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शृंगार शूर---संज्ञा, पु० (सं०) वीर, सूरमा. बहादुर, ! शुलपाणि-संज्ञा, पु० यौ० सं०) महादेव योद्धा, सैनिक, सूर्य, सिंह, कृष्ण के जी, मूलवाणी (दे०)। पितामह, विष्णु, सूर (दे०)।
शुलभृत्--संज्ञा, पु० (सं०) शिव जी। शुरण, शूरन --- संज्ञा, पु० दे० (सं० सूरण) शूलहस्त--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शंकर जी। जमीकंद, सूरन (दे०)।
शूलि-संज्ञा, पु० (सं०) महादेव जी। संज्ञा, शूरता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) बहादुरी, वीरता, स्त्री० (दे०) सूली। सूरता (दे०) । " सोई शूरता कि अब शूलिक - संज्ञा, पु. (सं०) फाँसी या सूली कहु पाई "-~-रामा० !
देने वाला। शूरताई*-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० शूरता) शूली--ज्ञा, पु. ( सं० शूलिन् ) महादेव बहादुरी, वीरता।
जी, शिव जी, शूल रोगी, एक नरक । शूरवीर-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) बहादुर, संज्ञा, खो--सूली पर चढ़ने वाला, सूली सुरमा । संज्ञा, सी.---शुर-वीरता। देने वाल' । ज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शूल ) शूरसेन --- संज्ञा, पु.. (सं०) प्राचीन मथुरा- पीड़ा, दई, शूल, दुख । नरेश जो श्रीकृष्ण जी के पितामह थे, मथुरा शृंबल संज्ञा, पु. (सं०) मेखला, जंजीर. प्रदेश (प्राचीन नाम)।
सिक्कड, साँकल, हथकड़ी, बेड़ी। शुरा*-संज्ञा, पु० दे० ( सं० शूर ) वीर, शृंखलना-संज्ञा, स्त्री० (सं०) क्रमबद्ध या सामन्त, बहादुर. सूग (दे०): संज्ञा, पु० दे० सिलसिले वार होने का भाव । (सं० मूर्य्य) सूर्य ।
| श्रृंखला-- संज्ञा, स्त्री० (सं०) जंजीर, साँकल, शूप-संज्ञा, पु० (स०) अन्नादि पछोरने का कटि वस्त्र, मेखला, तगड़ी. करधनो. श्रेणी, सूप, सूपा (दे०)।
पंक्ति, क्रम, एक अर्थालंकार जिसमें कहे हुये शूर्पणखा-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) सूपनखा।
पदार्थों का यथाक्रम वर्णन किया जाय, (दे०), रावण की बहिन, लक्ष्मण द्वारा |
यथाक्रम, यथासंख्य (अ० पी०)। पंचवटी में इसके नाक कान काटे गये थे। अंखलावद्ध-वि० यौ० (सं०) क्रमवद्ध, शूर्पनखा-संज्ञा, स्त्री० (दे०) शुर्पणखा यथाक्रम, सिलसिलेवार, श्रृंखला से बँधा
हुआ। शूरक-संज्ञा, पु० (सं०) बंबई प्रान्त के अंग-डा. प. (पशिश ही सोपरा स्थान का पुराना नाम ।
का सर्वोच्च भाग, गाय आदि के सिर के सींग, शूल----संज्ञा, पु० (सं०) त्रिशूल, बरछी, कंगूरा, श्रृंगी या सिंगी नाम का एक बाजा, जैसा एक अम्ल ( प्राचीन), भाला, शूली, पंकज, कमल, ऋष्य शृंग। प्राण दंड देने की सूली, वायु-विकार जन्य शृंगपुर--संज्ञा, पु. (सं०) शृंगवेरपुर । पेट का तेज़ दर्द, दुःख कोंच. पीड़ा, टीस, शृंगवेरपुर-सज्ञा, पु. (सं०) श्रीराम के एक अशुभयोग (ज्यो०, बड़ा और लंबा प्रिय निषाद-राज गुह का प्राचीन नगर, नुकीला काँटा, मृत्यु, पताका. झंडा. सींक, सिंगरौर (वर्तमान)। छड़. सलाख। वि०-नोकदार वस्तु, नुकीला। श्रृंगार-संज्ञा, पु. (सं०) रम-राज, काव्य शुलधर, शूलधारी-संज्ञा, पु० (सं० शूल- के नौ रसों में से सर्व प्रधान एक रस, धारिन् ) महादेव जी।
जिसका स्थायी भाव रति, पालम्बन-विभाव शूलना* ---अ० कि० दे० (सं० शूल+ना. नायक नायिका, उद्दीपन वाटिका, सुन्दर प्रत्य० ) शूल के तुल्य गड़ना, पीड़ा या । वायु आदि, नायक-नायिका के मिलन और दुख देना।
विलगाव के आधार पर इसके दो भेद हैं:भा. श० को.....
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