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सबब
बोली, शब्द, किसी महात्मा के वचन | " सबद - बान बेचे नहीं, बाँस बजावै फंक" —कबी० ।
सबब - संज्ञा, पु० (०) कारण, हेतु, प्रयोजन, वायम (का० ) वजह, साधन, द्वारा सवर संज्ञा, पु० दे० ( ० सत्र ) संतोष, धैर्य ।
छड़
सवरा - वि० दे० ( सं० सर्व ) सारा, कुल, सत्र का सब, संपूर्ण, । “दूध-दही चाटन में तुमतौ सवरो जनम गँवायो " - सत्य० । सबरी - संज्ञा स्त्री० (दे०) मोटे लोहे की से बना खोदने का एक श्रीज्ञार | पु० सवर | वि० त्रो० (दे०) समस्त सब | सबल - वि० (सं०) पराक्रम या पौरुष सहित, बल-युक्त, सेना-युक्त | संज्ञा, खो०- सबलता । विलो०- नवल, व्यवल । "निबल-सबल के ज़ोर तें, सबलन सो श्रनाखात" - नीति। सबलता - संज्ञा, खो० (सं०) पौरुष, पराक्रम ताकत, जोर, सामर्थ्य | सबलई, सबलाई -- संज्ञा, स्रो० दे० ( सं० सबलता ) बल. सबलता, पौरुष, जोर, सामर्थ्य | यौ० दे० ( हि० सब | लई - लाई = लेना, लाना ) सत्र लेना ।
बल,
सवाद, सवाद संज्ञा, पु० दे० (सं० स्वाद ) स्वाद, मज़ा, ज़ायका । वि० (दे०) सवादी | सवार - क्रि० वि० दे० ( हि० संवरा ) सबेरा,
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"
तड़का, सकार, शीघ्र, तुरंत, जल्दी ! सवील- पंज्ञा, त्रो० ( प्र०) मार्ग, रास्ता, राह तरीका, पथ, पंथ, सड़क, ढंग, उपाय, रीति, तरकीब, युक्ति, पौसला, प्याऊ (दे० ) । राह तरीक़ सबील पहचान --खा० । सवुनाना -- स० क्रि० ( हि० साबुन ) साबुन लगाना (वस्त्रादि में), सबुनियाना (दे० ) । सबुर - संज्ञा, पु० (दे०) सब ( फा० ) संतोष | सबूत - संज्ञा, पु० (फा० ) प्रमाण | वि० (दे० ) पूरा, बिना फटा, समूचा, साबुत (दे० ) । सबूरी - संज्ञा स्त्री० (३०) सत्र (फा० ) तोष | सवेर, सवेरा, सवेरे - क्रि० वि० दे० (सं० सवेला ) प्रातःकाल, तड़के, तड़का, शीघ्र,
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सभागृह
प्रथम । " जाग सबेरे हे मन मेरे -- स्फु० । "ताही तें आयो सरन सवेरे " -- विनय० । यौ० – बेर-सवेर - देर और जल्दी | सबै - क्रि० वि० ( ० ) समस्त सब | सवोतर - अव्य० दे० (सं० सर्वत्र ) सब जगह, सब स्थान या ठौर में, सर्वत्र । सब्ज़ - वि० ( फ़ा० ) ताज़ा और कच्चा फल - फूल । मुहा० - सब्ज़ बाग़ (गुलाब) दिखलाना - अपना कार्य साधने के हेतु किसी को बड़ी २ श्राशायें दिलाना, हरा गुलाव दिखाना । हरा, हरित, उत्तम, शुभ । सब्जा -- संज्ञा, पु० ( फा० सब्ज़ : ) हरियाली, भंग या माँग, विजया, पन्ना नामक रत्न, घोड़े का एक रंग, सबजा (दे० ) । सब्जी - संज्ञा, स्रो० ( फ़ा० ) हरियाली, हरी तरकारी, भंग, भाँग, विजया, वनस्पति आदि । यौ० - सब्जी मंडी -- तरकारी या फलों का बाज़ार |
सत्र--संज्ञा, पु० (०) धैर्थ्य, संतोष, सवर सवुर, सबूरी (दे० ) । ' करो सब आता है अच्छा ज्ञामाना " - म०इ० | किसी का सत्र पड़ना - किसी के धैर्य पूर्वक सहन किये कष्ट का प्रतिफल होना लो०- सब का फल मीठा-सुफलप्रद संतोष है । सम्बर - संज्ञा, पु० (दे०) लोहे के मोटे छड़ से बना भूमि खोदने का एक औज़ार । सभत्तर - प्रव्य० दे० ( सं० सर्वत्र ) सर्वत्र, सब ठौर, सर्वत्तर (दे०) । समय - वि० (सं०) सभीत, भय-युक्त। "सभय नरेस प्रिया पहँ गयऊ - रामा० । सभा -- संज्ञ, स्त्री० (सं० ) समाज, गोष्ठी, समिति, परिषद्, मजलिस, वह संस्था जो किसी बात के विचार करने के हेतु संगठित हो । " खंडर को सोभिजै सभा मध्य को दंड
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- राम० ।
सभाग, सागा - वि० दे० (सं० सौभाग्य ) सुन्दर, भाग्यवान, खुशकिस्मत, तक़दीरवर, सौभाग्यशाली | विलो० - अभागा । सभागृह - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) समाज
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