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शैलपुत्री
शैलाधिपति, शैलनायक,
हिमालय, शैलनाथ, शैलेन्द्र, शैलेश । शैलपुत्री - संज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) पार्वती जी, शैल-तनुजा ।
शैलसुता - संज्ञा, त्रो० यौ० (सं०) पार्वती जी, शैल-कन्या ।
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शैलाट-संज्ञा, पु० (सं० ) सिंह. किरात, भील ।
शैलात्मजा --संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) उमा, पार्वती ।
शैली - संज्ञा, स्रो० (सं०) ढंग, ढब, चाल, प्रणाली, प्रथा, तरीक़ा, तर्ज, रीति, रस्मरिवाज़, वाक्य रचना का ढंग !
शैलूष - संज्ञा, पु० (सं०) नाटक खेलने वाला, नट, बहुरूपिया, धूर्त्त, छली । " अथोप पत्ति छलनापरोऽपरामवाप्य शैलूप इवैष भूमिकाम् ”—–माघ० । शैलेंद्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) हिमालय । शैलेय - वि० (सं०) पथरीला, पत्थर का, पहाड़ी | संज्ञा, पु० - सेंधानमक, शिलाजीत, छरीला सिंह | शैलोदक - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शैल - जल, प्रत्येक वस्तु को पत्थर कर देने वाला एक पर्वतीय जल |
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शैव - वि० (सं०) शिव का शिव-संबंधी । संज्ञा, पु० - शिवोपासक शैवमतानुयायी, पाशुपत अस्त्र, धतूरा, शिव-भक्त । "यं शैवाः समुपासते शिव इति " - ६० ना० । शैवलिनी - संज्ञा, स्रो० (सं०) नदी, सरिता । शैवाल -- संज्ञा, पु० (सं०) सिवार, सेवार, जल-मल । " शैलोपमा शैवत मंजरीणां " - रघु० ।
शैवी - संज्ञा, स्रो० (सं०) पार्वती, दुर्गा | वि० (सं०) शिव या शैव सम्बन्धी । शैःया -- संज्ञा, स्त्री० (सं० ) सत्यवती अयोध्यानरेश हरिश्चंद्र की रानी और रोहितश्व की
माता ।
शैशव - वि० (सं०) शिशुता, शिशु या बालकसंबंधी, वाल्यावस्था-संबंधी, बच्चों का |
शोध
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"शैशव शेषवानयम् - नैष० । संज्ञा, पु० (सं०) बालकपन, लड़कपन, शिशुपा व्यवहार । शैशुनाग - संज्ञा, १० (सं०) प्राचीन मगधदेशाधिपति शिशुनाग का वंशज । शोक - संज्ञा, पु० (सं०) दुःख, संताप, रंज, सोक (दे०) किसी प्रिय वस्तु के अभाव या पीड़ा से उत्पन्न सोम । " यह सुनि समुझि शोक परिहरऊ - रामा० । शोकहर - वि० (सं०) दुख-विनाशक । शोकहार - संज्ञा, पु० (सं०) ३ मात्राओंों का एक मात्रिक छंद, शुभंगो ( पिं० ) । शोकाकुल- वि० यौ० (सं०) संताप या दुःख, से व्याकुल, शोक- पीड़ित, शोकातुर, शोकार्त्त । शोकातुर-शोकार्त्त - वि० (सं०) संताप से व्याकुल, शोक - पीड़ित, शोकाकुल । शोकापह - वि० यौ० (सं०) दुःखनाशक, शोक विनाशक ।
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शोख - वि० (फ़ा० ) चुष्ट, ढीठ. नटखट, शरीर, चंचल, गहरा चमकदार रंग | संज्ञा, खो० --- गांखी ।
शोच संज्ञा, पु० (सं० शोचन ) परिताप संताप, शोक, दुःख, चिंता, फिक्र, सोच (दे० ) । "फिर न शोच तन रहै कि जाऊ
-रामा० ।
शाचनीय - वि० (सं०) चिंतनीय, जिसे देख दुःख हो, प्रति हीन - दीन, बुरा? " शोचनीय नहिं अवध-भुवालू "-- रामा० । शोण - संज्ञा, पु० (सं०) लालिमा, ग्ररुणता लाली, लाल रंग, श्रग्नि, रक्त सोननदी | शोणित - वि० (सं०) लाल, रक्त वर्ष का
संज्ञा, पु० - रुधिर, रक्क लोहू, सोनित (दे० ) । तव शोणित की ध्यान, तृषित रामशायक- निकर ...... रामा० । शोथ - संज्ञा, पु० (सं०) मोग (दे०) सूजन, वरम, किसी प्राणी के किसी अंग का फूल या सूज उठना ।
शोध - संज्ञा, पु० (सं०) खोज, शुद्धि-संस्कार, दुरुस्ती, ठीक करना, अदा या चुकता होना,
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