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सँभालू
चौकसी करना, निर्वाह या गुज़र करना, निबाहना, चलाना, किसी बात या वस्तु के ठीक होने का विश्वास या भरोसा करना, सहेजना, किसी मनोवेग का रोकना, बिगड़ने न देना, सुधारना । स० रूप -- सँभराना, सँभलाना, प्रे० रूप -- सँभलवाना । सँभालू - संज्ञा, पु० (दे०) मेदकी, मेवड़ी ( शान्ती ० ) सफेद सिंधुवार वृक्ष । संभावना - संज्ञा, पु० (सं०) मुमकिन या
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संभव होना, हो सकना, अनुमान, कल्पना, सम्मान, चादर, प्रतिष्ठा, एक अर्थालंकार जिसमें एक बात का होना दूसरी के होने पर निर्भर हो ( श्र० पी० ) । संभावित - वि० (सं०) मन में माना या अनुमाना हुआ, संभव, मुमकिन, आदरणीय, प्रतिष्ठित, कल्पित, संचित या जुटाया हुआ, सम्भवित (दे० ) ।
संभाव्य - वि० (सं० ) संभव, मुमकिन ।
संज्ञा, त्रो० - संभाव्यता ।
संभाषण- संज्ञा, पु० (सं०) वार्त्तालाप । बातचीत, कथोपकथन | वि०-संभाषणीय, संभाषित, संभाष्य ।
संभाषणीय - वि० (सं०) कथनीय, वार्तालाप, करने योग्य |
संभाषी - वि० (सं० संभाषिन् ) वार्त्तालाप करने या बोलने वाला कहने वाला । स्त्री० संभाषिणी ।
संभाषित - वि० (सं०) कथित । संभाष्य - वि० (सं०) जिससे वार्त्तालाप करना योग्य या उचित हो, कथनीय, बातचीत करने योग्य |
संभूत - वि० (सं० ) एक साथ उत्पन्न या उद्भूत, जन्मा हुआ पैदा, प्रगट, सहित, युक्त, साथ | संज्ञा, स्त्री० - संभूति । संभूय - अव्य० (सं०) साझे में, शामिल, या साथ में I संभूयसमुत्थान- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) ला का कार्य या काम, शामिल कारवार ।
संयत
संभेद - संज्ञा, पु० (सं०) भली भाँति भिदना, भेद नीति, वियोग | संज्ञा, पु० (सं० ) संभेदन | वि० - संभेदनीय । संभोग -- संज्ञा, पु० (सं०) सुख-पूर्वक व्यवहार,
स्त्री- प्रसंग, रति-केलि, मैथुन- कार्य्य, मिलाप की हालत, संयोग-शृंगार (शृंगार - रस-भेद ) । विलो०-- वियोग- विप्रलंभ |
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संभ्रम - पंज्ञा, पु० (सं०) उत्कंठा, व्याकुलता, घवराहट, व्यग्रता, विकलता, सहम, सिटपिटाना, खलबली, गौरव, सम्मान, चादर । क्रि० वि० - उतावली । " लेखि पर- नारी मन सम्भ्रम भुलायो है " - कालि० । संभ्रांत - वि० (सं०) व्यग्र, उद्विग्न, विकल, घबराया हुआ, व्याकुल, सम्मानित समाहत, प्रतिष्ठित ।
संभ्रांति--संज्ञा, स्त्री० (सं०) भ्रांति, भ्रम,
व्यग्रता, व्याकुलता ।
संभ्राजन * - प्र० क्रि० दे० (सं० संभ्राज ) भली भाँति या पूर्ण रूप से शोभित होना । संमत- वे० (सं० ) सहमत, अनुमत, जिसकी राय या मत मिलता हो । संमति - संज्ञा, त्रो० (सं०) राय, अनुमति, सलाह, “गुरु- श्रुति-संमति धर्म-फल, पाइय विनहिं कलेस " - रामा० ।
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संमान- संज्ञा, पु० (सं०) श्रादर, गौरव, इज्जत, सत्कार, सम्मान । करहु मातुपितु कर संमाना " स्फु० 1 वि०संमाननीय, संमानित । संमानन:- स० क्रि० दे० (सं० संमान )
श्रादर या सत्कार करना । संमेलन - संज्ञा, पु० (सं०) जमाव, जमघट, सभा, समाज, मिलाप, मेल, सम्मिलन | संम्राज संज्ञा, पु० दे० (सं० साम्राज्य )
साम्राज ।
संयत - वि० (सं०) दमन किया या दबाव में रखा हुआ, बँधा हुआ, बद्ध, क़ैदी, वशीभूत, कैद, बंद किया हुआ, व्यवस्थित क्रम-बद्ध,
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