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१७३२
सिद्धरसायन
सिधारना सिद्ध रसायन-संज्ञा, पु. यो. (सं०) दीर्घ- सिद्धि-संज्ञा, स्त्री. (सं०) कामना, इच्छा जीवी और शक्तिशाली करने वाली एक या मनोरथ का पूर्ण होना, सफलता मिलना, रसादिक औषधि ।
प्रयोजन निकलना, कामयाबी। " कौनउ सिद्धहस्त - वि० यौ० (सं०) दक्ष, निपुण, सिद्धि कि बिनु विश्वासा".-रामा० । कुशल, जिसका हाथ किसी कार्य में मैंज प्रमाणित या सिद्ध होना, निश्चय या निर्धागया हो, पटु।
रित किया जाना, फैसला, निर्णय, स्थिर या सिद्धांजन -- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वह अंजन
साबित होना, सीझना, पकना, तपस्या या जिसके प्रभाव से पृथ्वी में गड़ी वस्तुयें योग की पूर्ति का दिव्य फल, विभूति, दिखलाई देती हैं।
ऐश्वर्य, योग की ८ सिद्धियाँ: --अणिमा, सिद्धांत-संज्ञा, पु० (सं०) निर्धारित विचार,
महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, निश्चित मत, सोच-विचार के पीछे स्थिर
ईशि व, वशित्व, मोक्ष, मुक्ति, दक्षता, निपु. किया हुआ मत, उसूल, प्रधान मंतव्य,
णता पटुता, कौशल, दक्ष प्रजापति की एक मुख्य अभिप्राय या उद्देश्य, मत, ऐपी बात
कन्या और धर्म की पत्नी, गणेश जी की दो जो विद्वानों या उनके किसी वगं या संप्रदाय
स्त्रियों में से एक, विजया, भाँग, छप्पय का के द्वारा सत्य मानी जाती हो, निर्णीत विषय
३० गुरु और २२ लघु वर्णों वाला ४१ वाँ या अर्थ, तस्व की बात, पूर्व पक्ष के खंडन के
भेद । “पाठ सिद्धि नौ निधि के दाता"पीछे स्थिर मत, ज्योतिष श्रादि शास्त्रों पर
ह. चा० । लिखी हुई कोई पुस्तक विशेष! " यह
| सिद्धिगुटिका-- संज्ञा, स्त्री. यो० (सं०) सिद्धांत अपेल''-रामा० ।।
रसायन आदि बनाने की गुटिका या गोली। सिद्धांती- संज्ञा, पु. ( सं० ) मीमांसक,
सिद्धिदाता--संज्ञा, पु० यौ० (सं० सिद्धिदातृ) विचारक, सिद्धांत ग्रंथों का ज्ञाता।
गणेश जी। “अखिल सिद्धिदाता सदा, सिद्धान्तीय--वि० (सं०) सिद्धान्त-सम्हांधी,
तुमहीं एक गणेस" - स्फु० ।
सिद्धीश-पंज्ञा, पु० यौ० (सं०) गणेश जी। सिद्धान्त वाला, सैद्धांतिक ।।
सिद्धेश, सिद्धेश्वर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सिद्धा- संज्ञा, स्त्री० (सं०) सिद्धपुरुष की स्त्री,
महादेव जी, महायोगी, बड़ा सिद्ध, बड़ा देवांगना, १३ गुरु और ३१ लघु वर्णों
महात्मा । स्त्री० ---मईश्वरी। " हे सिद्धे. वाला भार्या छंद का १५हवाँ भेद (पि.)।
श्वर सिद्धि दे, पूरौ मन का श्रास"सिद्धाई --संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० सिद्ध+पाई शि० गो। हि.- प्रत्य० ) सिद्धता, सिद्धत्व, सिद्धपन, सिधाई-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० सीधा) सिद्ध होने की दशा, सिद्धः (दे०)। सीधापन, सरलता, ऋजुता । सिद्धार्थ-वि० (सं०) कृतार्थ, पूर्ण काम, विधाना* --अ० कि० द० ( हि० सिधारना )
पूर्ण-मनोरथ, पूर्ण कामना वाला। सज्ञा, पु. प्रस्थान या गमन करना, जाना, मरना । (सं०) जैनों के २४ वें श्रर्हत महाबीर के स० क्रि० द. (हि. सीधा ) सीधा करना, पिता, गौतमबुद्ध ।
सुधारना। सिद्धाश्रम संज्ञा, पु. यौ० सं०) सिद्धपुरुषों | सिधारना--प्र० कि० दे० ( हि० सिधाना )
या देवताओं के रहने का स्थान, हिमालय प्रस्थान या गमन करना, जाना, मरना, पहाड़ पर का सिद्ध लोगों का एक स्थान, स्वर्गवासी होना।" यह कहिकै स्वग-पुर सिद्धि-प्राप्ति का स्थान ।
दशरथ सिधारे"-हरिश्चंद्र ।
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