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धनलक्ष्मी
घमनी
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वनलक्ष्मी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) वन- होने वाला, वनोद्भव, जंगली, बनैला। श्री, वन की शोभा या छटा ।
"वन्यान् विनेष्यन्निव दुष्टसत्वान् ”-रघु० । वनवास-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जंगल में वपन--संज्ञा, पु. (सं०) बीज बोना. मुंडन । रहना, गाँव-घर छोड़ वन में रहने की वि० (सं०)--वपनीय।। व्यवस्था या विधान । ' तुम कहँ तौ न | वपनी--संज्ञा, स्त्री० (सं०) नापित-शाला, दीन्ह वन-वासू”-रामा०
नाइयों का अड्डा । वनवासी--वि० यौ० (सं० बनवासिन् ) ग्राम- वपा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) मेद, चरबी । धाम छोड़ वन में रहने वाला । " चौदह । वपु-संज्ञा, पु० (सं० वपुस्) देह, शरीर, बरस राम वन-वासी”-रामा० । स्त्री० वन- गान्न । “ वपुःप्रकर्षादजयद् गुरु रघुः ---- वासिनी।
रघु। वनस्थल-संज्ञा, पु. स्त्री० यौ० (सं०) वन.
वपुरा, बापुरा--वि० (दे०) बेचारा, तुच्छ, भूमि । स्त्री० वनस्थली।।
| नीच, थोड़ा ।' हमको वपुरा सुनिये धनपति--संज्ञा, स्त्री. (सं०) वृक्षमात्र,
मुनिराई" - राम० : "कहा सुदामा बापुरो" पेड़-पौधे, जड़ी-बूटी।
-रही । वनस्पतिशास्त्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) व
वपुश्मा-संज्ञा, स्त्री. (सं०) काशीराज की
___ कन्या और राजा जनमेजय की पत्नी। वनस्पति-विज्ञान, पेड़ों, पौधों, लताओं
वप्न- वि० (सं०) बीज बोने वाला, नाई । श्रादि के अंग, रूप, रंग, गुण-भेदादि की
वप्र-संज्ञा, पु. (सं०) नगर-कोट, प्राचीर, विवेचमा की विद्या। वनहाम---संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कॉम।
दीवाल, चहार-दीवारी । " सवेला वन
बलयां परिखीकृत सागरान् --- रघु० ।। वनिता-संज्ञा, स्त्री. (सं०) स्त्री, औरत, |
वा--संज्ञा, स्त्री० (१०) प्रतिज्ञा पूरी करना, नारी, प्रिया, बनिता (दे०), "वनिता बनी
बात निबाहना, पूर्णता, निर्वाह, सुशीलता, साँवरे-गोरे के बीच बिलोकहु री सखी मोहि
मुरौवत । वि. वफ़ादार । सी है"-- कविः । ६ वर्गों की एक वृत्ति,
वफ़ात संज्ञा, स्त्री. (अ०) मौत, मृत्यु, तिलका (पिं०) डिल्ला । प्रा० )
मरण। वनी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) छोटा वन, वाटिका ।
| वादार---वि० ( अ० वफ़ा । दार--फा०) वनेला-बनैल-संज्ञा, पु० दे० (हि. वन |
बात या कर्तव्य का पालने वाला। संज्ञा, --एला, ऐल - प्रत्य० ) वनवासी वनेचर, स्त्री० घफ़ादारी: " अच्छी तकदीर से वन्य, बनला (दे०)।
माशूक वफादार मिला" - स्फु०। वनेचर--संज्ञा, पु० सं०: वनचर, बंचर
ववा--संज्ञा, स्त्रो० (अ०) संक्रामक था फैलने (दे०)। " युधिष्ठिरं द्वैतवने वनेचर'- वाला मारक रोग, मरी । जैसे -प्लेग,हैजा । किरा०।
वबाल --- संज्ञा, पु. (अ.) भार, बोझा, वनोत्सर्ग- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सर्व झंझट, झमेला, श्रापत्ति, कठिनाई, जंजाल । साधारण के लिये कुवाँ, मंदिर श्रादि के वभ्र--संज्ञा, पु० (सं०) यदुवंशी विशेष । द्वारा जल-दान ।
वभ्रुवाहन--संज्ञा, पु० (सं०) अर्जुन का पुत्र। वनौषध, वनौषधि---संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) वमन-संज्ञा, पु० (सं०) कै या उलटी करना,
जंगली दवाइयाँ, जंगली जड़ी बूटियाँ। कै किया हुआ पदार्थ । वन्य-वि० (सं०) वनजात, वन में उत्पन्न ! वमनी--संज्ञा, स्त्री. (सं०) जलौका, जोंक ।
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