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व्याजक
व्यालिक मुख-छवि विधु-व्याज बखानी"-रामा० । व्यापक--वि० (सं०) श्राच्छादक, सब स्थानों
"दिन चलि गये व्याज बहु बादा"-रामा०।। में फैला हुआ, घेरने या ढकने वाला, प्रत्येक व्याजक-वि० (सं०) छली, फणी, व्याजू । पदार्थ के भीतर-बाहर वर्तमान । ' सब व्याजनिंदा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) ऐसी में व्यापक पै पृथक. रीति अलौकिक सर्व '' निन्दा जिसमें यों देखने से निन्दा न हो, एक -मा० । संज्ञा, खो०- व्यापकता, पु०शब्दालंकार ( अर्थालंकार ) जिसमें निंदा व्यापकत्व। तो हो किन्तु देखने में वह स्पष्ट न हो।। व्यापना-अ. क्रि० दे० ( सं० व्यापन ) व्याजस्तुति - संज्ञा, स्त्री० य (सं०) ऐसी व्याप्त होना, किसी वस्तु के भीतर-बाहर
स्तुति जिसमें देखने से स्तुति न हो वरन् । फैलाना या वर्तमान रहना, आच्छादित व्याज या बहाने से स्तुति हो, एक शब्दा- करना, श्रसर करना, प्रभाव डालना, पैठना। लंकार ( अर्थालंकार ) जिसमें बहाने से | व्यापादन -संज्ञा, पु. ( सं० ) हत्या, नाश, ऐसी स्तुति की जाये कि देखने में वह पर-पीड़न का यन या उपाय । वि... स्पष्ट न जान पड़े।
व्यापादनी, व्यापादित। व्याजू-संज्ञा, पु० वि० दे० ( सं० व्याज ) व्यापार ---- संज्ञा, पु० सं०) कार्य, कर्म, कामवह धन जो व्याज या सूद पर उधार दिया धंधा, सौदागरी, रोजगार, व्यवसाय, उद्यम, जावे, बियाज (दे०)।
क्रय-विक्रय का कार्य, व्यापार (दे०)। व्याजोक्ति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) छल या व्यापारी-संज्ञा, पु. ( सं० व्यापारिन् ) कपट से भरी बात, एक अर्थालंकार जहाँ व्यवसायी सौदागर, रोजगारी, व्यापारी किसी प्रगट बात के छिपाने को कोई (दे०) । वि० (हि० व्यापार-सम्बन्धी। बहाना बनाया जाय (अ० पो०)। व्यापी-संज्ञा, पु. (सं. व्यापिन् ) सर्वगत, व्याड़-वि० (सं०) छली, ठग, धूर्त । संज्ञा, विभु, व्यापक । पु०-व्याघ्र, सिंह, सर्प, ।
व्याप्त- वि० (सं.) विस्तृत, फैला हुआ। व्याडि---संज्ञा, पु० (सं०) एक व्याकरण ग्रंथ- व्याप्ति- संज्ञा, स्त्री. (सं०) व्याप्त होने का कार प्राचीन ऋषि ।।
भाव, एक वस्तु का दूसरी में पूर्ण रूप से व्यादान--संज्ञा, पु. (सं०) फैलावा, विस्तार। फैला या मिश्रित होना, ८ प्रकार की व्याध-संज्ञा, पु. (सं०) निषाद, अहेरी, |
सिद्धियों या ऐश्वर्या में से एक । बनैले पशुओं का शिकारी, किरात, बहेलिया व्यामोह-संज्ञा, पु. (सं०) अज्ञान, मोह, ब्याधा (दे०) एक जंगली जाति । "व्याध
दुख, व्याकुलता। बधो मृग बान तें, रक्तै दियो बताय"..-.. व्यायाम-संश, पु० (सं०) परिश्रम, कपरत तुल।
बल वर्धनार्थ किया गया शारीरिक श्रम । व्याधि-संज्ञा, स्त्री. (सं०) व्यथा, रोग, व्यायाम हद गात्रस्य तेजो बुद्धियशोवलं" बीमारी, झंझट, बखेड़ा, विपत्ति, काम या -स्फु० । वियोगादि से देह में कोई रोग होना (साहि०) | व्यायोग-संज्ञा, पु. (सं.) दृश्य काव्य या बियाधि (दे०) अँगुली की नौक का फोड़ा। रूपक का एक भेद (नाटय० )।
याधिप्रसाधि जानि तिन त्यागी .... | व्याल-संज्ञा, पु० (सं०) साँप, बाघ, राजा, रामा०।
विष्ण, दंडक छंद का एक भेद (पिं०) । व्यान-संज्ञा, पु. (सं०) देहान्तर की पाँच व्यालि-संज्ञा, पु. (सं० व्याडि ) व्याकरण वायुओं में से सर्वत्र संचार करने वाली एक ग्रंथकार एक ऋषि । वायु।
| व्यालिक-संज्ञा, पु० (सं०) सँपेरा, व्याली।
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