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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्षगांठ वल्लभी चतुर्दश विपिन वसि, करि, पितु वचन वलि-संहा, पु० (सं०) रेखा, पेट की रेखा प्रमान"-रामा । या पेटी की रिकुड़न, बल, देवता की भेंट, वर्षगाँठ-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वर्ष + गांठ) वामन रूप विष्णु से छला गया एक दैत्य, जन्म दिन, साल गिरह, बरम-गाँठ (दे०)। पंक्ति, श्रेणी सिकुड़ना शिकन, झुरीं । वर्षण -- संज्ञा, पु० (सं० बरसना, वृष्टि ।। वलित--वि• (सं०) बल खाया हुआ, मोड़ा वि०--वपिन। या झुकाया हुघा, लिपटा या घेरा हुश्रा, वर्षफल-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) फलित झुर्रादार, सहित. युक्त, लिपटा, ढका, लगा. ज्योतिष में एक कुण्डली जिससे मनुष्य के झुका हुमा। साल भर का भला-बुरा ग्रह-फल ज्ञात हो। वली-- संज्ञा, स्त्री० (सं०) सिकुड़न, शिकन, वर्षा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) प्रासार से क्वार झुर्रा श्रेणी, पंक्ति लकीर, रेखा । संज्ञा, पु. तक की एक ऋतु जब पानी बरसता है, (अ०) सिद्ध साधु, फ़कीर, स्वामी, मालिक, चौमासा (दे०), वष्टि, बरसने का भाव या हाकिम, शासक, पहुँचा फकीर, संरक्षक ।। किया, बरपा, बरमा (दे०)। "वर्षा विगत वाल-संज्ञा, पु. (सं०) स्वक, पेड़ की शरद ऋतु भाई"-रामा० । मुहा० छाल, बकला. तपस्वियों के छाल के कपड़े, (किसी वस्तु की ) वर्षा होना (करना) बलकल (६०), "वल्कल बसन जटिल तनु -अधिकता के साथ उपर से गिरना श्यामा" -रामा० । (गिराना), बहुतायत से मिलना ( देना)। घल्गु--वि० सं०) सुन्दर, मनोहर । “बरुगुवर्षाकाल ...संज्ञा, पु. यो० (सं०) पावस का भाषितम् "..- स्फुट० । समय, बरसात, प्रावृट । “ वर्षा काल मेघनभ छाये"---रामा० । वल्द-संज्ञा, पु. (ग्र०) औरय पुत्र, बेटा। वर्षाशन ---संज्ञा, पु० यौ० (सं०: एक वर्ष वल्दियत-ज्ञा, स्त्री० (म०) पिता के नाम का भोजन या जीविका । का परिचय। वहीं-संज्ञा, पु. (सं० बर्हिन) मोर, मयूर व लारीक-संज्ञा, पु. (सं०) दीमक का घर, पल-संज्ञा, पु० (सं० एक दैत्य जिसे वृहस्पति । मिट्टी का ढेर, बावी, विमोठ (प्रान्ती०) ने मारा था, मेघ सेना, चमू । "वल वाल्मीकि मुनि ।। भीगाभिरक्षितम् ".--. गी । वल्लभ - वि० (सं०) प्यारा, प्रियतम । संज्ञा, घलन--संज्ञा, पु० (सं०) नक्षत्रादि का साय- पु.-प्रियमित्र, अध्यक्ष, स्वामी, नायक, गांश से हट कर चलना, विचलन (ज्यो०)। पति, मालिक, वैष्णवमत की कृष्णोपासना पलभ-संज्ञा, पु. (सं०) कंकण, हाथ का के प्रवर्तक, एक प्रसिद्ध प्राचार्य, पुष्टि-मार्ग के प्रवर्तक । पलभी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) काठियावाड़ की | वल्लभा-संहा, स्त्री० (सं०) प्रियतमा, प्यारी एक पुरानी नगरी, यराबदा।। स्त्री, प्रिया । घलय-संक्षा, पु० (सं०) कंकण, चूड़ी, वेष्टन, मंडल | " भणिना वलयं वलयेन मणिः वल्लभाचार्य-- संज्ञा, पु. (सं०) वैष्णव मत या कृष्ण भक्ति और पुष्टि मार्ग प्रवर्तक पलवला-संज्ञा, पु० (१०) उमंग, जोश, एक प्रसिद्ध धाचार्य। भावेश। पल्लभी--संज्ञा, पु. (सं० बलभी ) काठियापलाहक-संज्ञा, पु. (सं०) बादल, मेघ, वाड़ का एक पुराना नगर, एक वैष्णव पहार, पर्वत, एक दैत्य । । संप्रदाय, वल्लभीय । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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