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सेतना
सुंखला
१८१४ मुंखला*-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० शृंखला ) सृप -- वि० (सं०) उत्पन्न, उद्भूत, विरचित, श्रृंखला, जंजीर, जंजीर।
निर्मित, युक्त, मोक्ष. छोड़ा हुया उत्पादित | संग% ---संज्ञा, पु० दे० ( सं० नंग ) सींग सृया-संज्ञा, पु० वि० सं०) बिरंचि, ब्रह्मा, (दे०), चोटी।
__सृष्टिकर्ता, रचने वाला। सुंगवेरपुर* ---संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० स्मृष्टि-संज्ञा, स्त्री० (सं०) उत्पत्ति, रचना,
शृंगवेरपुर) श्रृंगवेरपुर निषाद-नगर,सिंगरौर | निर्माण, बनावट, विश्व की उत्पत्ति, संसार, (वर्तमान)। .संगबेरपुर पहुँचे जाई " जगत, जहान, निसर्ग, प्रकृति ।। ---रामा० ।
स्मृष्टिकर्ता-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० सृष्टिकर्ता ) सुंगी (रिषि)---संज्ञा, पु. (दे०) शृंगी संसार का उत्पन्न करने या बनाने वाला, (ऋषि) ।
विधाता, ब्रह्मा, विधि, विरंच, परमेश्वर । संजय-संज्ञा, पु० (सं०) मनुजी के एक सृधिविज्ञान - संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वह पुत्र. धृष्टद्युम्न का वंश ।
शास्त्र जिनमें सृष्टि की रचना आदि पर सृक-संज्ञा, पु० (सं०) बरछा. शूल, भाला, | विचार किया गया हो, संमृति शास्त्र, हवा, वायु, तीर, बाण, शर । संज्ञा, पु० दे० | रष्टिविद्या । (सं० स्रज, स्वक्, लग ) हार, गजरा, माला। संक--संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० सेंकना ) सेंकने सृकाल, मृगान --- संज्ञा, पु. ३० (सं० की क्रिया का भाव । शृगाल ) सियार, गीदड़।
सेंकना-स० कि० दे० (सं० श्रेषण। किसी सृग*---संज्ञा, पु० दे० (सं० सक) शूल, वस्तु को पाग में भूनना या पकाना, किसी बरका, भाला, शर, तीर । संज्ञा, पु० दे० वस्तु में गरमी पहुँचाना। मुहा० - अाँख (सं० स्रज, स्त्रक) गजरा, माला, हार।। सेंकना--सुन्दर रूप देवना । धप सेंकना स्मृग्विनी*- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० स्राविणी) -धूप से देह गरम करना।
४ रगण का एक वर्णिक छंद (गि०) संगर-संज्ञा, पु० दे० (सं० शृंगार) एक पौधा सृजक % ---- संज्ञा, पु० (सं०) विरंचि, सृष्टि का जिसकी फलियों की तरकारी बनती है, एक बनाने या उत्पन्न करने वाला, सर्जक, ब्रह्म, । प्रकार का अगहनी धान । संज्ञा, पु० दे० सिरजनहार (दे०)।
(सं० भंगोवर) क्षत्रियों को एक जाति । सृजन-संज्ञा, पु० (सं०) सृष्टि के उत्पादन संगरी-संज्ञा, स्त्री० (हि० सेंगर) बबूल की या रचने का कार्य, सृष्टि, सिरजन फली, सिंगरी, छेमी।
संटा- संज्ञा, पु० (दे०) सरपत, मोटी सींक । सृजनहार *-----संज्ञा, पु० दे० (सं० सृज) संत-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० संहित) बिना या ( सं० सृजन+ हार-हि०-प्रत्य० ) सृष्टि- मुल्य. बेदाम, बिना खर्च, बिना कुछ लगे कर्ता, स्रष्टा, ब्रह्मा, विरंचि, सिरजनहार | या ख़र्च पड़े मुफ़्त । यौ० (दे०) संत-मंत । (दे०)।
मुहा०-संत का-जिसमें कुछ दाम न सृजना-स० क्रि० दे० ( सं० सृजन ) लगा हो, मुफ्त का। *बहुत, ढेर का ढेर । सिरजना (दे०), सृष्टि का उत्पन्न करना | संत में-- बिना कुछ दाम दिये, मुफ्त में | या बनाना, रचना, बनाना। २० रूप- | व्यर्थ, निष्प्रयोजन, फज़ल, निरर्थक | *वि. सृजाना, सृजवाना।
(दे०) ढेर सा, बहुत। सृति-संज्ञा, स्त्री० (सं०) आवागमन, रास्ता, सेतना--. क्रि० दे० ( हि० सैंतना)
सेतना (दे०), रक्षा में रखना, इकट्ठा करना।
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