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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विथित विदिश , विदिशा विथा जल परस बिन, वसियत मों हिय- दरना, दलित या नष्ट करना, दबाना, मलना। ताल"-वि०। स० रूप-विदलाना प्रे० रूप-विदलवाना। विथित*-वि० दे० ( सं० व्यथित ) दुखित, विदा -- संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० विदाय ) कहीं पीड़ित, बिथित (दे०)। से चलने की अनुमति या प्राज्ञा, प्रस्थान, विथुरना-स० क्रि० (दे०) बिखरना, | रुख़सत, प्रयाण । महा.-विदा माँगना फैलना, फूटना, बिथुरना। वि०-बिथुरा, - प्रयाण की आज्ञा मॉगना, विदा देना स्त्री० विथुरी। -प्रस्थान की आज्ञा देना, (दीप) विदा विथोरना-बिथोरना-स० के० (दे०) ! होना (करना) (दीप) वुझना (बुझाना)। अलग या पृथक करना। " बारन बिथोरि विदाई---संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० विदा+ईथोरि थोरि जो निहारे नैन । प्रत्य० ) प्रस्थान की श्राज्ञा, विदा की आज्ञा विदग्ध-संज्ञा, पु० (सं०) 'चतुर, विद्वान, ! या अनुमति, विदा के समय दिया गया धन, कुशल, दक्ष, चालाक, रसिक, भावुक । प्रस्थान, प्रयाण, बिदाई। विदग्धता-संज्ञा, स्त्री. (सं०) चातुरी, विदारक-वि० (सं०) दरने या चीड़ने विद्वता, निपुणता, चालाकी, रसिकता। वाला, फाड़ डालने वाला, विदीर्ण या विदग्धा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) ऐसी परकीया विनाश करने वाला, दुखद । नायिका जो चातुरी या चालाकी से पर विदारगा--- संज्ञा, पु० (सं०) फाइना, चीरना, पुरुष को मोहित या अनुरक्त करे । मार डालना, नष्ट करना, विदारन (दे०)। विदमान* ---अव्य० दे० (सं० विद्यमान )| वि०-विदारित, विदारणाय । विद्यमान, उपस्थित प्रस्तुत । विदारना*----स० वि० दे० (हि. विदरना ) विदरना*-अ० कि० दे० ( सं० विदारण ) | फाइना, चीरना, विदारना (दे०) । विदीर्ण होना, फटना। स० रूप ---विदारना। विदारनहार-वि० ( हि० विदारना ) चीड़ने स० कि० (दे०) फाड़ना, विदीर्ण करना। या फाड़ने वाला । " कमल चोरि निकरै विदर्भ-संज्ञा, पु. (सं०) बरार देश का । न अलि, काठ विदारनहार' --नीति । पुराना नाम | "यसवाप्य विदर्भभूः प्रभुम्" विदारी-- वि० ( सं० विदारिन् । फाड़ने या -----नैष । चीरने वाला। विदर्भपुरंदर-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) राजा विदारीकंद-संज्ञा, पु० (सं०) एक कंद, भीम, दमयंती के पिता । पृत दरः स विदर्भ- भुइँ-म्हड़ा ( ग्रा० )। पुरंदर:-नैष । विदाही--- संज्ञा, पु० (सं० विदाहिन् ) पेट विदर्भराज- संज्ञा, पु. (सं०) दमयंती के में जलन उत्पन्न करने वाले पदार्थ । पिता, विदर्भनरेश, भीम। विदिक-विदिश---संज्ञा, स्त्री० (सं०) दो विदर्भाधिपति, विदर्भपति--संज्ञा, पु. ! दिशाओं के बीच का कोण । " दिशोमध्ये यौ० (सं०) राजा भीम, विदर्भनरेश, विदिक स्त्रियां ''- अमर० । विदर्भनाथ, विदर्भनायक । “ तं विद- विदित- वि० (सं०) समझा या जाना हुआ, धिपतिः श्रीमान्'- नेपा। ज्ञात, मालूम, बिदित (दे०)। “मोर विदलन-संज्ञा, पु० (सं०) मलने, दलने या सुभाव विदित नहिं तोरे "-रामा० । दबाने आदि का कार्य, नष्ट करना, फाड़ना। विदिश-विदिशा--संज्ञा, स्त्री. (सं०) दो वि० विदलित, विनलनीय। दिशाओं के बीच का कोना, दिकोण। विदलना*--स० क्रि० दे० ( सं० विदलन ) । वर्तमान, भेलसा शहर ( प्राचीन)। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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