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समाजो
१७०८
समानाधिकरण या स्थापित की हुई सभा, प्रार्य समाज । या संन्यासियों के मृत शरीर को भूमि में " कोऊ आज राज-समाज में बल शंभु को गाड़ना (संन्यासी मामर जाना)। समाधि धनु कपि है"--राम ।
लगाना-योगियों का ब्रह्म-ध्यान में लीन समाजी- संज्ञा, पु. ( स० समाजिन् ) रंडी! होकर निश्चल हो जाना।
का पछुआ, सदस्य, समाज में रहने वाला। समाधिक्षेत्र ----संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वह स्थान वि०-समाज का समाज-संबंधी प्रार्य समाजी। जहाँ मृत योगी गाड़े जाते हैं, कब्रिस्तान । समादर--संज्ञा, उ० (सं०) रूम्मान, आदर, समाधिन-वि० (२०) समाधि प्राप्त योगी, सस्कार, ग्वातिर । वि.-समादत, सभा- वह योगी जिसने समाधि ली या लगाई दरणीय।
हो, समाधिस्थ । समादरणीय-वि० (सं०) सकार के योग्य, ! समाधिस्थ - वि० सं०) जो योगी समाधि मान्य, सम्मानीय।
लगायी या ली हो, समाधि प्राप्त । “समा समागृत-वि० (सं०) समादर किया हुश्रा ! धिस्थ है के जपै जो पुरारी"-- इन्द्रमणि । सम्मानित।
समान - वि० सं०) सदृश, तुल्य, बराबर, समाधान -- संज्ञा, पु० (सं०) समाधि, किसी
सम, गुण, रूप, रंग, मूल्य मान एवं के मन के संदेह के मिटाने वाली बात या
महत्वादि में एक से । वि० (सं०) मान-युक्त, काम, विरोध मिटाना, निराकरण, निष्पत्ति, सम्मान के साथ । समझाना, धैर्य-प्रदान, तसल्ली नायक या समान ना-- सज्ञा,स्रो० (सं०) सादृश्य, तुल्यता, नायिका का अभिमत सूचक कथा-बीज का बराबरी, समता। पुनः प्रदर्शन विशेष (नाटक०), मन को सब | समानांतर --- संज्ञा, पु० यौ० सं०) जिनके
ओर से हदा ब्रह्म में लगाना । " समाधान बीच में सदा बराबर दुरी रहे. तुल्य दूरी सब हो कर कीन्हा ''-रामा० । वि.- __ मुतबाज़ी, वे दो रेखायें जो तुल्य दूरी पर हों। समाधानीय।
समानान्तर चतुर्भज--संज्ञा, पु. यो० (सं०) समाधानना - स० कि० दे० सं० समाधन ) चार समानान्तर रेखाओं से घिरा हुया क्षेत्र, निराकरण करना, सांत्वना देना । 'इते पर जिल चतुर्भुज क्षेत्र की आमने सामने की बिनु समाधाने क्यों धरै तिय धीर ''...
भुजायें समानान्तर हों ( रेग्वा०)। भ्रम।
समानान्तर रेखा -- सिंजा, स्त्री० यौ० (सं०) समाधि--संज्ञा, स्त्री० (सं०) ध्यान, योग की
वह रेखा जो किसी रेखा से मदा समान क्रिया विशेष. समर्थन, प्रतिज्ञा, नींद, योग,
अन्तर पर रहे ( रेवा. )। योग का अंतिम फल जिसमें योगी के सब
समाना -- अ० कि० द० ( समावेश ) अटना, दुःख दूर हो जाते तथा उसे अनेक दिव्य
भीतर पाना, प्रविष्ट होना भरना । " श्राध शक्तियाँ प्राप्त हो जाती है (योग० )।
सेर के पात्र में, कैसे सर समाय"---नीतिः । काव्य में दो घटनाओं का देव योग से एक स० कि. (दे०) भाना. अंदर करना । ही समय में होना सूचित करने वाला एक रूप० - समबाना । गुण, एक अर्थालंकार जहाँ किती आकस्मिक समानाधिकरणा- संज्ञा,पुख्यौ०(सं०) समास हेतु से कठिन कार्य का सहज ही में सिद्ध में वे शब्द जो एक ही कारक का विभक्ति होना कहा जाता है. (अ.पा.), समाधान, ! से युक्त हों, वह शब्द या वाक्यांश जो किसी मृतक के गाड़ने का स्थान, मृतक को पृथ्वी वाक्य में किसी शब्द का समानार्थक हो में गाड़ना, ध्यान, योग, समाधी (दे०)। और उसे स्पष्ट करने के लिये प्रयुक्त हुआ मुहा०-समाधि देना (लेना)-योगियों । हो ( व्याक० )।
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