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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir INDI अर्थदंड अर्थापत्ति अर्थदंड-संज्ञा, पु. यौ० (सं.) जुर्माना, | अर्थवेद-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) शिल्पकिसी अपराध के दंड में अपराधी से लिया शास्त्र, अर्थ-शास्त्र जाने वाला धन । अर्थवृद्धि-संज्ञा, स्त्री० (सं० यौ० ) धनअर्थदूषण-अर्थदोष-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वृद्धि, समृद्धि। अर्थगत दोष, जैसे अविवक्षितार्थ दोष, । अर्थशास्त्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अर्थ अपरिमित व्यय, अपव्यय, धन-दोष।। की प्राप्ति, रता, और वृद्धि के विधान अर्थना*-स. क्रि० दे० (सं० अर्थ ) बताने वाला शास्त्र, राज-प्रबंध, वृद्धि और माँगना, याचना। रक्षादि की विद्या, नीति-शास्त्र, धनोपाप्रर्थनाश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) धननाश, जंन का विज्ञान, राज या दंड-नीति । वि०-अर्थ-शास्त्री-अर्थ - शास्त्र - ज्ञाता, निराशा। अथ-हानि, धन हानि । अर्थशास्त्रज्ञ वि० यौ० (सं० ) अर्थ-शास्त्री। अर्थपति-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कुबेर, अर्थ-सचिव- संज्ञा, पु० यौ० ( सं . ) अर्थ मंत्री, राज्य के अर्थ सम्बन्धी विषयों की राजा, अति धनी। अर्थपर-वि० ( सं० ) कृपण, व्यग्र, देख-रेख करने वाला मंत्री। अर्थ साधन-संज्ञा, पु० यौ० (सं.) स्वाथ शंकित। का सिद्ध करना, अपना मतलब पूरा करना, अर्थपरायण–वि. ( सं. ) स्वार्थी, प्रयोजन-सिद्धि का उपाय या ज़रिया। मतलबी। अर्थपिशाच-वि० (सं० ) बड़ा कंजूस, अर्थ साधक-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्वार्थ को सिद्ध करने वाला, मतलबी, धन-लोलुप। स्वार्थी। अर्थ-प्रयोग-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अर्थसिद्धि--संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) मत. वृद्धि, निमित्त, धन-दान । लब का पूरा होजाना, प्रयोजन-पूर्ति । अर्थप्राप्ति-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) अर्थान्तरन्यास-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) धन लाभ । एक प्रकार का अलंकार जिसमें सामान्य से अर्थमंत्री-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अर्थ विशेष का और विशेष से सामान्य का सचिव, खजांची, आर्थिक विषयों की देख साधर्म्य या वैधम्य से समर्थन किया जाय रेख करने वाला राज्य-मंत्री। (काव्य०, अ० पी०)। अर्थवत्व-वि० (सं० ) प्रयोजनार्हता, अर्थात--अव्य० (सं० ) यानी, मतलन यह प्रयोजनीयता। है कि, अथतः, फलतः, विवरण-सूचक शब्द । अर्थवाद-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) किसी अर्थाना*-स० कि० दे० (सं० अर्थ ) विधि के करने की उत्तेजना को सूचित करने अर्थ लगाना, मतलब समझाना । वाला वाक्य, वह वाक्य जो सिद्धान्त के रूप " कबिरा गुरु ने गम करी, भेद दिया में नहीं वरन् केवल चित को किसी ओर अर्थाय"। प्रवृत्त करने वाला हो, काल्पनिक, फल- अर्थापत्ति-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) ऐसा श्रुति, स्तुति, प्रशंसा, प्ररोचक वाक्य ।। प्रमाण जिसमें एक बात से दूसरी बात की अर्थवान-वि० (सं० ) अर्थ युक्त, मतलबी। सिद्धि प्राप ही श्राप हो जाये ( मीमांसा० ) अर्थ-विज्ञान-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) एक प्रकार का अलंकार जिसमें एक बात शब्दार्थ-ज्ञान-शास्त्र। के कथन से दूसरी की सिद्धि दिखलाई की। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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