________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समाहरण
१७१०
समुच्चय
HIST
समाहरण --संज्ञा, पु. (सं०) समुदाय, समूह, | समीक्षा--संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) भली भाँति संग्रह, राशि, ढेरा, बहुत से पदार्थों का । देखना भालना, विवेचना, पालोचना, समाएक ठौर इक्ट्ठा करना, समाहार । वि.-1 लोचना, प्रयत्न, मीमांसा शास्त्र बुद्धि, समाहरणीय, समाहाय, समाहत । समिश (दे०) । वि.समीक्षित, समाहर्ता --- संज्ञा, पु. ( सं० समाहत ) | सरीक्ष्य, समीना मिलाने या इक्ट्ठा करने वाला, संग्रह कर्ता, समीचीन--- वि० (सं.) यथार्थ ठीक, उपसंचय करने वाला. तहपीलदार. राज-कर युक्त, उचित, वाजिब, मुनासिब ! संज्ञा, का एकत्रित करने वाला कर्मचारी (प्राचीन)! | स्त्री०..समीचीनना। समाहार-संज्ञा, पु. (सं० समूह, संग्रह, | माशीति* --संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० समिति ) पंज, ढेर, राशि, मिलना, संचय, जमघट,
सभा, समाज, संस्था, समिति । बहुत से पदार्थों का एक ही स्थान पर एकत्र समीप -- वि० (सं०) पास, निकट, नज़दीक। या इकट्ठा करना।
वि० (सं०) समीप : संज्ञा, स्त्री०-समीपता। समाहार-दुन्दु ---संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जहाँ
समीपवर्ती वि. ( सं० समीपवत्तिन् ) पास द्वंद्व समास में बहुत से पदार्थों का समूह __ का, निकट या समीप का। हो, जैसे संज्ञा परिभाषम् , या ऐसे पदों समीपौ----संज्ञा, पु. ( सं० मीपिन् ) निकट का द्वंद्व समास जिससे पदों के अर्थ के अति- सम्बन्धी, पास पा समीप का। · कृष्ण रिक्त कुछ और अर्थ भी प्रगट हो, जैसे--सेठ- समीपी पांडवा, गले हिवारे जाय"----कवी. साहूकार (व्याक०)।
समीर-संज्ञा, पु० (सं०) अनिल, वाय, हवा, समाहित ---वि० (सं०) समाधिस्थ, स्थिरी
प्राण-वायु । "मन्द २ श्रावत चल्यो, कंजर कृत, सावधान, एक अलकार ( काव्य० )। कंज-समीर"....वि०। "भुज समाहित दिग्वसना कृतः "-रघु०। । समीरण --संज्ञा, पु. (सं०, अनिल, पवन, समाहूत-वि० (सं०) बुलाया हुथा। वायु, हवा, समीरन (दे०) । समाहान-संज्ञा,पु०(सं.) बुलाना, पुकारना। समीहा -- संज्ञा, स्त्री० (सं०) चेष्टा, प्रयत्न, समिच्छा--संज्ञा, स्त्री० (दे०) समीक्षा (सं०)। अभिलाषा, इच्छा, वांछा, समीक्षा, पूर्णसमिति --- संज्ञा, स्त्रो० (सं०) समाज, सभा, इच्छा । " काहू की न जीहा करै ब्रह्म की प्राचीन काल में राजनीति के विषयों पर समीहा इत".- ऊ० श.। विचार करने वाली सभा (वैदिक ), किसी । समंद-समंदर---संक्षा, पु० ६० ( सं० समुद्र )
खास काम के लिये बनाई हुई सभा । समुद्र, समंदर ( उ० ) सिंधु, सागर ! समिध-संज्ञा, पु० (सं०) अग्नि ।
शादि।
।
" लैकै मुंदर फाँदि समुंदर मान मथ्यो गद समिधा-समिधि-संज्ञा, स्त्री० (सं०) हवन | लंक पती को'---तुल । वि० ----मादरी। या यज्ञ में मनाने की लकड़ी । “समिधि- समदरफल --संज्ञा, पु० (दे०) समुद्र-फल, सेन चतुरंग सुहाई"-रामा०।
। एक प्रकार का विधारा ( श्रौप० )। समीकरण ... संज्ञा, पु० (सं०. समान या बरा- | समंद फन -- संज्ञा, पु० यौ० (दे०) समुद्रबर करना, ज्ञात से अज्ञात राशि का मूल्य | फेन (सं०)। ज्ञात करने की एक क्रिया (गणि०) । वि.--- समुचित ----वि० (सं०) उचित, ठीक, समीसमीकरणीय, समीकृत ।।
चीन, उपयुक्त, वाजिब, जैपा चाहिये वैसा, समीकार--- संज्ञा, पु. (सं०) समान, कर्ता, | दुरुस्त, यथोचित, यथायोग्य । तुल्य या बराबर करने वाला।
समुच्चय-संज्ञा, पु० (सं०) समुदाय, समूह, समीक्षक-वि० (सं०) समीक्षा करने वाला। संग्रह. वृंद, राशि, पंज, ढेरी, ढेर, समाहार,
For Private and Personal Use Only