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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सँभालू चौकसी करना, निर्वाह या गुज़र करना, निबाहना, चलाना, किसी बात या वस्तु के ठीक होने का विश्वास या भरोसा करना, सहेजना, किसी मनोवेग का रोकना, बिगड़ने न देना, सुधारना । स० रूप -- सँभराना, सँभलाना, प्रे० रूप -- सँभलवाना । सँभालू - संज्ञा, पु० (दे०) मेदकी, मेवड़ी ( शान्ती ० ) सफेद सिंधुवार वृक्ष । संभावना - संज्ञा, पु० (सं०) मुमकिन या १६७५ संभव होना, हो सकना, अनुमान, कल्पना, सम्मान, चादर, प्रतिष्ठा, एक अर्थालंकार जिसमें एक बात का होना दूसरी के होने पर निर्भर हो ( श्र० पी० ) । संभावित - वि० (सं०) मन में माना या अनुमाना हुआ, संभव, मुमकिन, आदरणीय, प्रतिष्ठित, कल्पित, संचित या जुटाया हुआ, सम्भवित (दे० ) । संभाव्य - वि० (सं० ) संभव, मुमकिन । संज्ञा, त्रो० - संभाव्यता । संभाषण- संज्ञा, पु० (सं०) वार्त्तालाप । बातचीत, कथोपकथन | वि०-संभाषणीय, संभाषित, संभाष्य । संभाषणीय - वि० (सं०) कथनीय, वार्तालाप, करने योग्य | संभाषी - वि० (सं० संभाषिन् ) वार्त्तालाप करने या बोलने वाला कहने वाला । स्त्री० संभाषिणी । संभाषित - वि० (सं०) कथित । संभाष्य - वि० (सं०) जिससे वार्त्तालाप करना योग्य या उचित हो, कथनीय, बातचीत करने योग्य | संभूत - वि० (सं० ) एक साथ उत्पन्न या उद्भूत, जन्मा हुआ पैदा, प्रगट, सहित, युक्त, साथ | संज्ञा, स्त्री० - संभूति । संभूय - अव्य० (सं०) साझे में, शामिल, या साथ में I संभूयसमुत्थान- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) ला का कार्य या काम, शामिल कारवार । संयत संभेद - संज्ञा, पु० (सं०) भली भाँति भिदना, भेद नीति, वियोग | संज्ञा, पु० (सं० ) संभेदन | वि० - संभेदनीय । संभोग -- संज्ञा, पु० (सं०) सुख-पूर्वक व्यवहार, स्त्री- प्रसंग, रति-केलि, मैथुन- कार्य्य, मिलाप की हालत, संयोग-शृंगार (शृंगार - रस-भेद ) । विलो०-- वियोग- विप्रलंभ | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संभ्रम - पंज्ञा, पु० (सं०) उत्कंठा, व्याकुलता, घवराहट, व्यग्रता, विकलता, सहम, सिटपिटाना, खलबली, गौरव, सम्मान, चादर । क्रि० वि० - उतावली । " लेखि पर- नारी मन सम्भ्रम भुलायो है " - कालि० । संभ्रांत - वि० (सं०) व्यग्र, उद्विग्न, विकल, घबराया हुआ, व्याकुल, सम्मानित समाहत, प्रतिष्ठित । संभ्रांति--संज्ञा, स्त्री० (सं०) भ्रांति, भ्रम, व्यग्रता, व्याकुलता । संभ्राजन * - प्र० क्रि० दे० (सं० संभ्राज ) भली भाँति या पूर्ण रूप से शोभित होना । संमत- वे० (सं० ) सहमत, अनुमत, जिसकी राय या मत मिलता हो । संमति - संज्ञा, त्रो० (सं०) राय, अनुमति, सलाह, “गुरु- श्रुति-संमति धर्म-फल, पाइय विनहिं कलेस " - रामा० । 66 संमान- संज्ञा, पु० (सं०) श्रादर, गौरव, इज्जत, सत्कार, सम्मान । करहु मातुपितु कर संमाना " स्फु० 1 वि०संमाननीय, संमानित । संमानन:- स० क्रि० दे० (सं० संमान ) श्रादर या सत्कार करना । संमेलन - संज्ञा, पु० (सं०) जमाव, जमघट, सभा, समाज, मिलाप, मेल, सम्मिलन | संम्राज संज्ञा, पु० दे० (सं० साम्राज्य ) साम्राज । संयत - वि० (सं०) दमन किया या दबाव में रखा हुआ, बँधा हुआ, बद्ध, क़ैदी, वशीभूत, कैद, बंद किया हुआ, व्यवस्थित क्रम-बद्ध, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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