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लखाना
लगना
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लखना ) लक्षण, चिन्ह, पहचान, लखने या लों (व०, जगे (ग्रा.) : " जहँ लग नाथ जानने-योग्य, चिन्हारी---चिन्ह-रूप में नेह अरु नाते"--- रामा० । संज्ञा, स्त्री. ---- दिया पदार्थ
प्रेम, लगन, लाग, लो। अव्य०-हेतु, लिये, लखाना ---अ०क्रि०दे० हि. लखना) दिखाई । वास्ते, संग, साथ।
पड़ना । स० क्रि०-दिखलाना, समझाना । लगतना --अ० क्रि० दे० यौ० (हि.) लखाच* -- संज्ञा, पु० दे० (हि. लखाउ ) साथ साथ चलना, पास जाना। लक्षण, चिन्ह, पहचान ।
लगड-संज्ञा, पु० (दै०) पनी विशेष, बाज । लश्चिमी* --- संज्ञा, स्त्री० दे० सं० लक्षी) लगड़बग्घा ... संज्ञ, पु० दे० (हि० लकड़ बाघ) रमा, कमला, संपत्ति, छिपी, लच्छिमी लकड़बग्घा ।
लगम --कि० वि० दे० (दि. लगभग : लखिया*--संज्ञा, पु० दे० (हि. लखना। लगभग, निकट करीब । इया-प्रत्य०) लखने या देखने वाला, लक्षक ! लगन संझा, वं. द. (हि. लगना। लखी--- सज्ञा, पु० दे० ( हि लाखी ) लाख प्रवृत्ति, धुन, रुचि, किसी घोर ध्यान लगने
के रंग का घोड़ा, लाखी, लस्सी (दे०)। की क्रिया, लौ, स्नेह, प्रेम, संबंध, चाह. लखेरा--संज्ञा, पु० दे० (हि० लाख -+ एरा- लगाव । गुहा नगन लगना जाना) प्रत्य० ) लाख की चूड़ी बनाने या बेचने --- प्रेम होना (करना) । लगने जाना-- वाला। स्री० लखेरिन ।
विवाह की लदा पत्रिका का वर के यहाँ पढ़ा लखोट----संज्ञा, स्त्री० दे० (दि० लाख । प्रोट- जाना और बर का तिलक होना । संज्ञा. पु. प्रत्य० ) लाख या लाह की चूड़ी।
दे० (सं० लग्न, व्याह की साइत या मुहूर्त, लखोटा-संज्ञा, पु० दे० (हि० लाख - प्रोटा- विवाहादि के होने के दिन, महारग, प्रत्य० ) केसर, चंदनादि से बना शरीर में महावण प्रान्तः), लग्न, मुहर्त्त । सज्ञा, लगाने का अंगराग या सुगधित नेप, संदुर पु० फा०) एक प्रार की बड़ी थाली लगन दानी, लाख की बड़ी चूड़ी।
महरत, जोग बल".-- तु० । " लगन लखोरा... वि. दे० (हि० लाख । औरा- लगाये तुम मगन बने रहो .... पाल । प्रत्य० ) लाख या लाह से बना हुधा । मानना --- संता, मो. यो० (सं० लमत्रा ) लखोरी--संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. लाख+ व्याह की निश्चित तिथि स्मृधक. वर के
औरी-प्रत्य. ) लाख था लाह से बनी हुई। यहाँ भेजी हुई कन्या के पिता की चिट्ठी। वस्तु । संज्ञा, स्त्री० दे. (हि. लाखा + ग्रौरी- लमनवट --- संज्ञा, स्त्री० दे० (दि. लगन) प्रत्य०) एक प्रकार की भ्रमरी या भुंगी का घर. प्रेम, स्नेह, प्यार, चाह : शृंगी कीड़ा, एक छोटी, पतली ईंट, नौरही लाना-अ० कि० दे० ( सं० लग्न ) सटना, या
(शान्तीका संज्ञा, श्री. दे. दो वस्तुओं के तलों का परस्पर मिलना, ( सं० लक्ष ) किसी देवता को उसके प्रिय जुडना, मिलना, दो वस्तु का चिपकाया वृक्ष की एक लाख पत्तियाँ पा फल चढ़ाना! टाँका (सिया) या ना जाना, सम्मिलित लगंत-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. लगना - अत- या शामिल होना, कम से या या सजाया प्रत्य० ) लगने या लगन होने की क्रिया का जाना, छोर या किनारे पर पहुँच कर टहरना, भाव।
टिकना या किना, व्यय या खर्च होना, लग, लगि क्रि० वि० दे० (हि. ७० लौं) । जान पड़ना, ज्ञात होना, स्थापित होना, पर्यत, तक, ताई, निकट, समीप, पास, श्राधात या चोट पड़ना, रिश्ते या संबंध
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