समतल भूमि पर
चंचरी छन्द (पिं०)। "लक्ष्मी, कमला हरिउतरी है । यौ० (सं.) ईश्वर का द्वार ।
प्रिया " --(अनेका०) के० वि० । हरिधाम-संहा, पु० यौ० (सं०) बैकंठ, हरि- हरिप्रीता-संज्ञा, स्त्री. ( सं०) एक शुभ
मुहर्त ( ज्यो० ) हरि-प्रिया। हरिन -संज्ञा, पु० दे० (सं० हरिगा ) मृग, हरि-भक्त-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) कृष्णाछिगार, हिरन, हरिण स्त्री०-हरिनी।। नुरागी. भगवान का प्रेमी, भगवान की हरिनगर-संज्ञा, पु. यौ० (६०) साँप भजन-उपासना करने वाला, हरिभगत
की मणि हरिनाकुस ---संज्ञा, पु० दे० (सं० हिरण्य- रि-भक्ति-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) हरि. कशिपु ) प्रह्लाद का पिता, हिरण्यकशिपु ।
प्रीति, भगवान का प्रेम, हरिभगति (दे०)।
| "जिमि हरि-भक्तिहिं पाइ नन'-रामा० । हग्निात -संज्ञा. पु० दे० ( सं० हिरण्यात ) हिरण्याक्ष, प्रहलाद का चचा, हरिनाच्छ,
हरियर, हरियरा-वि० दे० (हि. हरा
सं० हरित ) हरा। हरिनाछ (दे०)।
हरियरी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) हरोतिमा, हरिनाथ -संज्ञा, पु. यौ० (सं०) हनुमान जी
हरापन, हरियाली, हरेरी । " मुनिहि सर्पराज, उच्चैश्रवा, हरि नायक।
हरियरी सूझ"-रामा० । हरिनाम-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० हरिनामन्)
रियल-संज्ञा, पु० (दे०) हरा कबूतर । भगवान का नाम। "है हरिनाम को श्राधार"
हरियाई । - संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० हरियाली) -तुल।
हरियाली. हरे रंग का फैलाव, हरे-हरे पेड़हरिनायक-संज्ञा, पु० यौ० (सं.) मारुति,
पौधों का विस्तार या समूह, दूब । “रहति शेष, उच्चैश्रवा।
सदाई हरियाई हिये घायनि मैं "-रखा। हरिनो-संज्ञा, स्त्री० (हि. हरिन) मृगी. हरियाना-स० कि० दे० ( हि० हरा )
हरिणी, हिरनी (दे०), हरिन की मादा। फिर हरा होना, पनपना, ताज़ा या नया हरिपद --संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) बैकुण्ठ, होना । संज्ञा, पु. ( ? ) हिसार से रोहतक विष्णु-लोक, भगवान के चरण, एक मात्रिक तक का प्रान्त । छन्द जिसके विषम चरणों में १६ और हरियारी--संज्ञा, स्त्री. (दे०) हरियाली। सम में ११ मात्राएँ होती हैं और अंत में यौ० हि०) हरि-प्रीति । " को न हरियारी गुरु-लघु होना आवश्यक है (वि०)। करै ऐसी हरियारी में"-द्विजः । हरिपति-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वानरेश, हरियाली--संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० हरित+ सर्पश, अश्वपति।
। आलि ) हरे हरे पेड़ पौधों का विस्तार या
For Private and Personal Use Only