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अरस
अरक्षित में खाया जाता है, अर्हई (प्रान्ती०) कि० अ० (दे० ) आलस करना, मंद पड़ना घुइयाँ, बंडा।
पू० का० क्रि०-अरसाइ-नि० वि० अरस-वि (सं० अ-+-रस ) नीरस, फीका, अरसाई, अरसाये (७०)। शुष्क, गँवार, अनारी, अरसिक, निष्ठुर, । श्ररसाना-प्र. क्रि० दे० (सं० आलस) असभ्य ।
अलसाना, तंद्रित होना, निद्राग्रस्त होना, संज्ञा० ० ० ( सं० अलस ) सुस्ती चढ़ना।। बालस्य ।
" पारस गात भरे अरसात हैं "-दास । संज्ञा, पु० दे० (सं० अर्श) छत, पटाव, अरसी -संज्ञा, स्त्री० (दे०) अलसी, धरहरा, महल, अाकाश ।
| तीली। " जाकी तेज, अरस में डोलै 'छत्र० । रसीला—वि० दे० ( सं० अलस ) "श्रफिल अरस ते उतरी विधिना दीन्हीं। आलस्यपूर्ण, अलसी, अलसाने वाला, बाँटि'कबीर ।
अलसाया हुआ। अरम-परस-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्पर्श) स्त्री० अरसीली। लड़कों का एक खेल, छुआ-छुई, आँख- अरसौंहास-वि० (दे० ) पुं० अलसौंहा मिचौली, आँख-मिचौनी (दे०)।
स्त्री० अरसौं ही श्रालस्य-पूर्ण, अलसाया। संज्ञा० ० यौ० ( संदर्श-स्पर्श ) भेंट, देखना, अरहट-संज्ञा, पु० दे० (सं० अरघट्ट) मिलाप ।
कुएं से पानी निकालने का रहँट नामक अरसट्टा---- संज्ञा, पु० (दे० ) निरख, परख, यंत्र, चरसा, पुर, (दे०)। अंकाव, अड़चन, चूक, भूल, अलक्ष, महसा, अरहन-संज्ञा, पु० दे० (सं० रंधन ) (प्रान्ती० ) अलसेट, अरसेट ।।
आटा या बेसन जो तरकारी या सागादि के अरसना--अ० क्रि० दे० (सं० अलस) पकाते समय मिलाया जाता है, रेहन । शिथिल पड़ना, ढीला पड़ना, मंद होना, | अरहना --संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अर्हणा ) आलस करना।
पूजा, अर्चना । स० कि० (हि. अ+रसना) न चूना, न | अरहर-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० आढकी, प्रा. टपकना।
अड्ढकी ) दो दल के दाने का एक अनाज संज्ञा, स्त्री० (सं० अ+ रसना ) बिना जीभ के, जिसकी दाल बनती है, तुअर ( प्रान्तो०) बिना रसना वाला, रसना-रहित, बद ज़बान।। तूर, तुवरी अरहरी। अरमना-परमना—(अरसन-परसना ) अरक्षक-वि० (सं० ) रक्षक-रहित, स० कि० दे० (सं० स्पर्शन) श्रालिंगन असहाय । करना, भेंट करना, मिलना, भंटना, छूना, अरक्षण-संज्ञा, पु० (सं०) रक्षा का अभाव अरसनारसन । संज्ञा, पु० दे० (सं० । रता-शून्य । दर्श-स्पर्श, ) भेंट, मिलाप, धालिंगन । अरक्षणीय-वि० (सं० ) रक्षा न करने अरसा-संज्ञा, पु. (अ.) समय, काल,
र काल. योग्य ।। देर, अति काल, विलंब, बेर ।
अरचय–वि० (सं० ) अरक्षणीय, रक्षा के वि० स्त्री० (सं० अ+रसा) अरसिका, विरता। अयोग्य। अरसात-सज्ञा, पु० दे० (सं० अलस ) एक अरक्षित-वि० (सं० ) जो रक्षित न हो, प्रकार का वर्णक वृत्त जि में २१ वर्ण होते रता-रहित । हैं, जिसमें ७ भगण और १ रगण रहता है। । स्त्री० अरक्षिता-रवा-हीना।
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