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सीयन
१७७५
सीसौदिया सीयन-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० सीवन) सीयन, वि० दे० (सं० शीतल) गीला, सीड़। स्त्री० सिन, सीवन, सिलाई।
सीली। सीयरा-संज्ञा, पु० दे० (सं० शीत) सियरा। सीवन-संज्ञा, पु. स्त्री० (सं०) सियनि, सीर-संज्ञा, पु. (सं०) सूर्य, हल, हल सिलाई, सीने का कार्य, सीने से पड़ी में जोतने के बैन । संज्ञा, स्त्री० (सं० सीर = | लकीर. संधि, दरार, दराज़ । “सीवन सुन्दर हल) वह भूमि लिसे उसका मालिक या टाट पटोरे'-रामा०। ज़मीदार आप जोतता हो, खुदकाश्त, सीवना--संज्ञा, पु० दे० (हि. सिवाना ) वह भूमि जिसकी उपज बहुत से साझियों सिवाना । स० क्रि० (दे०) सीना, सिलाना। में बँटती हो। संज्ञा, पु. द. (सं० शिरा) सीस-संज्ञा, पु० दे० (सं० शीर्ष) सिर, मूंद, रक्त की नाही* वि० दे० (सं० शोतल) शीश । “सीस गिरा जहँ बैठ दसानन"-- शीतल, ठंढा । "लगत उसीर सीर सीर | रामा० । हू समीर गात"- सरस ।
सीसक-संज्ञा, पु० (सं०) एक धातु, सीसा । सीरक*-संज्ञा, पु. ( हि० सीरा ) ठंढा सीसताज'-संज्ञा, पु० दे० यौ० (हि० सीस-+करने वाला।
ताज-फ़ा०) कुलहा, शिकारी पशुओं की सीरख*--संज्ञा, पु० दे० (सं० शीर्ष) सीरष, टोपी, जो शिकार के समय खोली जाती है। शीर्ष, शिर, चोटी, ऊपरी भाग। सीमत्रान- संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० शिरसीरध्वज-संज्ञा, पु० (सं०) राजा जनक । । खाण) लोहे का टोप या टोपी, शीश. सीरनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (फ़ा० शिरोनी) । त्राण, शिस्त्राण। मिठाई, सिन्नी, सिरनी (ग्रा०)। सीसफूल-सज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० शीर्षसीरष*-संज्ञा, पु० दे० (सं० शीर्ष) शीर्ष, पुष्प) सिर पर का एक गहना या भूषण, शिर, चोटी, ऊपरी भाग ।
शीश-फूल । “ सीस-फूल बेंदी लसै. तापै सौरा-संज्ञा, पु० दे० (फा० शीर) पका कर । शुभमणि राज"--स्फु०। गादा किया चीनी का रस, चाशनी, हलवा, सीम-महल-संज्ञा, पु० दे० यौ० (फा० मोहन-भोग । *वि० दे० (सं० शीतल) स्त्री० शीशा+महल अ.) वह महल जिसकी शीतल, ठंढा । स्री-सीरी। " लगै सीरी दीवारों में शीशे जड़े हों, शीशमहल । सीरी, पवन, तन को पालस मिटै"-- | सीसी-मज्ञा, पु० दे० (सं० सीसक) एक लक्ष्म । शांत, चुप, मौन ।।
धातु । * सज्ञा, पु० दे० (फ़ा० शीशा) सील-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शीतल) सीढ़, शीशा, आईना, पारसी, काँच। सीड, नमी, तरी, गीलापन, भूमि की सीला-सज्ञा, स्त्री० (अनु०) सीड़ा, शीत, श्रार्द्रता । * संज्ञा, पु० दे० (सं० शोल) या हर्ष में मुख से निकला हुआ सीसी का शील, अच्छा स्वभाव, सौजन्य । "लखन शब्द, सी:कार, सिसकारी। "जाके सीली कहा मुनि सील तुम्हारा'-रामा० । करिबे में सुधा सी सीपी ढरकि जात 'सीलन-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शीतल) सील, स्फु० । * संज्ञा, स्त्री० दे० (फ़ा० शीशी) नमी, तरी।
शीशी। सीला-संज्ञा, पु० दे० (सं० शिल) खेत की सीमों, सीमों-संज्ञा, पु० दे० (फा० शीशम) फमल के कर जाने पर भूमि पर गिरे दाने शीशम का पेड़। जिन्हें कंगाल बीन लेते हैं, इन दानों से सीसौदिया-संज्ञा, पु० दे० (हि० सिसोदिया) निर्वाह करने की मुनियों की एक वृत्ति । | राजपूत क्षत्रियों की एक पदवी, शिवा जी का
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