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स्वरमंडल
१८४६
स्वर्गनदी स्वरमंडल-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) एक | स्वरूपवान्-वि० (सं० स्वरूपवतू ) सुन्दर, तारदार बाजा । " पृथग विभिन्न स्वर-मंडलै मनोरम, खूबसूरत, अच्छे रूपवाला। स्त्री. स्वरैः " माघ ।
स्वरूपवती, सुरूपा। स्वरबेधी-सज्ञा, पु० यौ० (सं०) शब्द बेधी। स्वरूपी-वि० ( सं० स्वरूपिन् ) सुन्दर, स्वर-शास्त्र--सज्ञा, पु. यौ० ( सं० ) स्वर- स्वरूपयुक्त, स्वरूपवाना. जो किपी के विज्ञान, वह शास्त्र जिसमें स्वर-विषयक स्वरूप के अनुसार हो स्त्री०-स्वरूपिणी। विवेचन हो।
*संज्ञा, पु० (दे०) सारूप्य। स्वरस - संज्ञा, पु. (सं०) पत्ती भादि को स्वरोचिस--सज्ञा, पु. (सं०) स्वारोचिष कूट-पोस और कपड़े से छान कर निकाला। मनु के पिता और कलि नामक गंधर्व के पुत्र । हुधा रम।
स्वरोद-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्वरोदय ) स्वरांत वि० यौ० सं०) वह शब्द जिसके
अंत में कोई स्वर हो, जैसे-विष्णु शिव। स्वरोदय-संज्ञा, पु. यो० (सं०) वह शास्त्र स्वराज-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्वराज्य। जिसमें श्वापों के द्वारा शुभाशुभ के जानने स्वराज्य-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अपना
को बताया गया है। राज्य, वह राज्य जिसमें किसी देश के स्वगंगा-ज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) मंदाकिनी। निवासी ही स्वदेश का शासन या प्रबन्ध
स्वर्ग-संज्ञा, पु. (सं०) देव-लोक, नाक, करते हैं, प्रजातन्त्र, स्वराज (दे०)।
वैकुंठ, सरग ( ग्रा.), ७ लोकों में से
तीसरा लोक जिसमें पुण्यात्मायें मृत्यूपरान्त स्वराट-संज्ञा, पु. ( सं० ) परमात्मा, ब्रह्मा,
जाकर निवास करती हैं (हिन्दू पुरा०)। ब्रह्मा, स्वराज्य-शासन-प्रणाली वाले राज्य का शासक या राजा । वि०-जो स्वयं प्रकाश.
मुहा०-स्वर्ग के पथ पर पैर देनामान होता हुआ औरों को प्रकाशित
मरमा, जान को जोखिम में डालना।
स्वर्ग जाना या सिधारना-मरना, करता हो।
देहावसान होना। यो०.--स्वर्ग:सुखस्वरित--संज्ञा, पु. ( सं० ) वह स्वर जो
बहुत ही उच्च कोटि का सुख । स्वर्ग की मध्यम स्वर से उच्चरित हो, जिसका उच्चारण
धार-आकाश-गंगा । दिव्य सुख स्थान, न तो बहुत जोर से ही हो और न धीरे से
सुख, भाकाश, ईश्वर । ही हो। वि० - स्वर-युक, गूंजता हुआ।
स्वर्ग-गमन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मरगा, स्वरूप-संज्ञा, पु. (सं०) अपना रूप,
मृत्यु। प्राकृति, आकार, शक्ल, सूरत, मूर्ति, चित्र, स्वर्ग-गामी - वि० ( सं० स्वर्गगामिन् ) देववह पुरुष जो किसी देवतादि का रूप बनाये ।
लोक को जाने वाला, मृत, मरा हुआ, हो, देवादि का धारण किया रूप । वि०
स्वर्गीय । सुन्दर, समान, तुल्य । मध्य-रूप में, स्वर्ग-तरु-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) देवतरु, तौर पर। संज्ञा, पु. (दे०)-सारूप्य । कल्पवृक्ष । "राम-जप मग स्वर्ग-तरु है स्वरूपज्ञ-संज्ञा, पु. (सं०) तत्वज्ञ, मारमा | करत इच्छा पूर"-स्फुट.।
और परमात्मा के यथार्थ रूप का ज्ञाता, | स्वर्गद-वि० (सं०) स्वर्ग देने वाला। स्वरूपज्ञाता। संज्ञा, खो०-स्वरूपज्ञाता। स्वर्गनदी-संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) स्वर्गगा, स्वरूपमान* --संज्ञा, पु० दे. (सं० स्वरूपवान) आकाश गंगा, स्वर्ग-सरिता, स्वर्ग: स्वरूपवान् , सुरूपवान, सुन्दर । । सलिला।
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